रविवार, 29 जुलाई 2012

ये घडी ग़र निकल जायेगी.......

ग़ज़ल


ये घडी ग़र निकल जायेगी.......


Moonlight : Romantic tropical beach at night with a bright full moon Stock Photo


-अरुण मिश्र. 


ये घडी ग़र,  निकल जायेगी।
रात  ऐसी,  न  कल  आयेगी।।


यूँ जो,  बाँहों में हो  ज़िन्दगी।
मौत, शरमा के  टल जायेगी।।


उसके आने की,  आई  ख़बर।
अब तबीयत, सँभल जायेगी।।


देर बस,  उसके  आने की  है।
मेरी दुनिया,  बदल  जायेगी।।


कब था सोचा'अरुन',चाँदनी।
मेरे  शीशे  में,   ढल जायेगी।।
                             *    

सोमवार, 23 जुलाई 2012

इन्द्रधनुष पिउ का मन रंग....

made 7/18/10

इन्द्रधनुष पिउ का मन रंग------


-अरुण मिश्र. 


बाहर]    बुला    रहे    बादल।  
पुरवा]   बजा   रही    साँकल।।


मीत  पपीहा]   कोयल]   मोर।
विरह की मारी को  मत छल।।


या  तो   सच  हों   तेरे  बोल।
नहीं तो  पंख  जाँय  तेरे जल।।

बरखा  की   अँधियारी   रात।
कैसे    आवे    चाँद   निकल??


पिया  बिना]  न  जाय  जिया।
आठों   याम    हिया   बेकल।।


सावन  हो   या   हो   फागुन।
उसके बिन] हर रितु निष्फल।।


इन्द्रधनुष]  पिउ  का मन रंग।
लखे  'अरुन',  दे  घर को  चल।।
                            *
ग़ज़ल, (2008))   

रविवार, 15 जुलाई 2012

एक मुठ्ठी आसमां कमरे में आया है उतर.....

ग़ज़ल 


एक मुठ्ठी आसमां कमरे में आया है उतर....


Blue_sky : The big starry congestion on night the sky Stock Photo           
-अरुण मिश्र.


एक  मुठ्ठी  आसमां  कमरे में  आया है उतर।
आसमानी   आज   मेरे  यार  ने  ओढ़ी  चुनर।।

चुनरी पे  उसके  टंके हैं  इस तरह  बूटे सफ़ेद।
शाम को जैसे  फ़लक पर  हों गये तारे बिखर।।

हौले-हौले  चल न  आ जायेगा  गर्दू  रक्स में।
गिर  न जायें  पैरहन  से  ये  सितारे  टूट कर।।

पल्लू ढलका, हाय ये क्या बाल क्यूँ बांधे नहीं?
छा गईं  काली घटायें  एक छिन में  झूम कर।।

खिड़कियों से  आ रही  बे-रंगो-बू  तीखी  हवा।
हो उठी कितनी मुअत्तर  ज़ुल्फ़ तेरा  चूम कर।।

एक  हलकी  तीरगी  लहरा गयी  चेहरे पे  जो।
हो  उठा  मैं  बावरा  सा  चाँद छुपता  देख कर।।

माँग की इस सुर्ख़ सिन्दूरी निशां का शुक्रिया।
एक कौंदे सी लपक, रौशन करे दिल की डगर।।    

बाद गर्मी आयेगी बरखा की रितु एहसास था।
क्यूँ अभी से  अब्रो-बर्क़ो-आब का  झेलें असर।।

यूँ अचानक आएगा सावन बिना आहट किये।
इस तरह अप्रैल में  इससे  'अरुन'  थे बेख़बर।।
                                      * 
ग़ज़ल, (अप्रैल' 1978)  

बुधवार, 11 जुलाई 2012

जब भी बारिश में....

ग़ज़ल 


teamwork


जब भी बारिश में.... 


-अरुण मिश्र. 



जब भी बारिश में, भीगता है तन। 
तेरी  यादों   में,   डूबता   है   मन॥

बिजलियाँ  हैं  कि,  ये  अदायें  हैं?
रूप  तेरा   नया  कि,   है   सावन??


ऐसा  लगता   है, पास   बैठे    हो।
बादलों की,  किये  हुये  चिलमन॥
  
नम   हवायें   हैं,  आँख   है   मेरी।
तर  दिशायें  हैं,  है  तिरा  दामन॥


अक्स  तेरा,  घुला  फिज़ाओं  में।
आज मौसम है,  हो गया  दरपन॥


बूँदें गिरती  हैं,  बज  रही  पायल। 
बर्क लहरायी,  है   हिली  करधन


मेघ गरजे,  तो  और भी  लिपटीं।
तेरी यादों  ने, धर  लिया  है  तन॥


सूँघता   फिरता   हूँ,  हवाओं   में। 
मैं   वही,   खुश्बू-ए-गुलाब-बदन॥
  
या तो दीवाना, हो गया हूँ 'अरुन'।
या तो फिर,  है नहीं गया बचपन॥
                             *

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

लगता है ये घन बरसेंगे.......



A cloudy sky with a thin blue sky stripe on the middle
 ये घन शेषनाग के फन हैं...
















( टिप्पणी : इस बरसात में छल रहे बादलों को देख कर जो कविता हुई है 
  या शायद वर्तमान परिदृश्य में हो सकी है, वह प्रस्तुत है। )


लगता है ये घन बरसेंगे......




-अरुण मिश्र 


लगता  है,  ये  घन  बरसेंगे।


ये   घन,  विद्रूपों   के   घन  हैं।
ये घन, कलुषित काला-धन हैं।
जन-जीवन  में,  विष  उड़ेलते,
ये घन,  शेषनाग  के  फन  हैं॥


ना बरसे तो,  झुलसेंगे  तन;
बरस गये तो मन झुलसेंगे॥


ये घन,  अनाचार  के  घन  हैं।
कुत्सित  कदाचार  के  घन हैं।
बाहर - भीतर,   तम  पसारते,
ये घन,  अन्धकार के   घन हैं॥


बन्द  तिज़ोरी  में  बरसेंगे;
खुले खेत-ऑगन  तरसेंगे॥


ये  घन,   कोई    नहीं  अनाड़ी।
अन्ना  के   हैं  चतुर  खिलाड़ी।
जीवन भर, खा-पी, डकार कर,
तिनका  खोज  रहे,  हर  दाढ़ी॥


ये  बरसेंगे,  जन्तर-मन्तर;
यदि वे, बीच सदन बरसेंगे॥
                              *
कविता (2012)

बुधवार, 4 जुलाई 2012


ग़ज़ल 

आ जाये कभी चैन-ओ-आराम तो कहना....   

-अरुण मिश्र. 


छोड़ा जो  अधूरा हो  कोई काम  तो कहना।
औ' इसका कभी माँगा हो इन'आम, तो कहना।।

कुछ दिन को मुझे, घर में ज़रा रख के तो देखो।
मैं  घर  का  बदल  दूँ  न  तेरे  नाम,  तो  कहना।।

ग़ुल   आँखों  ही  आँखों   में   करें ,  ढेरों   इशारे।
मारे  न   गए   सैकड़ों   गुलफ़ाम ,  तो   कहना।।

कुछ ग़ुल ने कान में कहा,  बुलबुल  चहक उठी।
गुलशन में  न हो जाये  राज़  आम,  तो  कहना।।

दे कर  दवा-ये-दर्दे-दिल,  हँस कर कहे,  'अरुन'।
आ  जाये  कभी  चैन - ओ - आराम,  तो कहना।।
                                        *