ग़ज़ल
दिल पे हर लहज़ा जु़नूँ तारी है.....
-अरुण मिश्र.
दिल पे हर लहज़ा जु़नूँ तारी है।
आज-कल उनकी इन्तज़ारी है।।
लम्हे सदियों से क्यूँ गुजरते हैं?
क्या न रफ़्तारे-वक़्त जारी है??
कट गई उम्र इक, तमन्ना में।
अब क्यूँ दो-चार घड़ी, भारी है??
एक आहट सी, हुई है दर पर।
क्या ये किस्मत खुली हमारी है??
तुम ‘अरुन’ हो अबस भुलावे में।
ऐसी तक़दीर, क्या तुम्हारी है??
*
दिल पे हर लहज़ा जु़नूँ तारी है.....
-अरुण मिश्र.
दिल पे हर लहज़ा जु़नूँ तारी है।
आज-कल उनकी इन्तज़ारी है।।
लम्हे सदियों से क्यूँ गुजरते हैं?
क्या न रफ़्तारे-वक़्त जारी है??
कट गई उम्र इक, तमन्ना में।
अब क्यूँ दो-चार घड़ी, भारी है??
एक आहट सी, हुई है दर पर।
क्या ये किस्मत खुली हमारी है??
तुम ‘अरुन’ हो अबस भुलावे में।
ऐसी तक़दीर, क्या तुम्हारी है??
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