रविवार, 2 दिसंबर 2012

दिल पे हर लहज़ा जु़नूँ तारी है.....

ग़ज़ल 
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दिल पे हर लहज़ा जु़नूँ  तारी है.....

-अरुण मिश्र.


दिल पे हर लहज़ा जु़नूँ  तारी है।
आज-कल  उनकी इन्तज़ारी है।।

लम्हे  सदियों से क्यूँ  गुजरते हैं?
क्या न  रफ़्तारे-वक़्त   जारी है??

कट गई  उम्र  इक,  तमन्ना में।
अब क्यूँ  दो-चार घड़ी,  भारी है??

एक आहट सी,  हुई  है  दर  पर।
क्या ये  किस्मत खुली हमारी है??

तुम ‘अरुन’ हो अबस भुलावे में।
ऐसी  तक़दीर,  क्या  तुम्हारी है??

                           *


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