ग़ज़ल
याद आयेगी तुम्हें आतिश-फि़शां मेरी ज़बान....
-अरुण मिश्र.
अब क़फ़स की तीलियां टूटी हैं, अब होगी उड़ान।
अब तेरे परवाज़ की ताइर, अलग ही होगी शान।।
हसरतें अब भी जवां हैं, हौसले अब भी बुलन्द।
जुम्बिशे-पर चीर कर रख देगी, सारा आसमान।।
मैं उफ़ुक़ के पार होता हूँ , ख़यालो-फि़क्र में।
दीद की हद में हमारे, होते हैं दोनो जहान।।
ख़ामुशी छा जायेगी, जब भी कभी माहौल में।
याद आयेगी तुम्हें, आतिश-फि़शां मेरी ज़बान।।
हैं ‘अरुन’ आज़ाद-ख़ू,कब कर सकीं हम को असीर।
ज़ुल्फ की ज़जीर, या तीरे-नज़र, भौंहें-कमान।।
*
याद आयेगी तुम्हें आतिश-फि़शां मेरी ज़बान....
-अरुण मिश्र.
अब क़फ़स की तीलियां टूटी हैं, अब होगी उड़ान।
अब तेरे परवाज़ की ताइर, अलग ही होगी शान।।
हसरतें अब भी जवां हैं, हौसले अब भी बुलन्द।
जुम्बिशे-पर चीर कर रख देगी, सारा आसमान।।
मैं उफ़ुक़ के पार होता हूँ , ख़यालो-फि़क्र में।
दीद की हद में हमारे, होते हैं दोनो जहान।।
ख़ामुशी छा जायेगी, जब भी कभी माहौल में।
याद आयेगी तुम्हें, आतिश-फि़शां मेरी ज़बान।।
हैं ‘अरुन’ आज़ाद-ख़ू,कब कर सकीं हम को असीर।
ज़ुल्फ की ज़जीर, या तीरे-नज़र, भौंहें-कमान।।
*
अच्छी ग़ज़ल है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रिय काजल कुमार जी|
जवाब देंहटाएंआपको ग़ज़ल पसंद आई; शुक्रिया|
शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.