शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

याद आयेगी तुम्हें आतिश-फि़शां मेरी ज़बान....

ग़ज़ल 

याद आयेगी तुम्हें आतिश-फि़शां मेरी ज़बान....

-अरुण मिश्र.


अब क़फ़स की तीलियां टूटी हैं,  अब होगी उड़ान।
अब तेरे परवाज़ की ताइर, अलग  ही  होगी शान।।

हसरतें  अब  भी  जवां हैं,  हौसले अब भी बुलन्द।
जुम्बिशे-पर  चीर  कर रख देगी,  सारा आसमान।।

मैं   उफ़ुक़  के  पार  होता  हूँ ,   ख़यालो-फि़क्र  में।
दीद  की   हद  में   हमारे,   होते   हैं  दोनो  जहान।।

ख़ामुशी  छा  जायेगी,   जब  भी  कभी  माहौल में।
याद  आयेगी  तुम्हें,  आतिश-फि़शां  मेरी  ज़बान।।

हैं ‘अरुन’ आज़ाद-ख़ू,कब कर सकीं हम को असीर। 
ज़ुल्फ की  ज़जीर,   या  तीरे-नज़र,   भौंहें-कमान।।

                                          * 



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