शनिवार, 29 जून 2013
मंगलवार, 18 जून 2013
मिथिलानन्दनि-नयननंदन का वंदन आज......
श्री हनुमते नमः
भावानुवाद :
पूँछ से बुहार उदधि-अम्बर के मध्य मार्ग
चलते उछल, बने कारण इन्द्र-मोद के।
फैली भुजाओं से फूट रहे पर्वत-खण्ड
मिथिलानन्दनि-नयननंदन का वंदन आज ।।
*
-अरुण मिश्र
मूल संस्कृत :
लाङ्गूलमृष्टवियदम्बुधिमध्य्मार्ग-
मुत्प्ल्युत्य यान्त्ममरेन्द्रमुदो निदानम् ।
आस्फालितस्वकभुजस्फुटिताद्रिकाण्डं
द्राङ्मैथिलीनयननन्दनमद्य वन्दे ।।
*
टिप्पणी : कविपति श्री उमापति द्विवेदी विरचित वीरविंशतिका नामक २० श्लोकों की
श्री हनुमतस्तुति के प्रथम श्लोक का भावानुवाद, ज्येष्ठ मास के अंतिम मंगलवार को
श्रद्धा सहित प्रस्तुत है।
-अरुण मिश्र
रविवार, 16 जून 2013
दुआ दो ‘मीर’ को........
दुआ दो ‘मीर’ को........
-अरुण मिश्र
.
दुआ दो ‘मीर’ को, टुक चैन से ज़न्नत में वो सोवे।
‘अरुन’ तुम यां रखो क़ायम वही अन्दाज़े-दर्द-आगीं।।
छलकतीं रात-दिन जो दर्द से, अल्ला के आलम में।
सुला के ख़्वाहिशें कितनी, ये आँखें रात भर जागीं।।
बहुत ग़म हैं ज़माने में, तो थोड़ी सी खुशी भी है।
मिलन के एक पल में, सैकड़ों तन्हाइयां भागीं।।
हैं मीठी, तल्खि़यों, दुशवारियों में, राहते-ज़ां सी।
न जाने कैसी शीरीनी में, ये बातें तिरी, पागीं।।
न जाओ श्याम ! रो-रो गोपियां, पइयां परन लागीं।
तो झरने सी झरन लागी हैं,उनकी चश्मे-अश्क-आगीं।।
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-अरुण मिश्र
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दुआ दो ‘मीर’ को, टुक चैन से ज़न्नत में वो सोवे।
‘अरुन’ तुम यां रखो क़ायम वही अन्दाज़े-दर्द-आगीं।।
छलकतीं रात-दिन जो दर्द से, अल्ला के आलम में।
सुला के ख़्वाहिशें कितनी, ये आँखें रात भर जागीं।।
बहुत ग़म हैं ज़माने में, तो थोड़ी सी खुशी भी है।
मिलन के एक पल में, सैकड़ों तन्हाइयां भागीं।।
हैं मीठी, तल्खि़यों, दुशवारियों में, राहते-ज़ां सी।
न जाने कैसी शीरीनी में, ये बातें तिरी, पागीं।।
न जाओ श्याम ! रो-रो गोपियां, पइयां परन लागीं।
तो झरने सी झरन लागी हैं,उनकी चश्मे-अश्क-आगीं।।
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सोमवार, 3 जून 2013
मगर उससा मिला कोई नहीं.....
मगर उससा मिला कोई नहीं.....
-अरुण मिश्र.
बारहा ढूँढा, मगर उससा मिला कोई नहीं।
है ‘अरुन’ सा एक ही, याँ दूसरा कोई नहीं।।
तू क़रम की ओट में, मुझ पर क़हर ढाता रहा।
यूँ कि तू मेरा ख़ुदा ; तेरा ख़ुदा कोई नहीं??
ज़र्रे - ज़र्रे में नुमाया नूर से, गाफि़ल रहा।
ज़ुस्तज़ू उसकी रही, जिसका पता कोई नहीं।।
हमसे पहले भी हुये, फ़रहादो-कै़सो-रोमियो।
फिर भी लगता हमको, हमसा आशना कोई नहीं।।
*
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