https://youtu.be/ixMvbjEUP-g Ram Govind Hari - Sant Kabir Bhajan
Sung by 8 year old Rahul Vellal. Lyrics and Meaning of the Bhajan
Ram Govind Hari Bhajo Re Bhaiyyaa
O devotee,
Sing the names of the Lord
Sing Ram, Govind, Hari
Jap Tap Saadhan Kachhu Nahin Laagat
Kharchat Nahin Gatthree
Ram Govind Hari Bhajo Re Bhaiyyaa
Singing the name
Needs no chanting, no penance, no practice
Really, it takes no expense from your pocket
O devotee,
Sing the names of the Lord
Santat Sampat Sukh ke Kaaran
Jaa Se Bhool Pari
The wealth and treasures of this world
The progeny, the next generation
Are all apparent sources of happiness
But in fact they are distractions
That makes one lose his path in this world
Kehat Kabeeraa Jaa Mukh Ram Nahin
Wo Mukh Dhool Bharee
Ram Govind Hari Bhajo Re Bhaiyyaa
Listen o devotees, Kabeer says thus
The tongue on which
The name of Ram does not reside
Is as good as full of dust
O devotee,
Sing the names of the Lord
आदि देव नमस्तुभ्यम प्रसीद मम भास्करं
दिवाकर नमस्तुभ्यम प्रभाकर नमोस्तुते
जागिये रघुनाथ कुंवर पंछी बन बोले -३
चंद किरन सीतल भई चकवी पिय मिलन गई -2
त्रिबिध मंद चलत पवन पल्लव द्रुम डोले
जागिये रघुनाथ कुंवर पंछी बन बोले - 2
प्रात भानु प्रगट भयो -2 रजनी को तिमिर गयो -2
भृङ्ग करत गुंज गान कमलन दल खोले
जागिये रघुनाथ कुंवर पंछी बन बोले - 2
ब्रह्मादिक धरत ध्यान -2 सुर नर मुनि करत गान - २
जागनकी बेर भई नयन पलक खोले
जागिये रघुनाथ कुंवर पंछी बन बोले - 2
तुलसीदास अति अनंद निरखि के मुखारविंद
दीननको देत दान भूषण बहु मोले
जागिये रघुनाथ कुंवर पंछी बन बोले *
Shrinika and Sonalika It Needs No Introduction.
The art itself speaks volumes about artists. Get enthralled with the outstanding performance of the mother daughter duo. Yet curious? Well, the little charm Shrinika is a child prodigy known as "Wonder Kid of Odissi." She is on stage since the 2 years of age. In this video she's probably 6. The praiseworthy mother is Sonalika Purohit (Padhi before marriage) from Sambalpur, Odissa. Left job of Junior Scientist, after marriage to a software engineer husband and settled in Bangalore, where she wholeheartedly pursues her love for dance. Sonalika studied Biotechnology at Sambalpur University and worked as Assistant / Intern at NBRI, Lucknow. Completed Sangeet Prabhakar from Allahabad University. Presently continuing Nrityacharya under Chandigarh University. Teaches dance in Bangalore. But above all is the performance which is beyond words and worth watching.
व्याख्या - हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ. निजस्वरूप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित, गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ ॥1॥
व्याख्या - निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत, वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥2॥
व्याख्या - जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है ॥3॥
व्याख्या - जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुंदर भृकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ व दयालु हैं, सिंहचर्म धारण किये व मुंडमाल पहने हैं, उनके सबके प्यारे, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं भजता हूँ ॥4॥
व्याख्या - प्रचण्ड रुद्र रूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों अर्थात दु:खों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकर को मैं भजता हूँ ॥5॥
व्याख्या - कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंदमन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों ॥6॥
व्याख्या - हे पार्वती के पति, जब तक मनुष्य आपके चरण कमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में न परलोक में सुख शान्ति मिलती है और न ही तापों का नाश होता है. अत: हे समस्त जीवों के अंदर निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइये ॥7॥
व्याख्या - मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा. हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ. हे प्रभो, बुढ़ापा व जन्म, मृत्यु, दु:खों से जलाये हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें. हे ईश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥8॥
व्याख्या - भगवान रुद्र का यह अष्टक उन शंकर जी की स्तुति के लिये है जो मनुष्य इसे प्रेमस्वरूप पढ़ते हैं, श्रीशंकर उन से प्रसन्न होते हैं