https://youtu.be/B4JXm-aP_dY
Ustad Iftekhar Ahmed Nizami Khan Saheb,
was grand father of Qawwal Subhan Ahmed Nizami and brothers.
न तो मैक़दे की है जुस्तजू, न तलाश-ए-बादा-ओ-जाम है।
जो नफ़स-नफ़स को पिला गयी, मुझे उस निग़ाह से काम है।।
कोई मस्त है, कोई तश्ना-लब, तो किसी के हाथ में जाम है।
मगर इसको कोई करेगा क्या, ये तो मैक़दे का निज़ाम है।।
कभी रौशनी,कभी तीरग़ी, यही रोज़-ओ-शब का निज़ाम है।
यही ज़िन्दगी है तो, ज़िन्दगी, तुझे दूर ही से सलाम है।।
हैं दुरुस्त तेरी नसीहतें, है बजा के मै भी हराम है।
अभी थम ज़रा मेरे नासेहा, अभी मेरे हाथ में जाम है।।
ये ज़नाब-ए-शैख़ का फ़लसफ़ा, है अजीब सारे जहान से।
जो वहाँ पियो तो हलाल है, जो यहाँ पियो तो हराम है।।
*
Ustad Iftekhar Ahmed Nizami Khan Saheb,
was grand father of Qawwal Subhan Ahmed Nizami and brothers.
न तो मैक़दे की है जुस्तजू, न तलाश-ए-बादा-ओ-जाम है।
जो नफ़स-नफ़स को पिला गयी, मुझे उस निग़ाह से काम है।।
कोई मस्त है, कोई तश्ना-लब, तो किसी के हाथ में जाम है।
मगर इसको कोई करेगा क्या, ये तो मैक़दे का निज़ाम है।।
कभी रौशनी,कभी तीरग़ी, यही रोज़-ओ-शब का निज़ाम है।
यही ज़िन्दगी है तो, ज़िन्दगी, तुझे दूर ही से सलाम है।।
हैं दुरुस्त तेरी नसीहतें, है बजा के मै भी हराम है।
अभी थम ज़रा मेरे नासेहा, अभी मेरे हाथ में जाम है।।
ये ज़नाब-ए-शैख़ का फ़लसफ़ा, है अजीब सारे जहान से।
जो वहाँ पियो तो हलाल है, जो यहाँ पियो तो हराम है।।
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