मंगलवार, 5 नवंबर 2019

मीर तक़ी 'मीर' / बेग़म अख़्तर

https://youtu.be/eEPcbMvKA0w
मीर तक़ी 'मीर' 

उलटी हो गई सब तदबीरें[1], कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया

अह्द-ए-जवानी[2] रो-रो काटा, पीरी[3] में लीं आँखें मूँद
यानि रात बहुत थे जागे सुबह हुई आराम किया

नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी[4] की
चाहते हैं सो आप करें हैं, हमको अबस[5] बदनाम किया

याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़ल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया

'मीर' के दीन-ओ-मज़हब का अब पूछते क्या हो उनने तो
क़श्क़ा खींचा[6] दैर [7] में बैठा, कबका तर्क[8] इस्लाम किया


1 . उपाय  2 . यौवनकाल  3 . बुढ़ापा  4 . स्वतंत्रता  5 . व्यर्थ  
6 . तिलक लगाया  7 . मंदिर  8 . छोड़ा 

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