https://youtu.be/rbvww26oMQ4
यह भजन 15वीं सदी में गुजराती भक्तिसाहित्य के श्रेष्ठतम कवि
नरसी मेहता द्वारा मूल रूप से गुजराती भाषा में लिखा गया है।
यह भजन उसी गुजराती भजन का हिन्दी रूपांतरण है।
कवि नरसिंह मेहता को नर्सी मेहता और नर्सी भगत के नाम से
भी जाना जाता है।
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तो ये,
मन अभिमान न आणे रे ॥
॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥
सकल लोकमां सहुने वंदे,
निंदा न करे केनी रे ।
वाच काछ मन निश्चळ राखे,
धन धन जननी तेनी रे ॥
॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी,
परस्त्री जेने मात रे ।
जिह्वा थकी असत्य न बोले,
परधन नव झाले हाथ रे ॥
॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥
मोह माया व्यापे नहि जेने,
दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे ।
रामनाम शुं ताली रे लागी,
सकल तीरथ तेना तनमां रे ॥
॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥
वणलोभी ने कपटरहित छे,
काम क्रोध निवार्या रे ।
भणे नरसैयॊ तेनुं दरसन करतां,
कुल एकोतेर तार्या रे ॥
॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तो ये,
मन अभिमान न आणे रे ॥
यह भजन 15वीं सदी में गुजराती भक्तिसाहित्य के श्रेष्ठतम कवि
नरसी मेहता द्वारा मूल रूप से गुजराती भाषा में लिखा गया है।
यह भजन उसी गुजराती भजन का हिन्दी रूपांतरण है।
कवि नरसिंह मेहता को नर्सी मेहता और नर्सी भगत के नाम से
भी जाना जाता है।
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तो ये,
मन अभिमान न आणे रे ॥
॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥
सकल लोकमां सहुने वंदे,
निंदा न करे केनी रे ।
वाच काछ मन निश्चळ राखे,
धन धन जननी तेनी रे ॥
॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी,
परस्त्री जेने मात रे ।
जिह्वा थकी असत्य न बोले,
परधन नव झाले हाथ रे ॥
॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥
मोह माया व्यापे नहि जेने,
दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे ।
रामनाम शुं ताली रे लागी,
सकल तीरथ तेना तनमां रे ॥
॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥
वणलोभी ने कपटरहित छे,
काम क्रोध निवार्या रे ।
भणे नरसैयॊ तेनुं दरसन करतां,
कुल एकोतेर तार्या रे ॥
॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तो ये,
मन अभिमान न आणे रे ॥
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