स्वीकारो शारदे !
-अरुण मिश्र
अंजलि भर-
भाव के प्रसून,
चुटकी भर-
प्राणों की गन्ध,
स्वीकारो,
शारदे !
मानस की जल लहरी चरणों तक-
ले आई कुछ सीपी शंख,
अन्तस् का बाल-विहग स्तुति में-
फड़काता रेशम के पंख।।
श्रद्धा का-
शतमुखी प्रवाह-
बाँधे, ये-
थोड़े से छन्द,
स्वीकारो,
शारदे!
रोली, रक्तिमता तरुणाई की,
जीवन की शीतलता का चन्दन,
जलधर्मी यायावर बादल सा-
थम-थम कर, करता मन अभिनन्दन।।
थोड़े से-
तेरे ही शब्द;
शब्दों में-
नमन हेतु द्वन्द;
निपटारो,
शारदे!
अंजलि भर-
भाव के प्रसून,
चुटकी भर-
प्राणों की गन्ध-
स्वीकारो,
शारदे !
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