बुधवार, 29 जनवरी 2020

रस-रंग-सिक्त-सुन्दर वसंत....


रस-रंग-सिक्त-सुन्दर वसंत
-अरुण मिश्र 

आया वसंत।
आया वसंत।
मेरे मन में -
लहरें अनन्त।।

            रंगों  का  ज्वार  उठे  जिनमें,
            हर  पुष्प-पुष्प  लगता  सागर।
            उपवन की  कली-कली आतुर -
            छलकाती निज मधु-रस-गागर।।

है पवन -
पराग-धूलि-बोझिल,
सुरभित हैं -
सारे दिग्-दिगंत।
रस-रंग-सिक्त-
सुन्दर वसंत।
मेरे मन में -
लहरें अनन्त।।     

            मंथर-मंथर      मादक-बयार।
            कण-कण में  यौवन का उभार।
            पल्लवित  लतायें,  पुष्पित  तरु,
            नत  आम्र-विटप,  मंजरी-भार।।

है प्रकृति लुटाती -
मुक्त-हस्त,
अपनी -
सुषमा-निधियॉ अनन्त।
मंजुल, मोहक,
मनहर, वसंत।
मेरे मन में -
लहरें अनन्त।।

            बगिया-बगिया    कोयल बोले।
            पुरवइया,    अवगुंठन   खोले।
            चुनरियॉ-वसंती,   बल  खाती- 
             फिरतीं,   अॅगना-अॅगना  डोलें।।

करता है तन-मन -
रोमांचित,
घुलता है -
जीवन में वसंत।
मृदु , मधुर, मदिर
मादक, वसंत।
मेरे मन में -
लहरें अनन्त।।

            हैं,   वन-उपवन  महके-महके।
            विहगों के  स्वर,  चहके-चहके।
            बहके-बहके      आबालवृद्ध -
            गा  रहे  फाग,  लहके-लहके।।

मधु-रस-प्लावित -
सब जड़-चेतन;
झर-झर झरता -
निर्झर, वसंत।
जीवन के -
श्वेत-श्याम छवि में -
दे, इंद्रधनुष-रंग -
भर वसंत।।

आया वसंत।
छाया वसंत।
मेरे मन में -
लहरें अनन्त।।
                  *
(पूर्वप्रकाशित)

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