शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

बाबा के भवनवा से कइ के गवनवा रे साजनवा.../ भिखारी ठाकुर / चन्दन तिवारी / नेटुआ गायन शैली

https://youtu.be/uO_V7rK1G4E

बाबा के भवनवा से कइ के गवनवा रे साजनवा 
पिया कइले पुरुब के पयनवा रे साजनवा 
पाती नहीं आइल कुछ लिखि के बयानवा रे साजनवा 
नाहीं जाने कौन कारनवा रे साजनवा 
गावत-आ भिखारी ठाकुर झुमरा के गानवा रे साजनवा 
जेकर हउवे कुतुबपुर मकानवा रे साजनवा 

बुधवार, 29 दिसंबर 2021

जल्वा दिखा के यार ने दीवाना कर दिया۔۔۔۔/ जिगर मुरादाबादी / मोहम्मद अहमद क़व्वाल (रामपुर घराना)

https://youtu.be/_UcF4Ywo0cU 

जलवा बक़द्र-ए-ज़र्फ़-ए-नज़र देखते रहे। 
क्या देखते हम उनको मगर देखते रहे।।

अपना ही अक्स पेश-ए-नज़र देखते रहे। 
आइना रु-ब-रु था जिधर देखते रहे।।

क्या कह्र था कि पास ही दिल के लगी थी आग।  
अंधेर है कि, दीदा-ए-तर देखते रहे।।
वो आये और आ के चले भी गए 'जिगर'
हम मह्वियत में जाने किधर देखते रहे।।

~जिगर मुरादाबादी

जल्वा दिखा के यार ने दीवाना कर दिया। 
खुद शम्मा बन गए मुझे परवाना कर दिया।।

साक़ी की चश्म--मस्त ने, मस्ताना कर दिया।  
ऐसी पिलायी मुझ को के, दीवाना कर दिया।।

क्या माँगते हो मुझ से, मेरे पास कुछ नहीं।  
इक दिल था वो भी आप को नज़राना कर दिया।।

जाऊँ मैं कहाँ छोड़ के, मुर्शिद तुम्हारा घर। 
तुम ने हमारे घर को ख़ुदाख़ाना कर दिया।।

ये हुस्न, ये निखार, ये आँखों की मस्तियाँ। 
जिस पे निग़ाह पड़ गयी, दीवाना कर दिया।।

अल्लाह उन का और भी, रुतबा करें बुलन्द। 
लाखों गदा को आप ने शाहाना कर दिया।।

मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

नाच्यो बहुत गोपाल.../ सूरदास / स्वर : तिलक गोस्वामी

 https://youtu.be/D_1YMrk4VMc

पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत

राग : दरबारी
ताल : त्रिताल (आदि ताल)

अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल।
काम-क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ बिषय की माल॥
महामोह के नूपुर बाजत, निंदा सबद रसाल।
भ्रम-भोयौ मन भयौ, पखावज, चलत असंगत चाल॥
तृष्ना नाद करति घट भीतर, नाना विधि दै ताल।
माया कौ कटि फेंटा बाँध्यौ, लोभ-तिलक दियौ भाल॥
कोटिक कला काछि दिखराई जल-थल सुधि नहिं काल।
सूरदास की सबै अबिद्या दूरि करौ नँदलाल॥

भावार्थ 

इस पद में सूरदास जी ने माया-तृष्णा में लिपटे मनुष्य की व्यथा का 
सजीव चित्रण किया है। वह कहते हैं- हे गोपाल! अब मैं बहुत नाच 
चुका। काम और क्रोध का जामा पहनकर, विषय (चिन्तन) की 
माला गले में डालकर, महामोहरूपी नूपुर बजाता हुआ, जिनसे निन्दा 
का रसमय शब्द निकलता है (महामोहग्रस्त होने से निन्दा करने में ही 
सुख मिलता रहा), नाचता रहा। 
भ्रम (अज्ञान) से भ्रमित मन ही पखावज (मृदंग) बना। कुसङ्गरूपी चाल 
मैं चलता हूँ। अनेक प्रकार के ताल देती हुई तृष्णा हृदय के भीतर नाद (शब्द) 
कर रही है। कमर में माया का फेटा (कमरपट्टा) बाँध रखा है और ललाट पर 
लोभ का तिलक लगा लिया है। 
जल और स्थल में (विविध) स्वाँग धारणकर (अनेकों प्रकार से जन्म लेकर) 
कितने समय से यह तो मुझे स्मरण नहीं (अनादि काल से)- करोड़ों कलाएँ मैंने 
भली प्रकार दिखलायी हैं (अनेक प्रकार के कर्म करता रहा हूँ)। 
हे नन्दलाल! अब तो सूरदास की सभी अविद्या (सारा अज्ञान) दूर कर दो। 
माया के वशीभूत मनुष्य की स्थिति का इस पद के माध्यम से सूरदास जी ने 
सांगोपांग चित्रण किया है। सांसारिक प्रपंचों में पड़कर लक्ष्य से भटके जीवों का 
एकमात्र सहारा ईश्वर ही है।

सोमवार, 27 दिसंबर 2021

जाग रे बंजारा.../ भगत रूपा बाई / गायन : अरुन गोयल

 https://youtu.be/UUac0U2UVPc


Arun Goyal is a fine singer of Kabir and other Bhakti poets and part of a vibrant oral tradition of Kabir in Malwa, Madhya Pradesh. An ardent disciple of Osho, he is currently based in Indore.

अरे जाग रे अब,
जाग रे बंजारा रे, बंजारा रे
{तुम बंजारे के समान राही हो, तुम्हारा सफ़र यायावरी है, तुम अब तो अज्ञान की नींद से जागो }
तू किन की देखे बाट रे 
 {तुम किसकी राह देख रहे हो ?}
बाड़ी का भंवरा रे
अरे किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
{तुम किसकी राह देख रहे हो -बाड़ी के भँवरे बाड़ी से आशय है बगिया/छोटा खेत, तुम तो भँवरे हो, तुम्हारा यहाँ कोई स्थाई स्थान नहीं है, तुम किसकी राह देख रहे हो ?, अब तो अज्ञान की नींद से जागो }
काई सोयो तू नींद में
बाड़ी का भंवरा रे
जाग रे बंजारा रे, बंजारा रे
किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
{तुम अज्ञान की नींद में क्या सो रहे हो, तुम किसकी राह देख रहे हो ?}
सोना चांदी काई पहरे
बंजारा रे, बंजारा रे
सोना चांदी काई पहरे
बंजारा रे, बंजारा रे
अरे हीरा को व्यापार रे
बागां का भंवरा रे
जाग रे बंजारा रे, बंजारा रे
किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
{सोने और चाँदी के आभूषण को तुम क्या पहन रहे हो ! तुम जागो मैं तो तुम्हें हीरों के व्यापार की और अग्रसर कर रहा हूँ। सोना और चांदी तो तुलनात्मक रूप से कम महत्वपूर्ण है मैं तो तुम्हें हीरों के व्यापार की बात बताता हूँ, इसलिए तुम क्या सो रहे हो, इस अज्ञान की नींद से जागो। }
चढ़ कर डूंगर देख ले
बंजारा रे, बंजारा रे
डूंगर चढ़ कर देख ले
बंजारा रे, बंजारा रे
ऊपर चढ़ कर देख ले
बंजारा रे, बंजारा रे
थारी ऊभी करूँ मनवार रे
बाड़ी का भंवरा रे
(डूंगर-पहाड़ / ऊपर पहाड़ पर चढ़ कर देखो मैं तो तुम्हारी खड़ी होकर मनुहार कर रही हूँ। }
ये भी भँवरे वाली बात है.
हीरा रो व्यापार रे
बाड़ी का भंवरा रे
होयो उजालो ज्ञान को
बंजारा रे, बंजारा रे
मार चोट आसमान में,
बाड़ी का भंवरा रे!
मार चोट आसमान में,
बाड़ी का भंवरा रे
{हरी का सुमिरन हो हीरे के व्यापार के माफ़िक अमूल्य है, इसलिए बाड़ी के भँवरे तुम जागो और आसमान में चोट करो। }
जाग रे अब नींद से
बंजारा रे, बंजारा रे
किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
मार चोट आसमान में
बाड़ी का भंवरा रे
जाग रे बंजारा रे, बंजारा रे
किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
फूलन का भंवरा रे!
बागां रा भंवरा रे!
रूपा बाई की बीनती
बंजारा रे, बंजारा रे
सब हिल मिल भेला चालजो
{बाई रूपा जी -भगत रूपा बाई की विनती है की सभी से हिल मिल कर चलना यही संतों की वाणी है। }
बाड़ी का भंवरा रे
बागां रा भंवरा रे!
बाड़ी का भंवरा रे
जाग ले अब नींद से
बंजारा रे, बंजारा रे
तू किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
मत जोवे तू बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
बाड़ी का भंवरा रे
बागां रा भंवरा 

रविवार, 26 दिसंबर 2021

मन मस्त हुआ फिर क्या बोले.../ कबीर / गायन : कालू राम बामनिया

https://youtu.be/6JQYpYEQnvg 

आज बदरा उठा प्रेम का,
रे हम पर बरसा होइ,
हर्षिली हो गई आत्मा,
और हरी भरी बनराई,

मन मस्त हुआ फिर क्या बोले,
क्या बोले फिर क्या बोले,
मस्त हुआ फिर क्या बोले,
मस्त हुआ फिर क्या बोले,
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले,
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले। 

हलकी थी जब चढ़ी तराजू,
हलकी थी जब चढ़ी तराजू,
पूरी भरी अब क्यों तौले,
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले,
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले। 

हीरा पाया बाँध गठरिया,
हीरा पाया बाँध गठरिया, 
बार बार वा को क्यों खोले,
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले,
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले। 
 
हंसा नहाया मान सरोवर,
ताल तलैया में क्यों डोले, 
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले,
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले, 
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले,
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले। 

कहत कबीर सुनो भाई साधो, 
साहिब मिल गया तिल ओले (पीछे)
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले,
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले। 

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

मैं अपने राम को रिझाऊँ.../ कबीर / गायन : मीर बासु बरक़त ख़ान

 https://youtu.be/SGLs-u71YGk 


मैं अपने राम को रिझाऊं।
राम को रिझाऊं ,
अपने श्याम को रिझाऊं।
मैं अपने राम को रिझाऊं।

डाली छेड़ू न पत्ता छेड़ू ,
ना कोई जिव सताऊं।
पात पात में प्रभु बसत है ,
वाही को शीश नवाऊँ।
मैं अपने ….

गंगा ने जाऊ जमुना ने जाऊ ,
ना कोई तीरथ नहाऊं।
अडसठ तीरथ घट के भीतर ,
तिन्ही में मलके नहाऊं।
मैं अपने ….

ओषधि खाऊं ना बूटी लाऊँ ,
ना कोई वैद्य बुलाऊँ।
पूर्ण वैद्य अविनासी,
वाही को नबज दिखाऊं।
मैं अपने ….

ज्ञान कुठारा कस कर बाँधू ,
सूरत कमान चढ़ाऊँ।
पांच चोर बसे घट भीतर ,
तिनको मार गिराऊं।
मैं अपने ….

योगी होऊं न जटा बढ़ाऊ ,
ना अंग विभूत रमाऊँ।
जेहि का रंग रंगे विधाता ,
और क्या रंग चढ़ाऊँ।
मैं अपने ….

चंद्र सूर्ये दोऊ समकार राख्यो ,
निजमन सेज बिछाऊं।
कहत कबीर सुनो भाई साधो ,
आवागमन मिटाऊं।
मैं अपने ….

मैं अपने राम को रिझाऊं।
राम को रिझाऊं ,
अपने श्याम को रिझाऊं।
मैं अपने राम को रिझाऊं।

गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

अरुणाचल नाथम् स्मरामि.../ कृति : मुथुस्वामी दीक्षितार / गायन : रंजनी एवं गायत्री

https://youtu.be/WNKWb77A-bQ 
" तेजोमयं शशिकोटिशुभ्रं
चिर्ज्योतिबिम्बं प्रकाशवन्तं 
गौरीसहायं अद्वैतमूर्तिं 
अरुणाचलेशं मनसा स्मरामि "

Arunachalesvara Temple, is a Hindu temple dedicated to the deity Shiva, 
located at the base of Arunachala hill in the town of Thiruvannamalai in 
Tamil Nadu, India.

मुत्तुस्वामी दीक्षितर् या मुत्तुस्वामी दीक्षित (१७७५ -१८३५), दक्षिण भारत के 
महान् कवि व रचनाकार थे। वे कर्नाटक संगीत के तीन प्रमुख व लोकप्रिय हस्तियों में से एक हैं। 
उन्होने 500 से अधिक संगीत रचनाएँ की। कर्नाटक संगीत की गोष्ठियों में उनकी रचनाऐं 
बहुतायत में गायी व बजायी जातीं हैं।
 

Composer : Muthuswami Diksthar
Raga : Saranga
Language : Sanskrit

पल्लवि
अरुणाचल नाथम् स्मरामि
अनिशम् अपीत कुचाम्बा समेतम्

अनुपल्लवि
स्मरणात् कैवल्य प्रद चरणारविन्दम्
तरुणादित्य कोटि सङ्काश चिदानन्दम्

(मध्यम काल साहित्यम्)
करुणा रसादि कन्दम् शरणागत सुर वृन्दम्

चरणम्
अप्राकृत तेजोमय लिङ्गम् , अत्यद्भुत कर धृत सारङ्गम्
अप्रमेयं अपर्णाब्ज भृङ्गम् , आरूढोत्तुङ्ग वृष तुरङ्गम्

(मध्यम काल साहित्यम्)
विप्रोत्तम विशेषान्तरङ्गम् , वीर गुरु गुह तार प्रसङ्गम्
स्वप्रदीप मौलि विधृत गङ्गम् , स्वप्रकाश जित सोमाग्नि पतङ्गम्

Translation

pallavi
I constantly (anisham) remember/recite the name of (smarAmi) the Lord (nAtham) of Arunachala together with (samEtam) Goddess Apitakuchamba – mother (ambA) with unsuckled (apIta-literally undrunk) breasts (kucha).

anupallavi
The God who (implied) grants (prada) release from the cycle of birth (kaivalya) simply (implied) by His lotus-feet (charaNa aravinDam) being remembered (smaraNat),  who resembles (sangkAsha) countless (kOTi, literally a crore) young (taruNa) suns (Aditya). He who is blissful (Ananda) consciousness (chit) incarnate (implied), He who is the original (Adi) root (kandam) of compassion (karuNA rasa) towards the flocks (vRndam) of learned men/divinities (sura) who seek refuge in him (sharaNAgata).

charaNam
He whose emblem (linga) is extraordinarily (aprAkRta) brilliant (tEjOmaya(note: refers to the story of Shiva manifesting himself as an unmeasurable column of light at Arunachalam), He who holds (dhRta) a very (ati) wonderous (adbhuta) deer (sArangam – note this is the name of the raga as well) in his hand (kara), He who is unfathomable (apramEyam), He who is the lotus (abja) to the bee (bhRngam) who is Parvati (aparNA), He who is mounted on (ArUDHa) a tall (uttunga) and speedy (turangam) bull (vRsha), He who is especially (vishEsha) intimate (antarangam) with the best of the (uttama) learned men/Brahmins (vipra),  The savior (tAra) to whom the heroic (vIra) Subrahmanya (guruguha, also the signature of the composer) is devoted (prasangam) , He who bears (vidhRta) Ganga as an ornament (pradIpa) of his own (sva) top-knot (mauli), He whose own (sva) luminescence (prakAsha) surpasses that of (jita, literally wins) the moon (sOma), fire (agni) and the sun (patangam).

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

सागर शयन विभो !.../ रचना : एम. डी. रामनाथन / गायन :रंजनी एवं गायत्री

 https://youtu.be/AVqvRNlMn5A 

M. D. Ramanathan
Manjapara Devesa Bhagavathar Ramanathan (20 May 1923 – 27 April 1984) 
was a Carnatic music composer and vocalist who created a distinctive style 
of singing rich in Bhava and Laya. He was considered for the Madras 

RANJANI AND GAYATRI
Ranjani (Born May 13, 1973) and Gayatri (Born May10,1976) are 
two sisters who perform as a Carnatic vocal and violin duo. They 
have also appeared as soloists, accompanists, composers, and 
educators of Indian Classical Music. 
Their work includes studio recordings; television, radio, and 
festival 
appearances; live concerts; and lecture demonstrations.

pallavi
sAgara shayana vibhO! prabhO!
sAmagAnalOla! sArasa lOcana! (kSIra) (sAgara"¦)

Oh shining/replendant (vibhO) lord (prabhO), who reclines (Sayana) on the milky (kshIra) ocean (sAgara)! One who delights (lOla) in the chanting (gAna) of the sAma vEda! One who has eyes (lOcana) like a lotus (sArasa)

anupallavi
bhAgavata priya! bAga brOvumayyA!
bAga shrI bhUmi sahituDai velayu (kSIra sAgara"¦)


One who loves (priya) devotees who expound the purANas (bhAgavata)! Please protect (brOvumayyA) me appropriately (bAga). Very nicely (bAga), Oh Lord who manifests in the company of (sahituDai) of both lakshmI (SrI) and bhUmi dEvi, (and reclines on the milky ocean"¦)


caraNam 1
tApashamanakarA! tAmasAdi dUrA
pApavimOcana pAvana nAmA
shrI padmanAbhA dEva shrita jana
shrIkara shubhakara varadadAsanutapAdA (sAgara"¦)


One who allays/destroys (SamanakarA) all of our worldly afflictions (tApa), and one who dispels (durA) ignorance (tAmasa) and other (Adi) forms of darkness! One who liberates (vimOcana) us from the consequences of our sins (pApa)! One whose mere name (nAmA) is divine (pAvana), Oh lord (dEvA) padmanAbha, who creates (kara) wealth (SrI) and auspiciousness (Subha) for those (jana) that seek refuge (Srita/ASrita) in him. Whose feet (pAdA) are worshipped (nuta) by the devotee/slave (dAsa) of Sri varadAcAriar (varada) [1]!

caraNam 2
shrAvaNamAsa shrAvaNa dwAdashI yuta
shrESThamaina dinamandu bhaktajana
shrESThAdi pUjita shrI padmanAbhA
shrIramaNI priya shrutajana pAlA (sAgara"¦)


Oh padmanAbhA, worshipped (pUjita) by the most distinguished (SrEshTha) of your devotees (bhaktajana) on the sacred/excellent (SrEshThamaina) day (dinamandu) that is formed by the union (yuta) of the sacred SrAvaNa dvAdaSi, in the month (mAsa) of SrAvan (SrAvaNa)! You are the beloved (priya) of the beautiful (ramaNi) lakshmI (SrI), and the protector (pAlA) of those (jana) that seek refuge (Srita/ASrita) in you.

caraNam 3
vEda sArA! (nIvu) vEvEgamE vacci
vedanadIrparAdA? nAtO vAdA?
sadaramu ninnu sAyinhamandu
sEvincinAkhila sEvakOddhAraka (sAgara"¦)


Oh one who is the essence (sArA) of the vEdas. Are you (nIvu) unable (rAdA) to come (vacci) to me immediately/in a great hurry (vEvEgamE) and remove/destroy (dIrpa) my anxieties (vEdana)? Do you have an argument/disagreement (vAdA) with me (nAtO)? Have I not worshipped (sEvincina) you (ninnu) continually (sadaramu) [2], believing you to be the means of sAyujya mukti (sAyujyamandu) [2][3], oh Lord who uplifts (uddhArka) the entire (akhila) community of devotees (sEvaka)?


caraNam 4
pAdamE gatI gadA? pAmara dUrA!
pAlimparAdA pApashamana pAda!
nI daya kOriyunna nannu brOva
nI manasu karagadEmO? nItyarUpA (sAgara"¦)


Aren’t (gadA/kadA) your feet (pAdamE) my only succor (gati)? Oh lord who removes/destroys (dUrA) wretched men (pAmara)! Are not able (rAdA) to protect (pAlimpa) me? Oh lord whose feet (pAda) have the power to destroy (Samana) sin (pApa) [4]. Why is it (EmO) that your (nI) heart (manasu) doesn’t melt (karagadu) to protect (brOva) me (nannu), who is desirous (kOriyunna) of your compassion (daya)?



sArasa lOcana ~ sAdhu janapAla ~ sAdhu janAvana
bhAgavatA priya ~ nAgarAja shayanA


Oh lotus (sArasa)-eyed (lOcana) one! Protector (pAla) and preserver (Avana) of the good (sAdhu jana)! One who loves (priya) bhAgavatas! One who reclines (SayanA) on the king (rAja) of snakes (nAga) [5]!


FOOTNOTES
[1] Sri MDR, as a student of Tiger Varadachariar, adopted the mudra ‘varada dAsa’
[2] Contextually translated
[3] sAyujya mukti is where the person becomes one/absorbed into the lord
[4] refers to ahalya SApa mOcanam
[5] AdisESa

गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

जय जय जग जननि देवि... / विनय पत्रिका / गोस्वामी तुलसी दास / पण्डित छन्नू लाल मिश्रा

https://youtu.be/D0Zl_3yol44  

जय जय जग जननि देवि / गोस्वामी तुलसी दास / विनय पत्रिका 

जय जय जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि, 
भुक्ति-मुक्ति-दायिनि, भय-हरणि कालिका। 
मंगल-मुद-सिद्धि-सदनि, पर्वशर्वरीश-वदनि, 
ताप-तिमिर-तरुण-तरणि किरणमालिका ॥१॥
 
वर्मचर्म कर कृपाण, शूल-शेल-धनुषबाण, 
धरणि, दलनि दानव-दल, रण-करालिका। 
पूतना-पिशाच-प्रेत  डाकिनि-शाकिनि-समेत , 
भूत-ग्रह-बेताल  खग-मृगालि-जालिका ॥२॥
 
जय महेश-भामिनी, अनेक-रूप-नामिनी, 
समस्त-लोक-स्वामिनी, हिमशैल-बालिका। 
रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अचल नेम , 
देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका ॥३॥

मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता.../ निदा फ़ाज़ली / स्वर : प्रियंका बर्वे

https://youtu.be/El9s07D73rE


Bazm e Khas presents "Benaam sa yeh dard theher kyun nahi jaata",
a beautiful ghazal sung by Priyanka Barve, penned by Nida Fazli.

Nida Fazli
Muqtida Hasan Nida Fazli, known as Nida Fazli, was a prominent 
Indian Hindi and Urdu poet, lyricist and dialogue writer. He was 
awarded the Padma Shri in 2013 by the government of India for 
his contribution to literature.

Priyanka Barve
Priyanka Barve is an Indian playback singer and actress. 
Barve has sung songs in Hindi, Marathi and in some other 
Indian languages, however she is most active in the Marathi 
and Hindi industry. Barve is known for playing Anarkali in 
Feroz Khan's Broadway adaptation of Mughal E Azam. 

बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता

जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता

सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें

क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता

वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में

जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता

मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा

जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता

वो ख़्वाब जो बरसों से चेहरा बदन है

वो ख़्वाब हवाओं में बिखर क्यूँ नहीं जाता