https://youtu.be/K6vkzhuLkM0
Daridraya Dahana Shiva Stotram was Composed by Rishi Vasistha, one of the oldest and most revered Vedic Rishis.
Brahma Rishi Vasistha is one of the Saptarishi (7 Sages). By chanting this Daridraya Dahana Stotram at dawn, noon and dusk, one can enjoy the pleasures of heaven and gets all types of wealth.
जो नरकरूपी संसारसागर से उद्धार करने वाले हैं,
जो कानों से श्रवण करने में अमृत के समान नाम वाले हैं,
जो अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषणरूप में धारण करने वाले हैं,
जो कर्पूर की कांति के समान धवल वर्ण वाले जटाधारी हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है। गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय । गंगाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ २॥
जो रजनीश्वर(चन्द्रमा) की कला को धारण करने वाले हैं,
जो काल के भी अन्तक (यम) रूप हैं,
जो नागराज को कंकणरूप में धारण करने वाले हैं,
जो अपने मस्तक पर गंगा को धारण करने वाले हैं,
जो गजराज का विमर्दन करने वाले हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।
जो संहार के समय उग्ररूपधारी हैं,
जो दुर्गम भवसागर से पार कराने वाले हैं,
जो ज्योतिस्वरूप, अपने गुण और नाम के अनुसार सुन्दर नृत्य करने वाले हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है। चर्मम्बराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय । मंझीरपादयुगलाय जटाधराय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ४॥
जो चिताभस्म को लगाने वाले हैं,
जो भाल में तीसरा नेत्र धारण करने वाले हैं,
जो मणियों के कुण्डल से सुशोभित हैं,
जो अपने चरणों में नूपुर धारण करने वाले जटाधारी हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है। पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय । आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ५॥
जो सुवर्ण के समान किरणवाले हैं,
जो आनंदभूमि (काशी) को वर प्रदान करने वाले हैं,
जो सृष्टि के संहार के लिए तमोगुनाविष्ट होने वाले हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।
जो भवसागर से उद्धार करने वाले हैं,
जो काल के लिए भी महाकालस्वरूप, और जिनकी कमलासन (ब्रम्हा) पूजा करते हैं,
जो तीन नेत्रों को धारण करने वाले हैं,
जो शुभ लक्षणों से युक्त हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।
जो सर्पों के अतिप्रिय हैं,
जो भवसागररूपी नरक से तारने वाले हैं,
जो पुण्यवालों में अत्यंत पुण्य वाले हैं,
जिनकी समस्त देवतापूजा करते हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है। मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय । मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ८॥
जो मुक्तजनों के स्वामीस्वरूप हैं,
जो चारों पुरुषार्थों का फल देने वाले हैं,
जिन्हें गीत प्रिय हैं और नंदी जिनका वाहन है,
गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले हैं, महेश्वर हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।
।। इति श्रीवशिष्ठरचितं दारिद्रयुदुखदहन शिवस्तोत्रम् संपूर्णम् ।।
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