शनिवार, 11 दिसंबर 2021

चलनी के चालल दुलहा सूप के झटकारल हे.../ गीत : भिखारी ठाकुर / स्वर : चंदन तिवारी

 https://youtu.be/ypzyv-jGIs4  

भिखारी ठाकुर (१८ दिसम्बर १८८७ - १० जुलाई सन १९७१) भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, 
रंगकर्मी लोक जागरण के सन्देश वाहक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक थे। 
वे बहु आयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना एवं अपने सामाजिक 
कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। वे एक महान लोक कलाकार थे जिन्हें 'भोजपुरी का शेक्शपीयर' कहा जाता 
है। वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। 
भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की 
भाषा बनाया।
चन्दन तिवारी भोजपुरी की मशहूर लोकगायिका है जिन्होंने अपने लोकगीतों के दम पर 
लोगों के दिल में अपना स्थान बना लिया है । चंदन तिवारी का जन्म बक्का गाँव, भोजपुर जिला
बिहारभारत में हुआ है। उनके पिता हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड बोकारो में नौकरी करते थे, 
इसी कारण उनकी शिक्षा झारखण्ड के बोकारो स्टील सिटी में ही सपन्न हुई। उन्होंने विनोबा भावे विश्वविद्यालयहजारीबाग से एंथ्रोपोलॉजी में बीए ऑनर्स पूरा किया है। प्रयाग संगीत समिति
इलाहाबाद से उनका छह साल का प्रभाकर भी है। चन्दन की पहली गुरु उनकी माता रेखा तिवारी 
थीं जो उन्हें स्कूल के दिनों में राष्ट्रीय गीतों का अभ्यास कराया करती थीं। वह अपनी माँ के साथ 
मंदिरो में भजन गाया करती थीं। वे लोक गायिका के नाम से भी जानी जाती हैं और भोजपुरी
मगहीमैथिलीनागपुरी भाषा नागपुरी अवधी और हिंदी में गाती हैं। उन्हें बिस्मिल्लाह खान 
सम्मान से सम्मानित किया गया है। वे विभिन्न तरह के गीत गाती हैं, जैसे पूरबी सोहर, पचरा, 
गांधी गीत, रिवर सॉन्ग, छठ गीत कजरी और ठुमरी। वे मैथिली और भोजपुरी अकादमी, दिल्ली 
सरकार के लिए दुर्लभ और ग्रामीण भोजपुरी गीत पर अनुसंधान कर रही हैं। 

चलनी के चालल दुलहा, सूप के झटकारल हे ;
दिअका के लागल बर, दुआरे बाजा बाजल हे

आँवा के पाकल दुलहा, झाँवा के झारल हे ;
कलछुल के दागल, बकलोलपुर के भागल हे

सासु का अँखिया में अन्हवट बा छावल हे ;
आइ कs देखऽ बर के पान चभुलावल हे

आम लेखा पाकल दुलहा, गाँव के निकालल हे ;
अइसन बकलोल बर चटक देव का भावल हे

मउरी लगावल दुलहा, जामा पहिरावल हे ;
कहत ‘भिखारी’ हवन राम के बनावल हे
*भिखारी ठाकुर, बेटी बेचवा (नाटक में प्रयुक्त गीत)

भावार्थ

चलनी के चालल दुलहा, सूप के फटकारल हे, 
दिअका के लागल बर, दुआरे बाजा बाजल हे।

दो चरण में दूल्हे का मजाक

भोजपुरी समाज में जब शादी के लिए दूल्हा कन्या के घऱ पहुंचता है 
तो महिलाएं उसका बहुत मजाक उड़ाती हैं..इसी वक्त का दृश्य है यह..
जिसमें कहा जा रहा है कि दूल्हा छलनी का छाना हुआ है..सूप से उसे 
फटकार कर साफ किया गया है..

चूंकि दूल्हा खूब सजाधजा है..तो उस पर हास्य से भीगा व्यंग्य है..

आँवा के पाकल दुलहा, झाँवा के झारल हे;
कलछुल के दागल, बकलोलपुर के भागल हे।


यानी कुम्हार के आवां में दूल्हे को पकाया गया है..झांवा (एक तरह का ईंट, 
कुछ-कुछ गंदी एड़ियां साफ करने वाले पत्थर जैसी ) से उसे साफ किया गया है..
कलछी से उसे दागा गया है और बेवकूफपुर से भाग कर आया है..

दो चरण में दूल्हे का मजाक उड़ाए जाने के बाद वह अच्छा भी लगने लगता है...
चूंकि दूल्हा सास को पसंद नहीं आ रहा है तो सास का भी इस गीत में कैसे मजाक 
उड़ाया गया है..

सासु का अंखिया में अन्हवट बा छावल हे,
आइ कs देखऽ बर के पान चभुलावल हेsss।

मउरी लगावल दुलहा

यानी सास की आंख में अंधेरा छा गया है..उससे कहा जा रहा है कि आकर देखो अपने 
वर को..किस तरह मुंह में पान घुला रहा है। फिर दूल्हे का मजाक शुरू हो जाता है- 

आम लेखा पाकल दुलहा, गाँव के निकालल हे,
अइसन बकलोल बर चटक देवा का भावल हे।


यानी दूल्हा आम जैसा पका हुआ है...और गांव से निकाला हुआ है.. फिर व्यंग्य भी है..
कि ऐसा बेवकूफ दूल्हा भी हमारी सुंदर कन्या के लायक है..और आखिर में दूल्हे का 
किस तरह स्वीकार है ..गीत की आखिरी पंक्तियों में देखिए..

मउरी लगावल दुलहा, जामा पहिरावल हे,
कहत ‘भिखारी’ हवन राम के बनावल हे।


भोजपुरी समाज में दूल्हे के सिर पर मुकुट जैसा मौर्य पहनाया जाता है..जिसे मऊरी 
कहा जाता है...यानी दूल्हा मौर्य से सज्जित है..बेहतरीन कपड़े में सजा हुआ ऐसा लग 
रहा है, जैसे खुद भगवान राम ने उसे बनाया है..

इस गीत में देखिए..सारे उपमान ठेठ भोजपुरी समाज से लिए गए हैं..भिखारी की 
यही खासियत है और यही उनकी ताकत भी...इस गीत को चंदन तिवारी ने अपना 
सुर दिया है..उसे सुनते वक्त जिन्होंने भोजपुरी शादियां देखीं हैं, उनके सामने पूरी 
परंपरा, संस्कृति और उपमान जैसे जीवित हो जाते हैं..

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