शूल हस्त, वृषारूढ़ ;
वन्दन वाञ्छित लाभ हेतु,
यशस्विनि! शैलपुत्री माँ !"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
मूल श्लोक :
"वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।"
"वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।"
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