"सिंह पर आरूढ़, पिण्डज,
दैत्य दल पर अति कुपित।
विविध आयुध कर धरे,
माँ चन्द्रघण्टा इति, विश्रुत।।
हे ! तृतीया रूप, मुझको
निज कृपा का दो प्रसाद।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
'पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।"
(मूल श्लोक)
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