"मात्र एक वेणी है, जवाकुसुम-रक्त-कर्ण ;
गर्दभ आरूढ़, नग्न, तैल से सना शरीर ;
लम्बे ओष्ठ और कान कर्णिका-सुमन समान ;
वाम पद में जिनके लता-कंटक आभूषण।
उन्नत ध्वज, कृष्ण वर्ण, रूप से भयंकरी
कालरात्रि माँ, सदा हम सब की रक्षा करें।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
लम्बे ओष्ठ और कान कर्णिका-सुमन समान ;
वाम पद में जिनके लता-कंटक आभूषण।
उन्नत ध्वज, कृष्ण वर्ण, रूप से भयंकरी
कालरात्रि माँ, सदा हम सब की रक्षा करें।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)
"एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोह लताकंटकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी।।"
(मूल श्लोक)
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