गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

भवान्यष्टकम् / आदि शङ्कराचार्य कृत / स्वर : माधवी मधुकर झा

 https://youtu.be/KHQGmOCP7hQ 

शंकराचार्य कृत भवान्यष्टकम् ...

भवान्यष्टकम्  (भवानि अष्टकम्)

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥१॥


हे भवानि! पिता, माता, भाई, दाता, पुत्र, पुत्री, भृत्य, स्वामी, स्त्री, विद्या और वृत्ति–इनमें से कोई भी मेरा नहीं है, हे देवि! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो।

भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥२॥


मैं अपार भवसागर में पड़ा हूँ, महान दु:खों से भयभीत हूँ, कामी, लोभी, मतवाला तथा घृणायोग्य संसार के बन्धनों में बँधा हुआ हूँ, हे भवानि! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥३॥


हे देवि! मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ध्यानमार्ग का ही मुझे पता है, तन्त्र और स्तोत्र-मन्त्रों का भी मुझे ज्ञान नहीं है, पूजा तथा न्यास आदि की क्रियाओं से तो मैं एकदम कोरा हूँ,अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥४॥


न पुण्य जानता हूँ, न तीर्थ, न मुक्ति का पता है न लय का। हे माता! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञात नहीं है, हे भवानि! अब केवल तुम्हीं मेरा सहारा हो।

कुकर्मी कुसंगी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥५॥


मैं कुकर्मी, बुरी संगति में रहने वाला, दुर्बुद्धि, दुष्टदास, कुलोचित सदाचार से हीन, दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि रखने वाला और सदा दुर्वचन बोलने वाला हूँ, हे भवानि! मुझ अधम की एकमात्र तुम्हीं गति हो।

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥६॥


मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र, सूर्य, चन्द्रमा तथा अन्य किसी भी देवता को नहीं जानता, हे शरण देने वाली भवानि! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥७॥


हे शरण्ये! तुम विवाद, विषाद, प्रमाद, परदेश, जल, अनल, पर्वत, वन तथा शत्रुओं के मध्य में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानि! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥८॥


हे भवानि! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी, अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूंगा, विपदा से ग्रस्त और नष्ट हूँ, अब तुम्हीं एकमात्र मेरी गति हो।

। इति श्रीमच्छड़्कराचार्यकृतं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम् ।


आदि शंकराचार्य  द्वारा भवानि अष्टकम् की रचना के पीछे की कथा 

जगत गुरु आदि शंकराचार्य ने भवानी अष्टकम् की रचना की है। माँ भगवती के चरणों को समर्पित है यह सुन्दर रचना। यह स्तोत्र भवानी अष्टकम् न केवल दिव्य है बल्कि भक्ति और प्रेम से भर देता है।

भवानी अष्टकम् लिखने के पीछे की कहानी इस प्रकार है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आदि शंकर भगवान शिव के परम भक्त थे। हालाँकि, उन्होंने भगवान शिव की स्तुति में कई श्लोक लिखे लेकिन भगवती के बारे में कुछ नहीं लिखा।

एक बार ऐसा हुआ कि जगत गुरु आदि शंकराचार्य बीमार पड़ गये और उन्हें अत्यधिक प्यास लगी। लेकिन वह खुद पानी का गिलास उठाकर भी पानी नहीं पी सकते थे। वह शरीर से इतने कमजोर हो चुके थे। उस समय माता भगवती प्रकट हुईं परन्तु उनकी कोई मदद नहीं कीं।

जब गुरु जी ने माता से पूछा कि वह उनके इस रोग का इलाज क्यों नहीं कर रही हैं। तब माता भवानी ने उत्तर दिया कि अब आपके भगवान शिव कहाँ हैं जिनकी स्तुति में आपने इतनी कविताएँ लिखी हैं।

आप भगवान शिव से मदद मांगें। अंत में, आदि शंकराचार्य को अपनी गलती का एहसास हुआ और भवानी अष्टकम् की रचना हुई | भक्ति का अमृत शक्ति उपासकों तक भी पहुंचना चाहिए। इसलिए उन्होंने यह मनमोहक भवानी अष्टकम् लिखा है।

भवानी अष्टकम् में माँ भवानी की स्तुति में आठ श्लोक हैं जिसमें माता के कठोर रूप का वर्णन है फिर भी दया से भरी हुई हैं। इसके अलावा माँ भवानी, जो कोई भी इस स्तोत्र को प्यार और पूरी भक्ति के साथ पढ़ता है, उसे शक्ति, स्वास्थ्य और धन प्रदान करती हैं।

ENGLISH TRANSLITERATION AND TRANSLATION

Na Putro Na Putrii Na Bhrtyo Na Bhartaa | Na Jaayaa Na Vidyaa Na Vrttir-Mama-Iva Gatis-Tvam Gatis-Tvam Tvam-Ekaa Bhavaani ||1|| Meaning: 1.1: Neither the Father, nor the Mother; Neither the Relation and Friend, nor the Donor, 1.2: Neither the Son, nor the Daughter; Neither the Servant, nor the Husband, 1.3: Neither the Wife, nor the (worldly) Knowledge; Neither my Profession, 1.4: You are my Refuge, You Alone are my Refuge, Oh Mother Bhavani. Bhavaabdhaav-Apaare Mahaa-Duhkha-Bhiiru Papaata Prakaamii Pralobhii Pramattah | Ku-Samsaara-Paasha-Prabaddhah Sada-[A]ham Gatis-Tvam Gatis-Tvam Tvam-Ekaa Bhavaani ||2|| Meaning: 2.1: In this Ocean of Worldly Existence which is Endless, I am full of Sorrow and Very much Afraid, 2.2: I have Fallen with Excessive Desires and Greed, Drunken and Intoxicated, 2.3: Always Tied in the Bondage of this miserable Samsara (worldly existence), 2.4: You are my Refuge, You Alone are my Refuge, Oh Mother Bhavani. Na Jaanaami Daanam Na Ca Dhyaana-Yogam Na Jaanaami Tantram Na Ca Stotra-Mantram | Na Jaanaami Puujaam Na Ca Nyaasa-Yogam Gatis-Tvam Gatis-Tvam Tvam-Ekaa Bhavaani ||3|| Meaning: 3.1: Neither do I know Charity, nor Meditation and Yoga, 3.2: Neither do I know the practice of Tantra, nor Hymns and Prayers, 3.3: Neither do I know Worship, nor dedication to Yoga, 3.4: You are my Refuge, You Alone are my Refuge, Oh Mother Bhavani Na Jaanaami Punnyam Na Jaanaami Tiirtha Na Jaanaami Muktim Layam Vaa Kadaacit | Na Jaanaami Bhaktim Vratam Vaapi Maatar-Gatis-Tvam Gatis-Tvam Gatis-Tvam Tvam-Ekaa Bhavaani ||4|| Meaning: 4.1: Neither do I Know Virtuous Deeds, nor Pilgrimage, 4.2: I do not know the way to Liberation, and with little Concentration and Absorption, 4.3: I know neither Devotion, nor Religious Vows; Nevertheless Oh Mother, 4.4: You are my Refuge, You Alone are my Refuge, Oh Mother Bhavani. Ku-Karmii Ku-Sanggii Ku-Buddhih Kudaasah Kula-[Aa]caara-Hiinah Kadaacaara-Liinah | Ku-Drssttih Ku-Vaakya-Prabandhah Sada-[A]ham Gatis-Tvam Gatis-Tvam Tvam-Ekaa Bhavaani ||5|| Meaning: 5.1: I performed Bad Deeds, associated with Bad Company, cherished Bad Thoughts, have been a Bad Servant, 5.2: I did not perform my Traditional Duties, deeply engaged in Bad Conducts, 5.3: My eyes Saw with Bad Intentions, tongue always Spoke Bad Words, 5.4: You are my Refuge, You Alone are my Refuge, Oh Mother Bhavani. Praje[a-Is]sham Rame[a-Is]sham Mahe[a-Is]sham Sure[a-Is]sham Dine[a-Is]sham Nishiithe[a-I]shvaram Vaa Kadaacit | Na Jaanaami Caanyat Sada-[A]ham Sharannye Gatis-Tvam Gatis-Tvam Tvam-Ekaa Bhavaani ||6|| Meaning: 6.1: Little do I know about The Lord of Creation (Brahma), The Lord of Ramaa (Goddess Lakshmi) (Vishnu), The Great Lord (Shiva), The Lord of the Devas (Indra), 6.2: The Lord of the Day (Surya) or The Lord of the Night (Chandra), 6.3: I do not know about other gods, but always seeking Your Refuge, 6.4: You are my Refuge, You Alone are my Refuge, Oh Mother Bhavani. Vivaade Vissaade Pramaade Pravaase Jale Ca-[A]nale Parvate Shatru-Madhye | Arannye Sharannye Sadaa Maam Prapaahi Gatis-Tvam Gatis-Tvam Tvam-Ekaa Bhavaani ||7|| Meaning: 7.1: During Dispute and Quarrel, during Despair and Dejection, during Intoxication and Insanity, in Foreign Land, 7.2: In Water, and Fire, in Mountains and Hills, amidst Enemies, 7.3: In Forest, please Protect me, 7.4: You are my Refuge, You Alone are my Refuge, Oh Mother Bhavani. Anaatho Daridro Jaraa-Roga-Yukto Mahaa-Kssiinna-Diinah Sadaa Jaaddya-Vaktrah | Vipattau Pravissttah Pranassttah Sadaaham Gatis-Tvam Gatis-Tvam Tvam-Ekaa Bhavaani ||8|| Meaning: 8.1: I am Helpless, Poor, Afflicted by Old Age and Disease, 8.2: Very Weak and Miserable, always with a Pale Countenance, 8.3: Fallen Asunder, Always surrounded by and Lost in Troubles and Miseries, 8.4: You are my Refuge, You Alone are my Refuge, Oh Mother Bhavani.

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