https://youtu.be/9H0XU3-gFno
साखी
1 -सतयुग त्रेता द्वापुर, यह कलियुग अनुमान।
सार शब्द एक साँच है, और झूठ सब ज्ञान ॥
भजन
चेत रे गुमानी फिर ये जन्म ना मिलेगा ।
माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥ टेक ॥
दस से सोलह गये खेल में , बीस गये माया कि गेल में ।
चालीस साल तिरिया की सेज पे , पचपन नाड़ी हिलेगा ॥1 ॥
माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥
चेत रे गुमानी फिर ये जन्म ना मिलेगा ।
माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥
काली गई सफेदी आई, तन की खाल उखड़ सब जाई।
बंदर जैसा मुँह हो जाये, डगमग नाड हिलेरे ॥2 ॥
माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥
चेत रे गुमानी फिर ये जन्म ना मिलेगा ।
माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥
तू केहता है मेरी मेरी, ये माया तेरी ना मेरी ।
धन दौलत थारा यहीं रह जावे, अग्नी के साथ जलेगा ॥3 ॥
माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥
चेत रे गुमानी फिर ये जन्म ना मिलेगा ।
माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥
भजन करेगा तो सुख पावेगा, धन दौलत थारी काम नी आवेगा ।
धन दौलत थारी यहीं रेह जावे, केहत कबीर विचारी ॥४ ॥
माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥
चेत रे गुमानी फिर ये जन्म ना मिलेगा ।
माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥
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