मंगलवार, 30 नवंबर 2021

श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन.../ संत तुलसीदास / सिवस्री स्कन्द्प्रसाद

 https://youtu.be/g7kFcat7ZCQ

गोपिका जीवन स्मरणं 
गोविन्द गोविन्द 
जानकी कान्त स्मरणं 
जय जय राम राम 
सद्गुरु न्यानानन्दमूर्ति की 
जय.....

"श्री राघवं दशरथात्मजं अप्रमेयं I 
सीतापतिं रघुकुलांवय रत्नदीपं II 
आजानबाहुम् अरविंददळायताक्षं I 
रामं निशाचर विनाशकरं नमामी II" 

I bow down to lord Rama, the son of King Dasharath, 
who is the ultimate one, the glorious scion of Raghu ; 
he who is the spouse of Sita, the bejewelled lamp of 
Raghu's race (Suryavanshi clan), he who has long 
hands and lotus-like eyes; he who is the destroyer of 
the demons and evil forces and the one who restored 
the good! .

श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तड़ित रुचि शुचि नौमि जनकसुता वरं ॥२॥

भज दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

भावार्थ 
हे मन कृपालु श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर। वे संसार के जन्म-मरण रूपी दारुण 
भय को दूर करने वाले हैं।उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान हैं। मुख-हाथ 
और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥
उनके सौन्दर्य की छ्टा अगणित कामदेवों से बढ़कर है। उनके शरीर का नवीन 
नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है। पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली 
के समान चमक रहा है। ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मैं नमस्कार 
करता हूँ ॥२॥
हे मन दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यों के वंश का समूल 
नाश करने वाले,आनन्दकन्द कोशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चन्द्रमा के समान 
दशरथनन्दन श्रीराम का भजन कर ॥३॥
जिनके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट, कानों में कुण्डल भाल पर तिलक, और प्रत्येक 
अंग मे सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं। जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं। जो 
धनुष-बाण लिये हुए हैं, जिन्होनें संग्राम में खर-दूषण को जीत लिया है ॥४॥
जो शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले और काम, क्रोध, लोभादि 
शत्रुओं का नाश करने वाले हैं,तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे 
हृदय कमल में सदा निवास करें ॥५॥

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