https://youtu.be/g7kFcat7ZCQ
गोपिका जीवन स्मरणं
गोविन्द गोविन्द
जानकी कान्त स्मरणं
जय जय राम राम
सद्गुरु न्यानानन्दमूर्ति की
जय.....
"श्री राघवं दशरथात्मजं अप्रमेयं I
सीतापतिं रघुकुलांवय रत्नदीपं II
आजानबाहुम् अरविंददळायताक्षं I
रामं निशाचर विनाशकरं नमामी II"
I bow down to lord Rama, the son of King Dasharath,
who is the ultimate one, the glorious scion of Raghu ;
he who is the spouse of Sita, the bejewelled lamp of
Raghu's race (Suryavanshi clan), he who has long
hands and lotus-like eyes; he who is the destroyer of
the demons and evil forces and the one who restored
the good! .
श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तड़ित रुचि शुचि नौमि जनकसुता वरं ॥२॥
भज दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥
शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥५॥
- भावार्थ
- हे मन कृपालु श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर। वे संसार के जन्म-मरण रूपी दारुण
- भय को दूर करने वाले हैं।उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान हैं। मुख-हाथ
- और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥
- उनके सौन्दर्य की छ्टा अगणित कामदेवों से बढ़कर है। उनके शरीर का नवीन
- नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है। पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली
- के समान चमक रहा है। ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मैं नमस्कार
- करता हूँ ॥२॥
- हे मन दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यों के वंश का समूल
- नाश करने वाले,आनन्दकन्द कोशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चन्द्रमा के समान
- दशरथनन्दन श्रीराम का भजन कर ॥३॥
- जिनके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट, कानों में कुण्डल भाल पर तिलक, और प्रत्येक
- अंग मे सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं। जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं। जो
- धनुष-बाण लिये हुए हैं, जिन्होनें संग्राम में खर-दूषण को जीत लिया है ॥४॥
- जो शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले और काम, क्रोध, लोभादि
- शत्रुओं का नाश करने वाले हैं,तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे
- हृदय कमल में सदा निवास करें ॥५॥
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