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https://youtu.be/10v4DFU7UN4
https://youtu.be/Wwf_X_TG-Us
हर फूलों से मथुरा छाय रही हर फूलों से मथुरा छाय रही पूरब झरोखे विष्णु जी बैठे लक्ष्मी झूला झूलाय रही हर फूलों......./ पश्चिम झरोखे से भोले जी बैठे गौरा झूला झूलाय रही हर फूलों......./ उत्तर झरोखे से राम जी बैठे सीता झूला झूलाय रही हर फूलों...../ दक्षिण झरोखे से कृष्णा जी बैठे राधा झूला झूलाय रही हर फूलों....।।
https://youtu.be/nIumZ50Bz7Y
https://youtu.be/dkDMT6RQ7Pw
https://youtu.be/hc5aCV63cmc
राघव पे जनि रंग डारो री।।राघव पे।।
कोमलगात बयस अति थोरी।
मूरति मधुर निहारो री।।राघव पे।।
सकुचि सभीत छिपे आँचर महँ।
कुछ तो दया विचारो री।।राघव पे।।
विविध शृङ्गार बिरचि साजो हौं।
दृग अंजन न बिगारो री।।राघव पे।।
बरजोरी भावज रघुवर की।
जनि मारो पिचकारी री।।राघव पे।।
'गिरिधर' प्रभु की ओरी हेरी।
होरी खेल सुधारो री।।राघव पे।।
https://youtu.be/1XZL4ZDCkCk
https://youtu.be/ct8BwGsfJ4Q
https://youtu.be/ZZdozrTf_V0
https://youtu.be/ysPBb3Ee2lQ
https://youtu.be/v7RRW6f1zJo
https://youtu.be/aOobHpY_OEM
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
খেলে আনন্দ নবঘন শ্যাম সাথে।
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
পিরীতি–ফাগ মাখা গোরীর সঙ্গে
হোরি খেলে হরি উন্মাদ রঙ্গে।
পিরীতি–ফাগ মাখা গোরীর সঙ্গে
হোরি খেলে হরি উন্মাদ রঙ্গে।
বসন্তে এ কোন্ কিশোর দুরন্ত
বসন্তে এ কোন্ কিশোর দুরন্ত
রাধারে জিনিতে এলো পিচ্কারী হাতে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
গোপীনীরা হানে অপাঙ্গ খর শর
ভ্রুকুটি ভঙ্গ অনঙ্গ আবেশে
জর জর থর থর জর জর থর থর
শ্যামের অঙ্গ।
শ্যামল তনুতে হরিত কুঞ্জে
অশোক ফুটেছে যেন পুঞ্জে পুঞ্জে
শ্যামল তনুতে হরিত কুঞ্জে
অশোক ফুটেছে যেন পুঞ্জে পুঞ্জে
রঙ–পিয়াসি মন ভ্রমর গুঞ্জে
রঙ–পিয়াসি মন ভ্রমর গুঞ্জে
ঢালো আরো ঢালো রঙ
ঢালো আরো ঢালো রঙ
প্রেম–যমুনাতে।।
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
খেলে আনন্দ নবঘন শ্যাম সাথে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
হোরী রে
ব্রজ গোপী খেলে হোরী
https://youtu.be/QgVTtUWO4mg
जीर सन धनी मोर पातरि, चान सन सुन्नरी हे ललना रे फूल सन धनि सुकुमारि बेदन कोना सहतीहि हे। मांगि एलों देवता पितर सँ, पूजी एलों गहवर हे ललना रे निपी एलों देवी चिनवार, भरल आई नव घर हे। दसरथ लेल सुत राम , जनक लेल सिया धिया हे ललना रे जगतक लेल अनमोल, रतन दुनु सिया राम हे। उगले पुरुब दिस सुरुज, चनरमा पछिम दिस हे ललना रे चहु दिस भेल उजियार, भागल दुख कोन दिस हे। धरती सहय जेना बरखा, सहय जेना पाथर हे ललना रे जननी सहय दुख भारी भीजय नोरे आँचर हे। डुमरी के फूल नहि देखल, केरा फरय एक बेर हे ललना रे हरिन जनम नहि देब, बेदन सहय बेर बेर हे।
https://youtu.be/-7chY3tsgr4
चल रहा हूँ, क्योंकि चलने से थकावट दूर होती,
जल रहा हूँ क्योंकि जलने से तमिस्त्रा चूर होती,
गल रहा हूँ क्योंकि हल्का बोझ हो जाता हृदय का,
ढल रहा हूँ क्योंकि ढलकर साथ पा जाता समय का।
चाहता तो था कि रुक लूँ पार्श्व में क्षण-भर तुम्हारे
किन्तु अगणित स्वर बुलाते हैं मुझे बाँहे पसारे,
अनसुनी करना उन्हें भारी प्रवंचन कापुरुषता
मुँह दिखाने योग्य रक्खेगी ना मुझको स्वार्थपरता।
इसलिए ही आज युग की देहली को लाँघ कर मैं-
पथ नया अपना रहा हूँ
पर तुम्हें भूला नहीं हूँ।।
ज्ञात है कब तक टिकेगी यह घड़ी भी संक्रमण की
और जीवन में अमर है भूख तन की, भूख मन की
विश्व-व्यापक-वेदना केवल कहानी ही नहीं है
एक जलता सत्य केवल आँख का पानी नहीं है।
शान्ति कैसी, छा रही वातावरण में जब उदासी
तृप्ति कैसी, रो रही सारी धरा ही आज प्यासी
ध्यान तक विश्राम का पथ पर महान अनर्थ होगा
ऋण न युग का दे सका तो जन्म लेना व्यर्थ होगा।
इसलिए ही आज युग की आग अपने राग में भर-
गीत नूतन गा रहा हूँ,पर तुम्हें भूला नहीं हूँ।।
https://youtu.be/Z3H7NmiNtnc
https://youtu.be/NMZ_Ij4YP1o