https://youtu.be/nIumZ50Bz7Y
होरी खेलूँगी श्याम संग जाय - घनानंद ग्रंथावली
होरी खेलूँगी श्याम संग जाय,
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [१]
फागुन आयो…फागुन आयो…फागुन आयो री
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री
वो भिजवे मेरी सुरंग चुनरिया,
मैं भिजवूं वाकी पाग।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [२]
चोवा चंदन और अरगजा,
रंग की पडत फुहार।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [३]
लाज निगोडी रहे चाहे जावे,
मेरो हियडो भर्यो अनुराग।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [४]
आनंद घन जेसो सुघर स्याम सों,
मेरो रहियो भाग सुहाग।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [५]
- श्री घनानंद जी / घनानंद ग्रंथावली
हे सखी, बड़े भाग्य से फागुन का यह उत्सव आया है,
मैं जाकर श्याम के संग होली खेलूंगी। [१]
सखी, बड़े भाग्य से फागुन (होली उत्सव) आया है,
इसमें श्री कृष्ण सुन्दर रंगों से मेरी चुनरी को भिगो देंगे
और मैं उनकी पाग को भिगोऊँगी । [२]
इत्र, चन्दन, सुगन्धित उबटन, एवं रंगों की फुहार पड़ रही है,
सखी, बड़े भाग्य से फागुन (होली उत्सव) आया है। [३]
आज चाहे लाज रहे अथवा जाये मुझे इसकी कोई परवाह नहीं,
क्योंकि मेरा ह्रदय तो अनुराग से भरा है। सखी, बड़े भाग्य से
फागुन (होली उत्सव) आया है। [४]
श्री घनानंद जी कहते हैं कि "परमानंद एवं सुंदरता के घर
श्री कृष्ण से अनंतकाल तक मेरा संबंध ऐसे ही बना रहे।
सखी, बड़े भाग्य से फागुन (होली उत्सव) आया है।" [५]
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