https://youtu.be/ZZdozrTf_V0
सोम ठाकुर (जन्म- ५ मार्च, १९३४, आगरा, उत्तर प्रदेश),
रचनाकार हैं। वे बड़े ही सहज, सरल व संवेदनशील व्यक्तित्व के कवि है।
मॉरिसस भेजे गए। बाद में ये अमेरिका चले गए। वापस लौटने पर इन्हें
'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और राज्यमंत्री
का दर्जा दिया गया। इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए इन्हें 2006 में
'यशभारती सम्मान' और वर्ष 2009 में दुष्यंत कुमार अलंकरण प्रदान किया गया।
वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं,
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
ज़िंदगी की रंगशाला में मुझे
रोज़ अभिनय के लिए भेजा गया।
और कुछ आया न आया, पर मुझे,
दर्द से संवाद करना आ गया।
भावना अपराध से नापी गयी,
यक्ष अभिशापित हुआ, मेरी तरह।।
वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं,
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
मैं रहा जब तक, अँधेरे चुप रहे;
रात की साज़िश सभी नाक़ाम थी।
रोशनी मैंने कमाई थी सदा
पर विरासत जुगनुओं के नाम थी।
चाँदनी की राजधानी के लिए,
चाँद निर्वाचित हुआ मेरी तरह।।
वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं,
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
शूल को मैं, फूल से तौला किया,
सिर्फ़ इतनी सी कमी, मुझमें रही।
रात की, दिन की, सुबह की, शाम की;
जो कही मैंने कहानी, सच कही।।
सामने ही झूठ का पूजन हुआ,
सत्य अपमानित हुआ मेर तरह।।
वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं,
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
शब्द के कारागृहों को छोड़ कर,
अर्थ जब आज़ाद हो कर, आ गया।
मिल नहीं पायी उसे कोई शरण,
अंत में मेरा तपोवन पा गया।
बाण बींधे आंसुओं से श्लोक तक,
मौन संवादित हुआ, मेरी तरह।।
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
मैं उठा तो सिंधु बादल हो गया,
मैं चला तो बिजलियाँ गाने लगीं।
मैं रुका तो रुक गया, पारस पवन,
खुश्बुएं घर लौट कर जाने लगीं।
गीत होठों पर, दृगों में जागरण,
प्यार परिभाषित हुआ मेरी तरह।।
वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं,
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।
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