शनिवार, 31 दिसंबर 2011
शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011
चली हवा तो रुकी कश्तियां लगीं हिलने......
ग़ज़ल
-अरुण मिश्र.
चली हवा तो, रुकी कश्तियां, लगीं हिलने।
घटायें फिर से, तेरी यादों की, लगीं घिरने॥
तुम्हारे टाँके बटन, औ' तेरा बुना स्वेटर।
बदन पे मेरे, तेरी उँगलियाँ, लगीं फिरने॥
हरा है हो रहा, फिर से शज़र उमीदों का।
उदासियों की ज़र्द पत्तियां, लगीं गिरने॥
समाईं झील सी आँखें, जो मेरी आँखों में।
हसीन ख़्वाबों की हैं मछलियां लगीं तिरने॥
'अरून' जो अब्र हैं छाये, तेरे तसव्वुर के।
फुहारें रस की हैं अ'शआर से, लगीं गिरने॥
*
सोमवार, 26 दिसंबर 2011
फिर वही शोख़ पुरजमाल आये............
ग़ज़ल
-अरुण मिश्र .
बेख़याली में ये ख़याल आये।
फिर वही शोख़ पुरजमाल आये॥
फिर उन्हीं मस्तियों के दिन लौटें।
फिर वही रोज़ो-माहो-साल आये॥
फिर वही हो, जुनून का आलम।
फिर मेरे जोश में उबाल आये॥
अब न क्या गर्ज कुछ, उसे मुझसे।
पहले ख़त जिसके,सालों-साल आये॥
वो जो आये, तो कुछ ज़वाब मिले।
उसको लेकर, कई सवाल आये॥
जी हुआ हल्का 'अरुन', दिल दे कर।
एक थी फॉस, सो निकाल आये॥
*
रविवार, 18 दिसंबर 2011
बस जरा ही तो बढ़ा है तेरा मुझसे फासला...............
ग़ज़ल
-अरुण मिश्र.
तुम न आये मेरी मय्यत पे चलो अच्छा हुआ।
सांस के संग साथ का भी सिलसिला जाता रहा॥
लोग जो रिश्तों को ले इक उम्र गफ़लत में रहे।
उनकी भी छाती हुई ठंढी , सुकूँ इसका रहा॥
जब तलक थे मंच पे , पर्दा तआल्लुक का रहा।
और तब पर्दा उठा, जब अंत में पर्दा गिरा॥
सख्श जो ख़ातिर तिरे, मुझसे सदा जलता रहा।
आज वो भी ग़मज़दा, उसका भरम टूटा हुआ॥
मैं नहीं, फिर भी 'अरुन' ज़िन्दा मेरे एहसास हैं।
बस जरा ही तो बढ़ा है , तेरा मुझसे फासला॥
*
शनिवार, 17 दिसंबर 2011
अपने चारों ओर देखो...
ग़ज़ल
-अरुण मिश्र .
अपने चारों ओर देखो, जो बड़े सरनाम हैं।
बेशतर इंसानियत के नाम पर दुश्नाम हैं।।
ताक़तो-दौलत व शोहरत,जिसपे है जितनी यहॉ।
उसपे उतनी तीरग़ी, उतने ही ओछे काम हैं।।
ऐश , रुतबा है, अकड़ है, हेकड़ी है, ऐंठ है।
फ़ख्र करने के लिये, उसपे कई इनआम् हैं।।
दिल लिये, नेक़ी लिये, नीयत,शराफ़त को लिये।
हम ‘अरुन’ इस दौर में, नाहक़ हुये बदनाम हैं।।
*
रविवार, 11 दिसंबर 2011
सरापा-नाज़ से क्या पूछें...........
ग़ज़ल
सरापा-नाज़ से क्या पूछें...........
-अरुण मिश्र.
सरापा-नाज़ से क्या पूछें, नाज़ुकी क्यों है।
उठी निगाह है, लेकिन पलक झुकी क्यों है॥
तुम्हारी खामशी , किस्से बयान करती है।
मैं जग रहा हूँ , मेरी नींद सो चुकी क्यों है॥
तुम्हारे बिन जो जिये, सोचते रहे अक्सर।
रवां है साँस पर, लगती रुकी-रुकी क्यों है॥
बहुत सलीके से हमने तो दिल की बात कही।
तुम्ही कहो भला, ये बात बेतुकी क्यों है॥
कहे था दिल, ये कहेंगे, वो कहेंगे तुझसे।
पर 'अरुन' रूबरू,हिम्मत चुकी-चुकी क्यों है॥
*
सरापा-नाज़ से क्या पूछें...........
-अरुण मिश्र.
सरापा-नाज़ से क्या पूछें, नाज़ुकी क्यों है।
उठी निगाह है, लेकिन पलक झुकी क्यों है॥
तुम्हारी खामशी , किस्से बयान करती है।
मैं जग रहा हूँ , मेरी नींद सो चुकी क्यों है॥
तुम्हारे बिन जो जिये, सोचते रहे अक्सर।
रवां है साँस पर, लगती रुकी-रुकी क्यों है॥
बहुत सलीके से हमने तो दिल की बात कही।
तुम्ही कहो भला, ये बात बेतुकी क्यों है॥
कहे था दिल, ये कहेंगे, वो कहेंगे तुझसे।
पर 'अरुन' रूबरू,हिम्मत चुकी-चुकी क्यों है॥
*
शनिवार, 3 दिसंबर 2011
मधु-रजनी.........
मधु-रजनी
-अरुण मिश्र.
आज सुहानी रात, सुन्दरी,
सिहर रहे तरु पात, सुन्दरी |
फूली आशाओं की बगिया ,
फलती मन की बात, सुन्दरी ||
तुममें और प्रकृति में देखो
कैसा साम्य सजा है, रानी |
जो मेरे-तेरे मन में है ,
रात रचाती, वही कहानी ||
नभ-गंगा का मनहर पनघट ,
सलज निशा, लेकर यौवन-घट |
गूँथ केश, तारक-कलिकायें,
नुपुर से मुखरित करती तट ||
मधुर चाँद चेहरा है जिसका ,
उमर , उमंगें , सब कुछ, नटखट |
जाने क्यूँ डाले है फिर भी ,
झीने बादल वाला घूँघट ??
किन्तु , हवा क्या कम शरारती ?
हटा रही है पल-पल अंचल |
बढ़ी जा रही है मधु-रजनी ,
धरती डगमग, पग प्रति, चंचल ||
श्यामल-श्यामल मेघ-खंड दो ,
लगा रहे हैं , काजल काले |
राका के स्वप्निल नयनों में ,
जगा रहे हैं , सपन निराले ||
चूनर, धवल उजास, सुन्दरी|
तारक, हीरक-हास , सुन्दरी |
आज लगा हो, ज्यूँ पूनम को,
सोलहवाँ मधुमास सुन्दरी ||
क्यूँ इतना शरमाई यामिनि?
झिझक-झिझक बढ़ रही ठगी सी|
प्राची में प्रीतम का घर है ,
प्रात मिलेगी, प्रीति पगी सी ||
यह शायद अभिसार प्रथम है ,
पथ मुदमंगल, मृदुल कुसुम हो |
मेरी तो यामिनि, निशि, राका ,
रजनी , तारक , चंदा तुम हो ||
*
मंगलवार, 29 नवंबर 2011
शफ़्फ़ाफ़ हीरे लखनऊ !................
शफ़्फ़ाफ़ हीरे लखनऊ !
-अरुण मिश्र.
बेशक़ीमत इल्मो-फ़न के , ऐ ज़ख़ीरे , लखनऊ।।
बज़्मे-तहज़ीबो-अदब के जल्वों पे हो के निसार।
हम हुये शैदाई तेरे , धीरे - धीरे लखनऊ।।
चार - सू चर्चा में है , योरोप से ईरान तक।
लज़्ज़ते - शीरीं - जु़बानी , औ’ ज़मीरे - लखनऊ।।
लच्क्षिमन जी ने किया आ कर के बिसरामो-क़याम।
कुछ तो ऐसा है, तिरे नदिया के तीरे, लखनऊ।।
*
-अरुण मिश्र.
(लखनऊ शहर में इस समय 'लखनऊ महोत्सव' चल रहा है |
इस अवसर पर दुनिया भर में सभी लखनऊ को चाहने वालों
एवं लखनऊ को प्यार करने वालों को यह रचना समर्पित है |
यह पूरी ग़ज़ल पिछले वर्ष २९ नवम्बर २०१० की पोस्ट में
उपलब्ध है | -अरुण मिश्र.)
ऐ ! अवध की खान के शफ़्फ़ाफ़ हीरे , लखनऊ।
बेशक़ीमत इल्मो-फ़न के , ऐ ज़ख़ीरे , लखनऊ।।
बज़्मे-तहज़ीबो-अदब के जल्वों पे हो के निसार।
हम हुये शैदाई तेरे , धीरे - धीरे लखनऊ।।
चार - सू चर्चा में है , योरोप से ईरान तक।
लज़्ज़ते - शीरीं - जु़बानी , औ’ ज़मीरे - लखनऊ।।
लच्क्षिमन जी ने किया आ कर के बिसरामो-क़याम।
कुछ तो ऐसा है, तिरे नदिया के तीरे, लखनऊ।।
*
रविवार, 27 नवंबर 2011
रविवार, 20 नवंबर 2011
ZE-HAL-E MISKIN............A TRIBUTE TO AMIR KHUSRAU
अमीर खुसरो की इस अमर रचना को मेरी विनम्र साहित्यिक प्रणामांजलि |
-अरुण मिश्र.
Ze-hal-e miskin makun taghaful,
-अरुण मिश्र.
ज़े-हाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफुल,
दुराय नैना, बनाय बतियाँ |
कि ताब-ए हिज्राँ नदारम ऐ जाँ ,
न लेहु काहे लगाय छतियाँ ||
न हाल-ए-ख़स्ता की कर तगाफ़ुल ,
दुराय नैना , बनाय बतियाँ |
कि ,हिज्र की ताब रखूँ न ऐ जाँ ,
न लेहु काहे लगाय छतियाँ ||
शबान-ए हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़,
व रोज़-ए वसलत चो उम्र कोताह|
सखी पिया को जो मैं न देखूं
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ ||.
दराज़ ज़ुल्फों सी हिज्र की शब ,
औ ’उम्र ज्यूँ कम,मिलन के दिन हैं |
सखी पिया को जो मैं न देखूं ,
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ ||
यकायक अज़ दिल दो चश्म-ए जादू ,
बसद फ़रेबम बबुर्द तस्कीं |
किसे परी है जो जा सुनावे ,
पियारे पी को हमारी बतियाँ ||
यकायक दिल से दो जादू नैनों
ने , सद फ़रेबों से चैन छीना |
किसे परी है जो जा सुनावे ,
पियारे पी को हमारी बतियाँ ||
चो शम्म’अ सोजाँ चो ज़र्रा हैराँ ,
हमेशा गिरयां बे इश्क आँ मेह |
न नींद नैना न अंग चैना ,
न आप आवें न भेजें पतियाँ ||
जली शम’अ की परीशाँ लौ सी ,
मैं इश्क की आग जलूँ हमेशा |
न नींद नैना न अंग चैना ,
न आप आवें न भेजें पतियाँ ||
बहक्क़-ए रोज़-ए विसाल-ए दिलबर,
की दाद मा रा ग़रीब खुसरौ |
समेत मन को वराय राखूँ ,
जो जाए पाऊँ पिया के खतियाँ ||
पिया मिलन के सुदिन के हक़ में ,
अगर हो हासिल ग़रीब खुसरौ |
समेट मन को वराय राखूँ ,
जो जाए पाऊँ पिया के खतियाँ ||
*
Ze-hal-e miskin makun taghaful,
Duraye naina banaye batiyan;
Ki tab-e hijran nadaaram ay jaan,
Na lehu kaahe lagaye chhatiyan.
Na hal-e-khasta ki kar taghaful,
Duraye naina banaye batiyan;
Ki, hijra ki tab rakhun na ay jaan,
Na lehu kaahe lagaye chhatiyan.
Shabaan-e hijran daraaz chun zulf,
Wa roz-e waslat cho umr kotaah;
Sakhi piya ko jo main na dekhun,
To kaise kaatun andheri ratiyan.
Daraaz zulfon si hijra ki shab,
Au’ umr jyun kam milan ke din hain;
Sakhi piya ko jo main na dekhun,
To kaise kaatun andheri ratiyan.
Yakayak az dil do chashm-e jaadoo,
Basad farebam baburd taskin;
Kise pari hai jo jaa sunaave,
Piyaare pi ko hamaari batiyan.
Yakayak dil se do jaadoo nainon
Ne, sad farebon se chain chheena;
Kise pari hai jo jaa sunaave,
Piyaare pi ko hamaari batiyan.
Cho sham’a sozan cho zarra hairan,
Hamesha giryan be ishq aan meh;
Na neend naina na ang chaina,
Na aap aaven na bhejen patiyan.
Jalee sham’a ki parishan lau si,
Main ishq ki aag jalun hamesha;
Na neend naina na ang chaina,
Na aap aaven na bhejen patiyan.
Bahaqq-e roz-e wisaal-e dilbar,
Ki daad ma ra ghareeb Khusrau;
Samet man ko waraaye raakhun,
Jo jaaye paaon piya ke khatiyan.
Piya Milan ke sudin ke haq men,
Agar ho haasil ghareeb Khusrau;
Samet man ko waraaye raakhun,
Jo jaaye paaon piya ke khatiyan.
*
बुधवार, 9 नवंबर 2011
मीत मेरे संग मेरे चल......
ग़ज़ल
-अरुण मिश्र
मीत मेरे, संग मेरे चल।
करने, जग के फेरे, चल॥
चलना ही तो जीवन है।
जीवन की धुन टेरे चल॥
रात बहुत आराम किया।उठ चल, सुबह-सबेरे चल॥
सूरज, जगा रहा तुझको।
कब के ख़त्म अँधेरे चल॥
भव-सागर की लहरों में।
कश्ती अपनी, खे रे! चल॥
वंशी-वन है, बुला रहा।
लकुट-कमरिया ले रे!चल॥
बंधन, बाधा, संशय, भ्रम।
तोड़ के सारे घेरे, चल॥
साधो, सच्ची साध अगर।
मन का मनका, फेरे चल॥
ठगिनी, ठगने को तैयार।
पीछे पड़े, लुटेरे, चल॥
सांझ हुई, सिमटा मेला।
चल नट, अपने डेरे, चल॥
*
*
सोमवार, 31 अक्टूबर 2011
रविवार, 30 अक्टूबर 2011
शनिवार, 29 अक्टूबर 2011
श्री लक्ष्मी-गणेश जी की आरती......
आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की....
टिप्पणी : २७ अक्टूबर,२०११ की पोस्ट में इस आरती के तब तक हुए दो छंद प्रस्तुत
किये गए थे | इसी क्रम में एक और छंद जोड़ कर आरती को पूर्ण करने का प्रयास किया है | टिप्पणी : २७ अक्टूबर,२०११ की पोस्ट में इस आरती के तब तक हुए दो छंद प्रस्तुत
आशा है तीन छंदों की यह आरती लक्ष्मी-गणेश भक्तों को रुचिकर लगेगी तथा उन्हें सुख एवं
संतुष्टि देगी | -अरुण मिश्र.
*आरती*
आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की |
आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की |
धन-वर्षणि की,शमन-क्लेश की ||
दीपावलि में संग विराजें |
कमलासन - मूषक पर राजें |
शुभ अरु लाभ, बाजने बाजें |
ऋद्धि-सिद्धि-दायक - अशेष की ||
मुक्त - हस्त माँ, द्रव्य लुटावें |
एकदन्त, दुःख दूर भगावें |
सुर-नर-मुनि सब जेहि जस गावें |
बंदउं, सोइ महिमा विशेष की ||
विष्णु-प्रिया, सुखदायिनि माता |
गणपति, विमल बुद्धि के दाता |
श्री-समृद्धि, धन-धान्य प्रदाता |
मृदुल हास की, रुचिर वेश की ||
माँ लक्ष्मी, गणपति गणेश की ||
गणपति, विमल बुद्धि के दाता |
श्री-समृद्धि, धन-धान्य प्रदाता |
मृदुल हास की, रुचिर वेश की ||
माँ लक्ष्मी, गणपति गणेश की ||
*
-अरुण मिश्र
गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011
श्री लक्ष्मी-गणेश जी की आरती.......
आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की |
धन-वर्षणि की,शमन-क्लेश की ||
दीपावलि में संग विराजें |
कमलासन - मूषक पर राजें |
शुभ अरु लाभ, बाजने बाजें |
ऋद्धि-सिद्धि-दायक - अशेष की ||
मुक्त - हस्त माँ, द्रव्य लुटावें |
एकदन्त , दुःख दूर भगावें |
सुर-नर-मुनि सब जेहि जस गावें |
बंदउं, सोइ महिमा विशेष की ||
*
-अरुण मिश्र
लक्ष्मी-गणेश की साथ-साथ पूजा होती है तो, एक संयुक्त आरती भी होनी चाहिए | पर, घर में
उपलब्ध आरती सग्रहों में ऐसी कोई संयुक्त आरती नहीं मिली | गणेश जी की जहाँ कई
आरती मिली, वहीँ लक्ष्मी जी की केवल एक आरती ही मिल पाई | ऐसा शायद सरस्वती-
पुत्रों के लक्ष्मी मैय्या के प्रति सहज पौराणिक अरुचि के कारण हो, जो अनावश्यक ही,
"लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम......" का दुराग्रह पाले रहते हैं और इसी कारण प्रायः
उन की विशेष कृपा से वंचित रह जाते हैं |
अस्तु, आज प्रातः एक संयुक्त आरती लिखने का प्रयास किया है, जिस के दो छंद,
दीपावली-पूजन के उपयोगार्थ, समस्त भक्त-जनों को सादर-सप्रेम प्रस्तुत हैं | -अरुण मिश्र .
टिप्पणी :
कल दीवाली-पूजन के समय मन में यह विचार आया कि, इस अवसर पर जब लक्ष्मी-गणेश की साथ-साथ पूजा होती है तो, एक संयुक्त आरती भी होनी चाहिए | पर, घर में
उपलब्ध आरती सग्रहों में ऐसी कोई संयुक्त आरती नहीं मिली | गणेश जी की जहाँ कई
आरती मिली, वहीँ लक्ष्मी जी की केवल एक आरती ही मिल पाई | ऐसा शायद सरस्वती-
पुत्रों के लक्ष्मी मैय्या के प्रति सहज पौराणिक अरुचि के कारण हो, जो अनावश्यक ही,
"लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम......" का दुराग्रह पाले रहते हैं और इसी कारण प्रायः
उन की विशेष कृपा से वंचित रह जाते हैं |
अस्तु, आज प्रातः एक संयुक्त आरती लिखने का प्रयास किया है, जिस के दो छंद,
दीपावली-पूजन के उपयोगार्थ, समस्त भक्त-जनों को सादर-सप्रेम प्रस्तुत हैं | -अरुण मिश्र .
बुधवार, 26 अक्टूबर 2011
सोमवार, 24 अक्टूबर 2011
बिन तुम्हारे............
.....फिर न मन पाई दिवाली
-अरुण मिश्र
बिन तुम्हारे,फिर न मन पाई दिवाली;
रात भर मैं चाँद को रोता रहा हूँ ||
हर पड़ोसी ने सजाई दीपमाला,
हर तरफ बिखरा पड़ा उत्साह, रूपसि!
एक स्मृति - वर्तिका, उर में जलाये,
देखता पर मन, तुम्हारी राह, रूपसि !!
हर तरफ जलते असंख्यों दीप,
पर मैं रात सारी,
मोम सा गलता, जमा होता रहा हूँ ||
फुलझड़ी की जगह, आँसू की झड़ी थी |
लोग आतिशबाजियों में जब मगन थे,
वर्जनायें, राह को रोके खड़ी थीं |
गेह मेरा, बहुत सूना लग रहा था ;
जब कि, सबके द्वार पर लक्ष्मी खड़ी थीं ||
लोग आतिशबाजियों में जब मगन थे,
तब स्वयं मैं,
ढेर इक , बारूद का होता रहा हूँ ||
*
*
मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011
अग्नि
शक्ति-रूपा अग्नि! तुझमें जायें सब कल्मष-कलुष जल......
-अरुण मिश्र
अग्निमय विस्फोट से,
की ब्रह्म ने है, सृष्टि रचना।
अग्निमय आलोक में ही,
देखती है, दृष्टि रचना॥
गहन-तम में ज्योति का है,
संचरण भी अग्निकर्मा।
और जिससे जग प्रकाशित,
वह किरण भी अग्निधर्मा॥
अग्निमय आकाश-मंडल,
अग्नि से निर्मित धरा है।
अग्नि से नक्षत्र चक्रित,
अग्नि से गति है, त्वरा है॥
अग्नि से सब लोक भासित,
अग्नि से संसार सारा।
देवता तक हवि पहुँचती,
अग्नि का ही ले सहारा॥
है धरा के कुक्षि में, ज्वाला-मुखी की ज्वाल चंचल।
अतल सागर के तलों में,
तप्त बड़वानल, रहा जल॥
सजल मेघों के हृदय में,
बन चपल चपला, चमकती।
शुष्क कानन-काष्ठ में है,
जड-शिला-घर्षित दहकती॥
अग्नि से ऊष्मा ग्रहण कर,
जगत के सब जीव उपजे।
ज्योति का कर संक्रमण,
विधि ने सचेतन प्राण सिरजे॥
ताप से जल-वायु -मय,
ऋतु -चक्र होता है नियंत्रित।
मेघ झरते, वन हुलसते ,
अन्न पकते, सर्व-जन-हित॥
अग्नि सर्जक,अग्नि पोषक,
अग्नि दाहक तत्व लौकिक।
अग्नि रक्षक,अग्नि भासक,
अग्नि तमनाशक अलौकिक॥
अग्नि से उत्पत्ति सबकी,
अग्नि में होते सभी लय।
अग्नि अविनाशी, अमर है,
अग्नि ऊर्जा-श्रोत अक्षय॥
अग्नि आभा, अग्नि ऊर्जा,
अग्नि ऊष्मा-ताप, जग में।
अन्न-जल-फल-पुष्प-दात्री ,
मेटती हर पाप, जग में॥
अग्नि से हैं यज्ञ धारित,
यज्ञ से है, लोक-मंगल।
शक्ति-रूपा अग्नि! तुझमें,
जायें सब कल्मष-कलुष जल॥
*
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