बुधवार, 24 मार्च 2021

आज बिरज में होली रे रसिया...(होरी ठुमरी) / रचना : चन्द्र सखी / स्वर : विदुषी शोभा गुर्टू (पद्म भूषण)

 https://youtu.be/6gpZDtfzkB8 

अबीर गुलाल के बादल छाए,
धूम मचाई रे सब मिल सखिया ।


शोभा गुर्टू को सन २००२ में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में 
पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
जन्म ; १९२५, कर्नाटक 
निधन : २००४ 

आज बिरज में होरी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया ।
होरी रे होरी रे बरजोरी रे रसिया ॥

अपने अपने घर से निकसी,
कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया ।

कौन गावं के कुंवर कन्हिया,
कौन गावं राधा गोरी रे रसिया ।

नन्द गावं के कुंवर कन्हिया,
बरसाने की राधा गोरी रे रसिया ।

कौन वरण के कुंवर कन्हिया,
कौन वरण राधा गोरी रे रसिया ।

श्याम वरण के कुंवर कन्हिया प्यारे,
गौर वरण राधा गोरी रे रसिया ।

इत ते आए कुंवर कन्हिया,
उत ते राधा गोरी रे रसिया ।

कौन के हाथ कनक पिचकारी,
कौन के हाथ कमोरी रे रसिया ।

कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी,
राधा के हाथ कमोरी रे रसिया ।

उडत गुलाल लाल भए बादल,
मारत भर भर झोरी रे रसिया ।

अबीर गुलाल के बादल छाए,
धूम मचाई रे सब मिल सखिया ।

चन्द्र सखी भज बाल कृष्ण छवि,
चिर जीवो यह जोड़ी रे रसिया ।

आज बिरज में होरी रे रसिया ।
होरी रे होरी रे बरजोरी रे रसिया ॥


शोभा गुर्टू
कर्नाटक में जन्मीं शोभा गुर्टू भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रसिद्ध गायिका थीं। उन्हें ठुमरी की रानी कहा जाता था। उनका मूल नाम भानुमति शिरोडकर था। शोभा गुर्टू ने ऐसे समय में ख्याति प्राप्त की, जब महिलाओं का घरों से निकलना भी मुश्किल था। उन्हें गायन की शुरुआती शिक्षा अपनी मां से मिली। उनकी मां मेनेकाबाई शिरोडकर एक नृत्यांगना थीं। शोभा की मां जयपुर-अतरौली घराने के उस्ताद अल्लादिया खां से गायफकी सीखती थीं।
प्रारंभिक जीवन :
कहते हैं जिसको सीखने की ललक होती है, उसमें उसका हुनर बचपन से ही दिखने लगता है। शोभा गुर्टू ने बचपन से ही गायन सीखना शुरू कर दिया था। उनका विवाह विश्वनाथ गुर्टू से हुआ था। विश्वनाथ के पिता पंडित नारायणनाथ गुर्टू वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थे, पर संगीत के विद्वान और सितारवादक भी थे।
करिअर :
संगीत के क्षेत्र में शोभा की विधिवत शुरुआत उस्ताद भुर्जी खां के साथ हुई। भुर्जी खां अल्लादिया खां के छोटे बेटे थे। वे जयपुर-अतरौली घराने के संस्थापक थे। जब शोभा की मां को उस्ताद घाममन खां ठुमरी, दादरा और अन्य शास्त्रीय शैलियां सिखाने आया करते थे तब शोभा भी उनसे सीखतीं थीं। उस्ताद घाममन खां मुंबई में शोभा के घर पर ही रहने लगे थे। वहीं रह कर वे उन्हें संगीत की शिक्षा दिया करते थे।
ठुमरी की मल्लिका :
शोभा गुर्टू को ठुमरी की रानी कहा जाता है। वे केवल गले से नहीं, आंखों से भी गाती थीं। वे ठुमरी के अलावा दादरा, कजरी, होरी आदि में भी निपुण थीं। वे बेगम अख्तर और उस्ताद बड़े गुलाम अली से अधिक प्रभावित थीं। शुद्ध शास्त्रीय संगीत में शोभा की अच्छी पकड़ थी। उनके गायन की वजह से उन्हें देश-विदेश में ख्याति प्राप्त हुई। अपने मनमोहक ठुमरी गायन के लिए वे ‘ठुमरी क्वीन’ कहलार्इं।
सिनेमा में भी गूंजी आवाज :
उन्होंने कई मराठी और हिंदी सिनेमा के लिए भी गीत गाए। उन्हें 1972 में आई कमाल अमरोही की पाकीजा में पहली बार पार्श्वगायन का मौका मिला था। इसमें उन्होंने एक गीत ‘बंधन बांधो’ गाया था। इसके बाद 1973 में आई ‘फागुन’ में ‘मोरे सैंया बेदर्दी बन गए कोई जाओ मनाओ’ गीत गाया। यह गीत आज भी लोगों की जुबान पर है। 1978 में आई ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ में उन्होंने ‘सैंया रूठ गए’ गीत गाया। इस गीत के लिए उन्हें सर्वेश्रेष्ठ पार्श्वगायक का पुरस्कार मिला। इसके अलावा मराठी सिनेमा में उन्होंने सामना और लाल माटी के लिए गाया। 1979 में उनका एक एलबम आया। उसके बाद मेहदी हसन के साथ आया उनका एलबम ‘तर्ज’ भी लोगों को खूब पसंद आया। उन्होंने पचासवें गणतंत्र दिवस पर जन गण मन का गायन भी किया था। उन्होंने अपने कई कार्यक्रम पंडित बिरजू महाराज के साथ प्रस्तुत किए थे, जिनमें विशेष रूप से उनके गायन के ‘अभिनय’ अंग का प्रयोग किया जाता था।
पुरस्कार :
उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। फिल्म ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ की ठुमरी के लिए उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। 1978 में संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार, 2002 में पद्मभूषण और महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
निधन : 

शोभा गुर्टू का निधन 27 सितंबर, 2004 में हो गया।


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