शनिवार, 20 मई 2023

हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए.../ शायर : क़ाबिल अजमेरी (१९३१ -१९६२, हैदराबाद, पाकिस्तान) / गायन : गुलाम अली

 https://youtu.be/ax_6pHBurI4  

हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहां तक आ गये  
हम तो दिल तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गये
ज़ुल्फ़ में ख़ुश्बू न थी या रंग आरिज़ में न था    
आप किस की जुस्तजू में गुलसिताँ तक आ गये
ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गरेबाँ का शऊर आ जायेगातुम वहाँ तक आ तो जाओ हम जहाँ तक आ गये
उनकी पलकों पे सितारे अपने होंठों पे हँसीक़िस्सा-ए-ग़म कहते कहते हम यहाँ तक आ गये

सोज़-ए-निहां अन्दर की आग
आरिज़ गाल, कपोल
ज़ुस्तज़ू - तलाश 
गुलसितां - बाग़ीचा, उद्यान 
चाक-ए-गरेबाँ - फटेहाली, उन्माद में वस्त्र फाड़ना 
शऊर - ढंग 

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