मंगलवार, 27 अक्टूबर 2015
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015
सोमवार, 19 अक्टूबर 2015
पहिरावैं मुद्रिका परस्पर.......
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प्रिय तरु एवं अविनाश के बरिच्छा / सगाई / गोद-भराई के
शुभ अवसर (१८ अक्टूबर ,२०१५ ) पर विशेष
-अरुण मिश्र
पहिरावैं मुद्रिका परस्पर.......
चौपाई
विक्रम सम्वत बीस-बहत्तर। सानुकूल तिथि, वार, नछत्तर।।
सारदीय नवरात्रि, सुहावन। सुक्ल-पंचमी तिथि, अति पावन।।
आंग्ल तिथी अट्ठारह सुभकर। दुइ हजार पन्द्रह, अक्तूबर।।
मध्य-दिवस, रवि वासर रुचिकर। बरसहिं आतप-कृपा दिवाकर।।
तीर गोमती के अति पावन। नगर लखनऊ, बसा सुहावन।।
लछिमन लीला-भूमि मनोहर। तेहि नगरी एक थल पर सुन्दर।।
विधि कै अस मंगल विधान भय। दुइ परिवार भये कृत-निश्चय।।
करहिं सगाई कन्या औ’ वर। पहिरावैं मुद्रिका परस्पर।।
सोरठा
सबके हृदय उछाह, सबके मन उपज्यो सुमति।
तरु-अविनाश बिवाह, होहि अवसि अरु शीघ्र अति।।
दोहा
वर कै होय बरीच्छा, सुभ-साइत अनुसार।
गोद भराई वधू कै करहि, अपर परिवार।।
होहि सदा यहि जुगल पर, प्रभु की कृपा अपार।
मंगलमय सम्बन्ध मा, जुरैं दुहू परिवार।।
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शनिवार, 10 अक्टूबर 2015
चलो ये रूप का दर्या उतर के देखते हैं....
चलो ये रूप का दर्या उतर के देखते हैं....
-अरुण मिश्र
चलो, ये रूप का दर्या उतर के देखते हैं।
जो तय है डूबना तो, डूब कर के देखते हैं।।
सुना है, बाग़ में रुख़ से नक़ाब पलटेगा।
तो चलो आज, नज़ारे उधर के देखते हैं।।
सुना है हॅस दे तो, बाग़ों में बहार आ जाये।
चलो ख़िज़ाँ को आज, तंग कर के देखते हैं।।
सुना है, मोरनी मरती है, चाल पर उसकी।
सुना है हँस भी, अचरज से भर के देखते हैं।।
अगर नहाये तो,झीलों में कँवल खिल जायें।
कि, भौंरे राह बहुत आस भर के देखते हैं।।
सुना कि, सुब्ह को सूरज गुलाल मलता है।
सितारे, रात उसकी माँग भर के देखते हैं।।
कलायें चाँद की, शायद इसी ख़याल से हैं।
कि चलो, रूप उसका नाप कर के देखते हैं।।
सुना है, बिखरें जो गेसू तो, रात हो जाये।
तो चलो एक रात, वाँ ठहर के देखते हैं।।
सुना है सोये रात, जागे सुब्ह हो जाये।
तो चलो एक शाम, सुब्ह कर के देखते हैं।।
सुना है, ख़्वाब है, जागो तो बिखर जायेगा।
सो सारी रात, पलक बन्द कर के देखते हैं।।
सुना कि, मद भरे नयनों में, मैक़दे हैं खुले।
सुना है, लोग अपने जाम भर के देखते हैं।।
सुना है , हूर है, मिलता है बस सवाबों से।
तो चलो कोई, नेक काम कर के देखते हैं।।
सुना है, आँखों में उसके,तिलिस्म बसते हैं।
‘अरुन’ चलो, नये एहसास कर के देखते हैं।।
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बुधवार, 7 अक्टूबर 2015
सोमवार, 5 अक्टूबर 2015
तुम्हारा जन्म दिवस....
तुमको मुबारक साथी।
कि साथ&साथ गुज़ारी है
हमने उम्र तमाम।
तमाम ख़ुशियाँ मिलीं
और ग़म हुये हैं कम।
पिये हैं साथ मसर्रत के
छलकते हुये जाम।
तुमको मुबारक साथी।।
ये तो यूँ ही बढ़ती जायेगी।
असल है ज़िन्दगी
जो लौट कर न आयेगी।
मैंने भी कब का साठ पार किया।
तुम्हारी उम्र भी]
इस बीच कुछ बढ़ी होगी।
गो कि] अन्दाज़ा नहीं लगता है।
इस लिये जन्म दिवस पर तेरे]
दिल से बस ये ही
निकलती है दुआ-
तुम न पचपन से कभी आगे बढ़ो।
शोखि़याँ बचपने की]
तुझ में सदा जिन्दा रहें]
तुम न इस बचपन से कभी आगे बढ़ो।
मुस्कराहट से] चहक से] तमाम जीवट से]
यूँ ही गुलज़ार सदा करती रहो-
हमारी ज़िन्दगी की बगि़या को।
मेरी साथी की तरह]
बच्चों की मम्मी की तरह।
तुमको मुबारक साथी।।
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