प्रिय पौत्र कुशाग्र के जन्म-दिवस पर
नवांकुर...
-अरुण मिश्र
यह नवांकुर कुक्षि से,
रुचिरा ऋचा के जो उगा है |
मिश्र -कुल-वंशावली-मणि-
माल, नव-कौस्तुभ लगा है ||
प्रज्ज्वलित नव - दीप सा,
प्रज्ज्वलित नव - दीप सा,
जो आज घर की देहरी पर |
क्षितिज पर कुल - व्योम के,
चमका नया नक्षत्र भास्वर ||
पुष्प जो अभिनव खिला,
परिवार-बगिया में विहंस कर |
गोद दादी के, पितामह के,
ह्रदय में , मोद दे भर ||
लहलहाई, वंश की फिर-
बेल, फूटी नई कोंपल|
दूध से आँचल भरा; कुल -
तरु, फला है पूत का फल||
परिवार-बगिया में विहंस कर |
गोद दादी के, पितामह के,
ह्रदय में , मोद दे भर ||
हो 'कुशाग्र', कुशाग्र-मेधायुत,
अपरिमित बुद्धि - बल हो|
मंगलम, मधुरं, शुभम, प्रिय,
प्रोज्ज्वल, प्रांजल, प्रबल हो||
*
टिप्पणी : अपने पौत्र चिरंजीव 'कुशाग्र' के जन्म पर, लिखी गई यह कविता, आज उसके जन्म तिथि (२१ सितम्बर) पर स्नेह, आशीष एवं शुभकामनाओं के साथ।
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