https://youtu.be/Rd_20jJ2ZYY
घन घमंड नभ गरजत घोरा...
राम चरित मानस
संत तुलसी दास
स्वर : पंडित अजय चक्रवर्ती
राग : मियां की मल्हार
घन घमंड नभ गरजत घोरा । प्रिया हीन डरपत मन मोरा ।। दामिनि दमक रहन घन माहीं । खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं ।। बरषहिं जलद भूमि निअराएँ । जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ ।। बूँद अघात सहहिं गिरि कैंसें । खल के बचन संत सह जैसें ।। छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई । जस थोरेहुँ धन खल इतराई ।। भूमि परत भा ढाबर पानी । जनु जीवहि माया लपटानी ।। समिटि समिटि जल भरहिं तलावा । जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा ।। सरिता जल जलनिधि महुँ जाई । होई अचल जिमि जिव हरि पाई ।।
राम चरित मानस
संत तुलसी दास
स्वर : पंडित अजय चक्रवर्ती
राग : मियां की मल्हार
घन घमंड नभ गरजत घोरा । प्रिया हीन डरपत मन मोरा ।। दामिनि दमक रहन घन माहीं । खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं ।। बरषहिं जलद भूमि निअराएँ । जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ ।। बूँद अघात सहहिं गिरि कैंसें । खल के बचन संत सह जैसें ।। छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई । जस थोरेहुँ धन खल इतराई ।। भूमि परत भा ढाबर पानी । जनु जीवहि माया लपटानी ।। समिटि समिटि जल भरहिं तलावा । जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा ।। सरिता जल जलनिधि महुँ जाई । होई अचल जिमि जिव हरि पाई ।।
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