विनवहुँ मातु सरस्वति चरना...
विनवहुँ मातु सरस्वति ! चरना।कलुष, कुबुद्धि, कुसंसय हरना।।
शुभ्र वसन, शुभ-अंग विराजे।
कर निज वीणा, पुस्तक साजे।
फटिक-माल उर, हंस सवारी।
करहु कृपा, कवि-कुल महतारी।।
बंदउँ चरन-कमल सुख-करना।
सब तजि मातु, गहउँ तव सरना।।
विद्या, बुद्धि, ज्ञान अरु प्रज्ञा।
मिलइ न मातु,तुम्हारि अवज्ञा।
सकल कला कीरति कै दाता
तव पद-पंकज नेहु, सुमाता।।
प्रणवहुँ कमलासना, सु-बरना।
तुम रक्षक, काहू को डरना।।
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