शनिवार, 19 अगस्त 2023

कभी इस मकाँ से गुज़र गया कभी उस मकाँ से गुज़र गया.../ अर्श मलसियानी / गायन : नाशनास

 https://youtu.be/xtoIWiE1tUM 

अर्श मलसियानी (1908 – 1979)जन्म नाम: बाल मुकुंद, उर्दू के एक प्रख्यात भारतीय शायर 
और लेखक थे। वे उर्दू और फारसी के विद्वान तथा उर्दू शायर लाभु राम 'जोश मल्सियानी' के पुत्र 
थे। वर्ष 1948 से 1968 के सेवानिवृति तक उन्होंने भारत सरकार के प्रकाशन विभाग में पहले 
"आज कल" उर्दू पत्रिका के सहायक संपादक और उसके बाद 1954 में जोश मलीहाबादी के बाद 
संपादक का दायित्व निभाया।
उनकी कविता के चार संग्रह कुंदा रंगचंग-ओ-आहंगशरार-ए-संग और आहंग-ए-हिजाज़ 
प्रकाशित हुए हैं। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पर उनकी आत्मकथा की पुस्तक 1976 में 
प्रकाशित हुई।
Nashenas 
Dr. Mohammad Sadiq Fitrat, born Sadiq Fitrat Habibi, in 1935, 
known professionally as Nashenas is one of the oldest surviving 
musicians from Afghanistan. His fame began in the late 1950s, 
and since then he has produced many albums consisting of Pashto, 
Dari, and Urdu songs. He is known as "the Afghan Saigal".
Nashenas was born in KandaharAfghanistan to an ethnic Pashtun 
family. He belongs to the famous Habibi family who are Kakar by tribe. 
This is a religious family which descends from Habibullah Kakar, or 
Habibullah Akhundzada. His primary education was in Kandahar.
After his father was appointed by the National Bank of Karachi, he 
moved to British India where he lived without his mother. 
He encountered classical Indian music, which deeply moved and 
influenced him. Zakir Husain taught him calligraphyPersian and Urdu.
While staying in Chaman, near the border of Afghanistan, he went to a 
school where he experienced an important moment in his musical 
awakening. Students were celebrating the establishment of their school. 
Kids used tables as drums while Nashenas sang. He was called to the 
principal's office. Thinking that he would get punished, he decided to deny 
that he was singing. On the contrary, he found that school appreciated his 
talents and encouraged him to perform. He received a medal and five 
volumes of religious texts
In 1948 he returned to Afghanistan. Starting from 1953 he begins to sing on 
Afghan radio and becomes known under his pseudonym "Nashenas". 
His family stressed to him the importance of religion as he hailed from the 
religious elite of the city of Kandahar. In the early 1970s, Nashenas traveled 
to the Soviet Union where he obtained his doctorate in Pashto 
Literature from Moscow State University.

Since the 90s he lives in London.

Nashenas is still popular in Afghanistan, including in the 
Pashto-speaking areas of Pakistan. He made one song about 
Muhammad Iqbal. Nashenas has a following among musicians 
of the new generation as well, who are noted to imitate his style 
of singing. One of which is Sardar Ali Takkar, a Pashtun musician 
from Khyber Pakhtunkhwa, Pakistan.


कभी इस मकाँ से गुज़र गया कभी उस मकाँ से गुज़र गया

तिरे आस्ताँ की तलाश में हर आस्ताँ से गुज़र गया

कभी मेहर-ओ-माह-ओ-नुजूम से कभी कहकशाँ से गुज़र गया

जो तेरे ख़याल में चल पड़ा वो कहाँ कहाँ से गुज़र गया

अभी आदमी है फ़ज़ाओं में अभी उड़ रहा है ख़लाओं में

ये जाने पहुँचेगा किस जगह अगर आसमाँ से गुज़र गया

ये मिरा कमाल-ए-गुनह सही मगर इस को देख मिरे ख़ुदा

मुझे तू ने रोका जहाँ जहाँ मैं वहाँ वहाँ से गुज़र गया

जिसे लोग कहते हैं ज़िंदगी वो तो हादसों का हुजूम है

वो तो कहिए मेरा ही काम था कि मैं दरमियाँ से गुज़र गया

मैं मुराद-ए-शौक़ को पा के भी मुराद-ए-शौक़ को पा सकूँ

दर-ए-मेहरबाँ पे पहुँच के भी दर-ए-मेहरबाँ से गुज़र गया

चलो 'अर्श' महफ़िल-ए-दोस्त में कि पयाम-ए-दोस्त भी है यही

वो जो हादिसा था फ़िराक़ का सर-ए-दुश्मनाँ से गुज़र गया

  • आस्ताँ - चौखट, दहलीज़, ड्योढ़ी   
    • मेहर-ओ- माह-ओ-नुजूम - सौर वर्ष का सातवां महीना जिसमें सूर्य तुला राशि में रहता है
    • कहकशाँ - आकाशगंगा
    • खलाओं - शून्य 
    • कमाल-ए-गुनह - अपराध-कौशल
    • दरमियाँ - बीच में
    • मुराद-ए-शौक़ - मन में बनी रहनेवाली अभिलाषा
    • दर- द्वार
    • पयाम-ए-दोस्त - मित्र का सन्देश 
    • हादिसा - विपत्ति 
    • फ़िराक़ - विछोह 
    • सर-ए-दुश्मनाँ  - दुश्मन के सर 

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