https://youtu.be/xtoIWiE1tUM
और लेखक थे। वे उर्दू और फारसी के विद्वान तथा उर्दू शायर लाभु राम 'जोश मल्सियानी' के पुत्र
थे। वर्ष 1948 से 1968 के सेवानिवृति तक उन्होंने भारत सरकार के प्रकाशन विभाग में पहले
"आज कल" उर्दू पत्रिका के सहायक संपादक और उसके बाद 1954 में जोश मलीहाबादी के बाद
संपादक का दायित्व निभाया।
उनकी कविता के चार संग्रह कुंदा रंग, चंग-ओ-आहंग, शरार-ए-संग और आहंग-ए-हिजाज़
प्रकाशित हुए हैं। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पर उनकी आत्मकथा की पुस्तक 1976 में
प्रकाशित हुई।
family. He belongs to the famous Habibi family who are Kakar by tribe.
This is a religious family which descends from Habibullah Kakar, or
Habibullah Akhundzada. His primary education was in Kandahar.
After his father was appointed by the National Bank of Karachi, he
moved to British India where he lived without his mother.
He encountered classical Indian music, which deeply moved and
influenced him. Zakir Husain taught him calligraphy, Persian and Urdu.
While staying in Chaman, near the border of Afghanistan, he went to a
school where he experienced an important moment in his musical
awakening. Students were celebrating the establishment of their school.
Kids used tables as drums while Nashenas sang. He was called to the
principal's office. Thinking that he would get punished, he decided to deny
that he was singing. On the contrary, he found that school appreciated his
talents and encouraged him to perform. He received a medal and five
volumes of religious texts
In 1948 he returned to Afghanistan. Starting from 1953 he begins to sing on
Afghan radio and becomes known under his pseudonym "Nashenas".
His family stressed to him the importance of religion as he hailed from the
religious elite of the city of Kandahar. In the early 1970s, Nashenas traveled
to the Soviet Union where he obtained his doctorate in Pashto
Literature from Moscow State University.
Since the 90s he lives in London.
Nashenas is still popular in Afghanistan, including in the Pashto-speaking areas of Pakistan. He made one song about of the new generation as well, who are noted to imitate his style from Khyber Pakhtunkhwa, Pakistan.
कभी इस मकाँ से गुज़र गया कभी उस मकाँ से गुज़र गया
तिरे आस्ताँ की तलाश में हर आस्ताँ से गुज़र गया
कभी मेहर-ओ-माह-ओ-नुजूम से कभी कहकशाँ से गुज़र गया
जो तेरे ख़याल में चल पड़ा वो कहाँ कहाँ से गुज़र गया
अभी आदमी है फ़ज़ाओं में अभी उड़ रहा है ख़लाओं में
ये न जाने पहुँचेगा किस जगह अगर आसमाँ से गुज़र गया
ये मिरा कमाल-ए-गुनह सही मगर इस को देख मिरे ख़ुदा
मुझे तू ने रोका जहाँ जहाँ मैं वहाँ वहाँ से गुज़र गया
जिसे लोग कहते हैं ज़िंदगी वो तो हादसों का हुजूम है
वो तो कहिए मेरा ही काम था कि मैं दरमियाँ से गुज़र गया
मैं मुराद-ए-शौक़ को पा के भी न मुराद-ए-शौक़ को पा सकूँ
दर-ए-मेहरबाँ पे पहुँच के भी दर-ए-मेहरबाँ से गुज़र गया
चलो 'अर्श' महफ़िल-ए-दोस्त में कि पयाम-ए-दोस्त भी है यही
वो जो हादिसा था फ़िराक़ का सर-ए-दुश्मनाँ से गुज़र गया
- आस्ताँ - चौखट, दहलीज़, ड्योढ़ी
- मेहर-ओ- माह-ओ-नुजूम - सौर वर्ष का सातवां महीना जिसमें सूर्य तुला राशि में रहता है
- कहकशाँ - आकाशगंगा
- खलाओं - शून्य
- कमाल-ए-गुनह - अपराध-कौशल
- दरमियाँ - बीच में
- मुराद-ए-शौक़ - मन में बनी रहनेवाली अभिलाषा
- दर- द्वार
- पयाम-ए-दोस्त - मित्र का सन्देश
- हादिसा - विपत्ति
- फ़िराक़ - विछोह
- सर-ए-दुश्मनाँ - दुश्मन के सर
- मेहर-ओ- माह-ओ-नुजूम - सौर वर्ष का सातवां महीना जिसमें सूर्य तुला राशि में रहता है
- कहकशाँ - आकाशगंगा
- खलाओं - शून्य
- कमाल-ए-गुनह - अपराध-कौशल
- दरमियाँ - बीच में
- मुराद-ए-शौक़ - मन में बनी रहनेवाली अभिलाषा
- दर- द्वार
- पयाम-ए-दोस्त - मित्र का सन्देश
- हादिसा - विपत्ति
- फ़िराक़ - विछोह
- सर-ए-दुश्मनाँ - दुश्मन के सर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें