शनिवार, 5 अगस्त 2023

धरती हमार.../ गांव की याद उकेरती ह्रदय स्पर्शी अवधी कविता / अरुण कुमार तिवारी

*धरती हमार* 

मोरे वन बगिया मा कुहुकै कोयलिया,
पपिहा सुनावै भल तान हो।
बीचे अमरइया सुगनवा कै डेरा
कागा बोले भोरवै विहान हो।।

अँगना दुवारे नाचै मोरवा मुरैला,
बुलबुल ओबरी ओसार हो।
छम-छम नाचे मन पुरवा झकोरे जब,
मोरे गाँव सितली बयार हो।।

हमरे कमल फूलै तलवा तलरिया मा,
निरमल भरे जल नीर हो।
झलकैं चनरमा पूरिनमा की रतिया रे,
भल लागै पोखरा कै तीर हो।।

छाई बँसवरिया गझिन वन छहियाँ
नान्हें नान्हें जिव कै बसेर हो।
आरी आरी सोहै घन बँसवा कै थल्हवा,
बिचवा मा मड़वा मुड़ेर हो।।

मोरे घर रहैं धिया पुतवा निरोगी,
मोरे घर तुलसी कै थान हो।
मोरे घर सीझै रामा राम रसोइया,
गइया कै भोग अघवान हो।।

महकै सबेरे गली रहिया दुअरिया,
महके मलिनिया मोहार हो।
डरिया के डारी बेला वनफूल महकै,
कली कली खिलै कचनार हो !

देवता दइव बइठा पिपरा विराजैं,
दुनिया कै सिरजनहार हो।
झलुआ पै चढ़ि सोहैं रानी भवानी माई,
निमिया कै लच-लच डार हो।।

बिरछा बइठि हरैं दुनिया कै वेदना
बिरछा मा सिरी भगवान हो।
बिरछा जौ कटिहैं उजरि जाये धरती,
कतहूँ न मिलिहै ठेकान हो।।

- अरुण कु तिवारी


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