शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

पार चन्ना दे दिस्से कुल्ली यार दी..../ पंजाबी लोकगीत (सोहनी-महिवाल) / शिल्पा राव

https://youtu.be/SC5llrwQ-lg 
चेनाब नदी के  पार....
Paar Channa De...(Punjabi Folk Lore)
Lyrics and Translation :


पार चन्ना दे दिस्से कुल्ली यार दी  
घड़ेया  घड़ेया, आ  वे  घड़ेया 

O clay-pot, dear clay pot 
Across the Chenab I see 
The Beloved's hut 
Come, let’s keep going

रात हनेरी  नदी ठाठां  मार दी  
अड़िये  अड़िये , हाँ  नी  अड़िये 

Listen girl…The night is deathly dark  
And waves of the river surge high around us  
Listen girl, dear girl, be not stubborn

पार चन्ना दे दिस्से कुल्ली यार दी ...

Across the Chenab I see…

काच्ची  मेरी मिट्टी  काच्चा  मेरा नाम नी   
हाँ  मैं नाकाम  नी   
हो मैं नाकाम नी ,   
हाँ मैं नाकाम नी 

One of form unsound Name unsound  
A pot of unbaked clay am I  
Worthless, bound to melt away in the river…

काच्ची   मेरी मिट्टी  काच्चा  मेरा नाम नी   
हाँ  मैं नाकाम  नी   
कच्चियाँ  दा  हुँदा  कच्चा अंजाम  नी   
ए गल आम नी 

One of form unsound Name unsound  
A pot of unbaked clay am I  
Worthless, bound to melt away in the river…  
That is the destiny of one such as me  
I cannot but fail to carry you across  
The unsound reach always an unsound end  
A truth well known to all…

कच्चेयाँ ते रखिये ना उम्मीद पार दी   
अड़िये  अड़िये , हाँ  नी  अड़िये   
रात हनेरी  नदी ठाठां  मार दी   
अड़िये  अड़िये , हाँ  नी  अड़िये 

Do not rely on the unsound  
To take you across to the shore  
Listen girl, dear girl, be not stubborn

वेख छल्लां  पैन्दीयां  न  छड्डीं  दिल वे   
अज्ज माहीवाल  नूँ मैं जाना मिल वे 

Behold, dear clay-pot,  
The waters whirl higher and higher  
But lose not your heart  
For I am bound to meet Mahiwal tonight,   
come what may

वेख छल्लां पैन्दीयां नह छड्डीं  दिल वे   
हाँ लैके खिल वे  
अज्ज माहीवाल  नू  मैं जाना मिल वे  
हाँ ऐहो दिल वे 

Behold, the waters whirl higher and higher  
But lose not your heart  
Rejoice as you take me to him  
For I am bound to meet Mahiwal tonight,   
come what mayMy heart insists…

यार नू  मिलेगी अज्ज लाश यार दी  
घड़ेया  घड़ेया, आ  वे  घड़ेया   
पार चन्ना दे दिस्से कुल्ली यार दी   
घड़ेया  घड़ेया, आ  वे  घड़ेया   
पार चन्ना दे दिस्से कुल्ली यार दी   
घड़ेया  घड़ेया, आ  वे  घड़ेया 

It is the night of union  
The lover will meetWith the his beloved 
If it is her corpse,  so what?  
Come dear clay-pot, let’s keep going  
For dear clay-pot  
Across the Chenab I seeThe beloved's hut…

रात हनेरी  नदी ठाठां  मार दी ....

The night is deathly dark  
And waves of the river surge high around us…

पार चन्ना दे दिस्से कुल्ली यार दी ...

O clay-pot, dear clay pot  
Across the Chenab I see  
The beloved's hut, the beloved’s hut…

अड़िये  अड़िये , हाँ  नी  अड़िये 

Listen girl, dear girl, be not stubborn…

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

माधव मामव देवा कृष्णा... / सन्त श्री नारायण तीर्थ (१६५०-१७४५) / स्वर : सूरज सन्तोष

https://youtu.be/24icdhR4TJ8
Madhava Mamava Deva Krishna..
Saint Sri. Narayana Theerthar (1650-1745 AD)

Language : sanskrit
Vocals - Sooraj Santhosh

This song is one of the most traditional and auspicious song composed by
saint Sri. Narayana Theerthar who lived about 400 years back (1650-1745 AD)
born at Guntur (AP) and attained Mukti in 1745 at Varagur in Thanjavur Dist.,
of Tamil Nadu.

This song is from his sanskrit opera titled as "Sri Krishna Leela Tarangini".

Lyrics with English translation 

(Pallavi)
Maadhava Maamava Devaa Krishnaa 
Yaadava Krishnaa Yadukula Krishnaa
Oh Madhava (Lord Krishna), protect me   
Oh Madhava (Lord Krishna), you are the Lord of the Yadava dynasty, protect me.

(Anupallavi)
Saadhujan aadhaara sarva bhauma
Maadhava Maamava  Devaa        
You are a support to all saints. Oh Madhava the source of all thoughts, please protect me. 

(Charanam)
Ambuja locana kambu shubhagreeva
Your eyes are like lotus petals and your neck is like a shell
Bimbaadharaa chandra bimbaananaa
     
Your lips are red like ripe Bimba(Indian fruit) and your face is beautiful 
like the moon
Champeya naasaagra 
 bhadra sumoukthika 
Your nose is sharp like the Plumeria(Champa flower) adorned with 
shining pearls.
Shaarad chandrajanita madana       
The pleasant moon of the autumn season is arousing amorous feelings.

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

बुराँसी को फूलों को कुमकुम मारो... (कुमाउनी बैठकी होली गीत) / गीत : स्वर्गीय चारु चंद्र पांडेय / स्वर : गौरव पांडेय

https://youtu.be/iLKdQh4fIck 
बुराँसी को फूलों को कुमकुम मारो 
-स्वर्गीय चारु चंद्र पांडेय जी

बुराँसी को फूलों को कुमकुम मारो 
दाना काना छाजी रे बसंती नारंगी 

पारवती ज्यू की झिलमिल चादर 
ह्युं की परिन ले रंगे सतरंगी 

अबीर गुलाल की धूल उड़ी गे 
लाल भया छन बादर सारा 

घर-घर हो हो हो होल करी धुन 
घरवाला जीरव बरस हजारा
                  *

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

ये बिंदिया कौन देखेगा, ये झूमर कौन देखेगा.... (चहार-बैत)

https://youtu.be/on3gyDQRA-Y

चहार-बैत का नाम आप ने ज़रूर सुना होगा । 
चहार के मानी होते हैं चार और बैत शेर को कहते हैं । 

अस्ल में चहार-बैत या चार-बैत गायन की एक पारंपरिक शैली है । 
इस गायन  शैली को कभी कला के रूप में भोपाल, टोंक, रामपुर, 
अमरोहा और मुरादाबाद में उरूज हासिल हुआ था ।

चहार-बैत अफ़ग़ानिस्तान की लोक-कला है । हालाँकि हिन्दुस्तान में इसकी जड़ें 
उस ज़माने में भी तलाश की गई हैं जब अफ़ग़ानियों की ये कला यहाँ नहीं पहुँची थी । 
लोक-कला के जानने वाले इस का रिश्ता ख़्याल और ध्रुपद गायन से जोड़ते हैं । 
दरअस्ल चहार-बैत की एक क़िस्म ‘ डेढ़-फड़क्का’ है जिसे ख़्याल भी कहा जाता है ।
हिन्दुस्तानी लोक-कला के इतिहास में स्पष्ट रूप से इस कला को विस्तार अफ़ग़ानियों 
ने ही दिया । ये वो अफ़ग़ानी हैं जो हिंदी मूल के थे। इसलिए इस कला को 
हिंदी-उल-अस्ल यानी हिन्दुस्तानी कहा जाता है । अफ़ग़ानी पठान कई अवसर 
और मौक़ों के अलावा इस को जंग के दौरान विश्राम के वक़्त अपनी भाषा पश्तो 
में गाते थे ।
लेखक :  फ़ैयाज़ अहमद वजीह 
https://khayalbasti.wordpress.com/2017/10/14/char-bait-chahar-bait/

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

भरतनाट्यम के मार्गम् शैली में रामायण आधारित नृत्यनाटिका

https://youtu.be/VTrGVHvWfPA
भरतनाट्यम के मार्गम् शैली में रामायण आधारित नृत्यनाटिका 
Abha | A retelling of epic ramayana in the Margam format of Bharathanatyam . Concept and choreography : Parshwanath S. Upadhye
Music : Rohith Bhatt Uppoor Performed by Adithya PV , Shruti Gopal and Parshwanath S. Upadhye.

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

नर्मदा अष्टकम / त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवि नर्मदे ! / आदि शंकराचार्य

https://youtu.be/8UOESZZ2Lac

नर्मदा अष्टकम 
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवि नर्मदे !

सबिन्दुसिन्धुसुस्खलत्तरङ्गभङ्गरञ्जितं
द्विषत्सु पापजातजातकारिवारिसंयुतम्।
कृतान्तदूतकालभूतभीतिहारिवर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥1॥

त्वदम्बुलीनदीनमीनदिव्यसम्प्रदायकं
कलौ मलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकम्।
सुमच्छकच्छनक्रचक्रचक्रवाकशर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥2॥

महागभीरनीरपूरपापधूतभूतलं
ध्वनत्समस्तपातकारिदारितापदाचलम्।
जगल्लये महाभये मृकण्डसूनुहर्म्यदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥3॥

गतं तदैव मे भवं त्वदम्बुवीक्षितं यदा
मृकण्डसूनुशौनकासुरारिसेवि सर्वदा।
पुनर्भवाब्धिजन्मजं भवाब्धिदुःखवर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥4॥

अलक्षलक्षकिन्नरामरासुरादिपूजितं
सुलक्षनीरतीरधीरपक्षिलक्षकूजितम्।
वसिष्ठसिष्टपिप्पलादिकर्दमादिशर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥5॥

सनत्कुमारनाचिकेतकश्यपादिषट्पदैः
धृतं स्वकीयमानसेषु नारदादिषट्पदैः।
रवीन्दुरन्तिदेवदेवराजकर्मशर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥6॥

अलक्षलक्षलक्षपापलक्षसारसायुधं
ततस्तु जीवजन्तुतन्तुभुक्तिमुक्तिदायकम्।
विरञ्चिविष्णुशङ्करस्वकीयधामवर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥7॥

अहोऽमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे
किरातसूतवाडवेषु पण्डिते शठे नटे।
दुरन्तपापतापहारिसर्वजन्तुशर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥8॥

इदं तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये सदा
पठन्ति ते निरन्तरं न यान्ति दुर्गतिं कदा।
सुलभ्य देहदुर्लभं महेशधामगौरवं
पुनर्भवा नरा न वै विलोकयन्ति रैरवम्॥9॥
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥

इति श्रीमदशंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं ।

ENGLISH TRANSLATION :
1.1: (Salutations to Devi Narmada) Your River-body illumined with Sacred 
drops of Water, flows with mischievous playfulnessbending with Waves,
1.2: Your Sacred Water has the divine power to transform those who 
are prone to Hatred, the Hatred born of Sins,
1.3: You put an end to the fear of the messenger of Death by giving 
Your protective Armour (of Refuge),
1.4: O Devi Narmada, I Bow down to Your Lotus Feet, Please give me Your Refuge.

2.1: (Salutations to Devi Narmada) You confer Your Divine touch to the 
Lowly Fish merged in Your Holy Waters,
2.2: You take away the weight of the Sins in this age of Kali; and You 
are the foremost among all Tirthas (Pilgrimage),
2.3: You confer Happiness to the many FishesTortoisesCrocodiles
Geese and Chakra Birds dwelling in Your Water,
2.4: O Devi Narmada, I Bow down to Your Lotus Feet, Please give me Your Refuge.

3.1: (Salutations to Devi Narmada) Your River-body is Deep and 
Overflowing, the Waters of which remove the Sins of the Earth, ...
3.2: ... and it flows with great force making a loud reverberating Sound
splitting asunder Mountains of Distresses, the distresses which bring our downfall,
3.3: In the Heat of this World, You provide the Place of Rest and assure 
great Fearlessness; You Who gave the place of refuge at Your Banks to 
the son of Rishi Mrikandu (Rishi Markandeya was the son of Rishi Mrikandu),
3.4: O Devi Narmada, I Bow down to Your Lotus Feet, Please give me Your Refuge.

4.1: (Salutations to Devi Narmada) O Devi, after I have seen Your Divine Water
my attachment to the Worldly Life has indeed vanished, ...
4.2: ... Your Water, which is revered by the son of Rishi Mrikandu 
(The son of Rishi Mrikandu was Rishi Markandeya), Rishi Shaunaka
and the enemies of the Asuras (i.e. Devas),
4.3: ... Your Water which is a Protective Shield against the Sorrows 
of the Ocean of Worldly Existencecaused by repeated Births in this 
Ocean of Samsara (Worldly Existence),
4.4: O Devi Narmada, I Bow down to Your Lotus Feet, Please give me Your Refuge.

5.1: (Salutations to Devi Narmada) You are worshipped by lakhs 
of (i.e. innumerable) invisible celestial beings like Kinnaras (Celestial Musicians), 
Amaras (Devas), and also Asuras and others,
5.2: Your River-body with Auspicious Waters, as well as Your River-banks 
which are Calm and Composed, are filled with the sweet Sounds 
of lakhs of (i.e. innumerable) cooing Birds,
5.3: You confer Happiness to great sages like VashisthaSistaPippalaKardama 
and others,
5.4: O Devi Narmada, I Bow down to Your Lotus Feet, Please give me Your Refuge.

6.1: (Salutations to Devi Narmada) By Rishis SanatkumaraNachiketa
Kashyapa and others who are like the six-feeted (Bee) (since they seek 
the honey of divine communion), ...
6.2: ... is held (Your Lotus Feet) in their Heart; and also by Bee-like 
sages Narada and others (is held Your Lotus Feet in their Heart),
6.3: You confer Happiness to Ravi (Sun), Indu (Moon), Ranti Deva and 
Devaraja (Indra) by making their works successful,
6.4: O Devi Narmada, I Bow down to Your Lotus Feet, Please give me Your Refuge.

7.1: (Salutations to Devi Narmada) You cleanse lakhs of (i.e. innumerable) Invisible 
and Visible Sins with Your River-body, the Banks of which are beautifully decorated 
with lakhs of (i.e. innumerable) Sarasas (Cranes or Swans),
7.2: In that Holy Place (i.e. in Your River Banks), You give both Bhukti 
(Worldly Prosperity) as well as Mukti (Liberation) to the series of 
Living Beings including Animals (who take Your Shelter),
7.3: The presence of BrahmaVishnu and Shankara in Your Holy Dhama 
(i.e. River body) provides a Protective Shield (of Blessings to the Devotees),
7.4: O Devi Narmada, I Bow down to Your Lotus Feet, Please give me Your Refuge.

8.1: (Salutations to Devi Narmada) O, I only Hear the Sound of Immortality, flowing 
down as Your River-body, originating from the Matted Hairs of Shankara, and 
filling Your River Banks,
8.2: There (i.e. in Your River-banks), everyone, whether Kirata (Mountain-Tribe), 
Suta (Charioteer), Vaddava (Brahmin), Pandita (Learned and Wise) or Shattha 
(Deceitful) gets purified within the Dance of Your Waters,
8.3: By vigourously removing Papa (Sins) and Tapa (Heat of the miseries of Life) 
of all Animals (Including Man), You confer that Happiness (born of Purification),
8.4: O Devi Narmada, I Bow down to Your Lotus Feet, Please give me Your Refuge.

9.1: (Salutations to Devi Narmada) This Narmadashtakamthose who always during 
Three times of the day ...
9.2: ... Recite constantlythey do not ever undergo Misfortune,
9.3: It becomes easy to obtain the great privilege of going to the abode of 
Mahesha, which is very difficult for an embodied being to attain,
9.4: And those persons do not have to see the fearful World again (by taking birth).