रविवार, 16 फ़रवरी 2020

उसने जो फेर ली नज़र मैंने भी जाम रख दिया.../ अहमद फ़राज़

https://youtu.be/hDRB6-M8zuI
उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया
हिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया
आमद-ए-दोस्त की नवेद कू-ए-वफ़ा में आम थी
मैंने भी इक चराग़ सा दिल सर-ए-शाम रख दिया
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उसने जो फेर ली नज़र मैंने भी जाम रख दिया
देखो ये मेरे ख़्वाब थे देखो ये मेरे ज़ख़्म हैं
मैंने तो सब हिसाब-ए-जाँ बर-सर-ए-आम रख दिया

उस ने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुख़न कहे
मैंने तो उस के पाँव में सारा कलाम रख दिया

अब के बहार ने भी कीं ऐसी शरारतें कि बस 

कव्क-ए-दरी की चाल में तेरा ख़िराम रख दिया 
और 'फ़राज़' चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया


सुकूत-ए-शब : silence of night
पयाम : message
हिज्र : separation
बाम : roof, terrace
माह-ए-तमाम : full moon, end of the month
आमद-ए-दोस्त : friend's visit
नवेद : good news, Invitation to a wedding
कू-ए-वफ़ा : street of faithfulness
आम : common, general
चराग़ : lamp
सर-ए-शाम : start of evening
शिद्दत-ए-तिश्नगी : intensity of thirst
ग़ैरत-ए-मय-कशी : dignity of drinking
नज़र : look, glance, vision, favour
सुख़न : speech, language, words, news
कलाम : poem, script, word, speech
ख़्वाब : dreams, desire, vision
ज़ख़्म : wound, bruises
हिसाब-ए-जाँ : account of life
बर-सर-ए-आम : in public
कव्क-ए-दरी : पहाड़ी चकोर पक्षी 

VIDEOS
THIS VIDEO IS PLAYING FROM YOUTUBE

a


RECITATIONS


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें