सोमवार, 17 जनवरी 2022

हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया.../ परवीन शाक़िर

https://youtu.be/HEjuhz0ijL0
Parveen Shakir (1952 – 1994) 
was a Pakistani poet, teacher and a civil servant of the 
government of Pakistan. She is best known for her poems, 
which brought a distinctive feminine voice to Urdu literature
and for her consistent use of the rare grammatical feminine 
gender for the word "lover".
Since her death, the "Parveen Shakir Urdu Literature Festival" 
has been held every year in Islamabad in her memory.

हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया
उस ने भी भूल जाने का वा'दा नहीं किया
दुख ओढ़ते नहीं कभी जश्न-ए-तरब में हम
मल्बूस-ए-दिल को तन का लबादा नहीं किया
जो ग़म मिला है बोझ उठाया है उस का ख़ुद
सर ज़ेर-ए-बार-ए-साग़र-ओ-बादा नहीं किया

कार-ए-जहाँ हमें भी बहुत थे सफ़र की शाम
उस ने भी इल्तिफ़ात ज़ियादा नहीं किया

आमद पे तेरी इत्र चराग़ सुबू हों
इतना भी बूद-ओ-बाश को सादा नहीं किया

जश्न-ए-तरब  -  आनन्द का उत्सव 
मल्बूस-ए-दिल  -  दिल का लिबास  
ज़ेर-ए-बार-ए-साग़र-ओ-बादा  -  शराब के नशे में डूबा
इल्तिफ़ात  -  तवज्जुह
आमद  -  आगमन, आने की ख़बर 
सुबू  -  शराब रखने का पात्र, जाम
बूद-ओ-बाश  -  रहन-सहन का ढंग


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