शनिवार, 11 सितंबर 2010

ईद मुबारक़ पर विशेष



चॉंद ईद का देखे


-अरुण मिश्र


चॉंद चौदहवीं का भी, चॉंद ईद का देखे।
‘अरुन’ की नज़रों ने भी, क्या-क्या नज़ारे देखे।।

जैसे दरिया की कशिश, ऑखों में समन्दर के।
कहकशॉं जैसे, कोई नन्हा सितारा देखे।।

जो थी हसरत, वो मसर्रत हो,
सुकूं में बदली।
मैंने उन नयनों में, पल-पल नये जादू देखे।।

गोरी को पिउ की झलक,
इंतिज़ार के लम्हे।
याद आवें बहुत, छत पर खड़ी, एक-टक देखे।।

दुआयें अपनी, आसमानों को हो जायें
क़बूल
बहन ने भाई, मॉं ने बच्चों के मुखड़े देखे।।

क़र्ज़ ने स्वाद सिवइयों का कसैला है किया।
चॉंद को देखे , या ठंढा पड़ा चूल्हा देखे।।

सिर्फ देखो नहीं , इस दर्द को महसूस करो।
तंगी हर हाल में, उम्मीद का पहलू देखे।।


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