अवलम्ब...
- अरुण मिश्र.
शुष्क मन-मरुथल, तरल करती हुई |
अमृत बरसाती, गरल हरती हुई |
कौन तुम? नैराश्य, तंद्रा, क्लैव्य हर,
कठिन जीवन-पथ, सरल करती हुई ||
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("अवलम्ब" शीर्षक की यह पूरी कविता, 'रश्मि-रेख' में ०८,अक्टूबर,२०१० को पूर्व प्रकाशित है|)