हे री! सखी...
कवित्त (होली)
-अरुण मिश्र
हे री! सखी, इन ऑखिन सम्मुख,
होरी तो, सोरह साल जर्-यो है।
पै री! सखी, यहि बार की होरी,न
पूछौ कुछौ, जस हाल कर्-यो है।
चैन उड़्यो दिन कौ,निसि नींद न,
ऑखिन डोरो जु लाल पर्-यो है।
पूछैं सबै, तौ बहानो करौं, उड़ि
ऑखिन आय गुलाल पर्-यो है।।
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(पूर्वप्रकाशित)
बहुत सुंदर
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