https://youtu.be/TpiAunH12Mk
ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ...
ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए
मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए
(जज़्बा-ए-दिल = दिल की भावना), (मुक़ाबिल = सम्मुख, सामने), (गाम = कदम, पग)
ऐ शम्मा! क़सम परवाने की, इतना तो मेरी ख़ातिर करना
उस वक़्त भड़क कर गुल होना जब साहिब-ए-महफ़िल आ जाए
ऐ दिल की ख़लिश चल यूँही सही चलता तो हूँ उन की महफ़िल में
उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए
ऐ रहबर-ए-कामिल चलने को तय्यार तो हूँ पर याद रहे
उस वक़्त मुझे भटका देना जब सामने मंज़िल आ जाए
(रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक), (कामिल = योग्य, दक्ष),
हाँ याद मुझे तुम कर लेना आवाज़ मुझे तुम दे लेना
इस राह-ए-मोहब्बत में कोई दरपेश जो मुश्किल आ जाए
(दरपेश = आगे, सामने)
अब क्यूँ ढूँडूँ वो चश्म-ए-करम होने दे सितम बाला-ए-सितम
मैं चाहता हूँ ऐ जज़्बा-ए-ग़म मुश्किल पस-ए-मुश्किल आ जाए
(चश्म-ए-करम = कृपादृष्टि), (बाला-ए-सितम = जुल्म के ऊपर), (जज़्बा-ए-ग़म = दुःख की भावना), (पस-ए-मुश्किल = मुश्किल के पीछे)
इस जज़्बा-ए-दिल के बारे में इक मशवरा तुम से लेता हूँ
उस वक़्त मुझे क्या लाज़िम है जब तुझ पे मिरा दिल आ जाए
(जज़्बा-ए-दिल = दिल की भावना), (लाज़िम = आवश्यक)
ऐ बर्क़-ए-तजल्ली कौंध ज़रा क्या मुझ को भी मूसा समझा है
मैं तूर नहीं जो जल जाऊँ जो चाहे मुक़ाबिल आ जाए
(बर्क़-ए-तजल्ली = प्रकाश फैलाने वाली बिजली), (तूर = सीरिया का एक पहाड़ जिस पर हज़रत मूसा ने ईश्वर का चमत्कार देखा था), (मुक़ाबिल = सम्मुख, सामने)
कश्ती को ख़ुदा पर छोड़ भी दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है
मुश्किल तो नहीं इन मौजों में बहता हुआ साहिल आ जाए
(कश्ती = नाव), (साहिल = किनारा), (हाफ़िज़ = रक्षक, बचानेवाला)
गायिका : नय्यरा नूर
--बहज़ाद लखनवी (१९००-१९७४ )
मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए
(जज़्बा-ए-दिल = दिल की भावना), (मुक़ाबिल = सम्मुख, सामने), (गाम = कदम, पग)
ऐ शम्मा! क़सम परवाने की, इतना तो मेरी ख़ातिर करना
उस वक़्त भड़क कर गुल होना जब साहिब-ए-महफ़िल आ जाए
उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए
ऐ रहबर-ए-कामिल चलने को तय्यार तो हूँ पर याद रहे
उस वक़्त मुझे भटका देना जब सामने मंज़िल आ जाए
(रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक), (कामिल = योग्य, दक्ष),
हाँ याद मुझे तुम कर लेना आवाज़ मुझे तुम दे लेना
इस राह-ए-मोहब्बत में कोई दरपेश जो मुश्किल आ जाए
(दरपेश = आगे, सामने)
अब क्यूँ ढूँडूँ वो चश्म-ए-करम होने दे सितम बाला-ए-सितम
मैं चाहता हूँ ऐ जज़्बा-ए-ग़म मुश्किल पस-ए-मुश्किल आ जाए
(चश्म-ए-करम = कृपादृष्टि), (बाला-ए-सितम = जुल्म के ऊपर),
इस जज़्बा-ए-दिल के बारे में इक मशवरा तुम से लेता हूँ
उस वक़्त मुझे क्या लाज़िम है जब तुझ पे मिरा दिल आ जाए
(जज़्बा-ए-दिल = दिल की भावना), (लाज़िम = आवश्यक)
ऐ बर्क़-ए-तजल्ली कौंध ज़रा क्या मुझ को भी मूसा समझा है
मैं तूर नहीं जो जल जाऊँ जो चाहे मुक़ाबिल आ जाए
(बर्क़-ए-तजल्ली = प्रकाश फैलाने वाली बिजली), (तूर = सीरिया का एक पहाड़ जिस पर
कश्ती को ख़ुदा पर छोड़ भी दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है
मुश्किल तो नहीं इन मौजों में बहता हुआ साहिल आ जाए
(कश्ती = नाव), (साहिल = किनारा), (हाफ़िज़ = रक्षक, बचानेवाला)
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