बुधवार, 11 मार्च 2020

नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली.../ महाकवि निराला / स्वर : पद्मा गिडवानी

https://youtu.be/WRfdPw4Qqu8

नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली.. 
महाकवि निराला

स्वर : पद्मा गिडवानी 
संगीत : केवल कुमार 

नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !

जागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली,
दीपित दीप, कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली-
मली मुख-चुम्बन-रोली ।

प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली,
एक-वसन रह गई मन्द हँस अधर-दशन अनबोली-
कली-सी काँटे की तोली ।

मधु-ऋतु-रात,मधुर अधरों की पी मधु सुध-बुध खोली,
खुले अलक, मुँद गए पलक-दल, श्रम-सुख की हद हो ली-
बनी रति की छवि भोली ।

बीती रात सुखद बातों में प्रात पवन प्रिय डोली,
उठी सँभाल बाल, मुख-लट,पट, दीप बुझा, हँस बोली
रही यह एक ठिठोली ।
                                   *

निराला जी की यह कविता 'जागरण', पाक्षिक, काशी, 
22 मार्च 1932 को 'होली' शीर्षक से छपी थी ।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें