https://youtu.be/s9992DC1en0
वल्लभाचार्य : (जन्म: संवत१५३० - मृत्यु: संवत १५८८)
भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं
पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं। जिनका प्रादुर्भाव ईः सन 1479,
वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी
तैलंग ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट जी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से
काशी के समीप हुआ। उन्हें 'वैश्वानरावतार अग्नि का अवतार' कहा
गया है। वे वेद शास्त्र में पारंगत थे। श्री रुद्रसंप्रदाय के श्री विल्वमंगलाचार्य
जी द्वाराइन्हें 'अष्टादशाक्षर गोपाल मन्त्र' की दीक्षा दी गई। त्रिदंड सन्न्यास
की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्र तीर्थ से प्राप्त हुई। विवाह पंडित श्रीदेव भट्ट जी
की कन्या महालक्ष्मी से हुआ, और यथासमय दो पुत्र हुए- श्री गोपीनाथ
व विट्ठलनाथ।
श्री वल्लभाचार्य जी विष्णुस्वामी संप्रदाय की परंपरा में एक स्वतंत्र
भक्ति-पंथ के प्रतिष्ठाता, शुद्धाद्वैत दार्शनिक सिद्धांत के समर्थक प्रचारक
और भगवत-अनुग्रह प्रधान एवं भक्ति-सेवा समन्वित 'पुष्टि मार्ग' के प्रवर्त्तक थे।
सुन्दरगोपालम् उरवनमालं नयनविशालं दुःखहरम् ।
वृन्दावनचन्द्रमानन्दकन्दं परमानन्दं धरणिधरम् ॥
वल्लभघनश्यामं पूर्णकामम् अत्यभिरामं प्रीतिकरम् ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥१॥
सुन्दर गोपाल अर्थात गौओ के पालन करने वाले ,गले मे
वनमाला धारण करने वाले ,विशाल नेत्र वाले,दुख का
हरण करने वाले, वृन्दावन के चन्द्र स्वरूप, आनन्द समूह
रूप, उत्कृष्ट आनँद वाले,धरा को धारण करने वाले, मेघ
के समान श्याम काँति वाले,पूरणमनोरथ वाले,अत्यन्त
आह्लादक प्रीतिकारक सभी सुखो के सारूप तत्व द्वारा
विचारित, परब्रह्मानँद कुमार श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो ।
सुन्दरवारिजवदनं निर्जितमदनम् आनन्दसदनं मुकुटधरम् ।
गुञ्जाकृतिहारं विपिनविहारं परमोदारं चीरहरम् ॥
वल्लभपटपीतं कृतउपवीतं करनवनीतं विबुधवरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥२॥
सुन्दर कमल के समान जिन का श्रीमुख है,कामको विजय
करने वाले,आनंद के यथास्वरूप,मुकुट धारण करने वाले, गुँजा
की माला को धारण करने वाले वृन्दावन बिहारी, परम उदार,
पीताम्बर प्रिय, उपवीताधारी, श्री हस्त मे नवनीत धारण करने
वाले, देवो मे उतम ,सर्व सुखो के सार स्वरूप, तत्वद्वारा विचारित
परब्रह्म नँदकुमार श्रीकृष्ण चन्द्र की भक्ति करो ।
शोभितमुखधूलं यमुनाकूलं निपट_अतूलं सुखदतरम् ।
मुखमण्डितरेणुं चारितधेनुं वादितवेणुं मधुरसुरम् ॥
वल्लभमतिविमलं शुभपदकमलं नखरुचिअमलं तिमिरहरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥३॥
सुशोभित सुखों के मूलरूप,यमुना तट स्थित, अनुपमेय
स्वभाव वाले,सुखदाताओ मे श्रेष्ठ, जिनके मुखारविन्द
गोधूलि से चेष्टित है,गायो को चराने वाले, नखों की निर्मल
कांति वाले,अँधकार को भगाने वाले,सर्व सुखो के सार रूप,
तत्व द्वारा विचारित, पर ब्रह्मा नंदकुमार श्रीकृष्णचन्द्र
की भक्ति करो ।
शिरमुकुटसुदेशं कुञ्चितकेशं नटवरवेशं कामवरम् ।
मायाकृतमनुजं हलधर_अनुजं प्रतिहतदनुजं भारहरम् ॥
वल्लभव्रजपालं सुभगसुचालं हितमनुकालं भाववरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥४॥
सिर पर जिन के मुकुट सुशोभित है ,कुचित केश वाले नटवर.
विषधारी, कोटि कँदर्प लावण्य, निजमाया शक्ति द्वारा मनुजाकृति
दर्शन वाले,श्री बलदेवजी के अनुज, दानवो के संहारक, पृथ्वी के भार
को उतारने वाले, नन्दरायजी जिन्हें प्रिय हैं, सुभगसुन्दर गतिवाले
प्रतिक्षण हितकर्ता, भाविको मे श्रेष्ठ सर्वसुखो के साररूप तत्वद्वारा
विचारित परब्रह्मानन्दकुमार श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो।
इन्दीवरभासं प्रकटसुरासं कुसुमविकासं वंशिधरम् ।
हृतमन्मथमानं रूपनिधानं कृतकलगानं चित्तहरम् ॥
वल्लभमृदुहासं कुञ्जनिवासं विविधविलासं केलिकरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥५॥
कमल सदृश ध्रृतिवाले प्रकट सुन्दर रासक्रीड़ा करने वाले
जिन के दर्शन कर पुष्प प्रफुल्लित होते है वंशीधर महादेव
के मान को नाश करने वाले,रूपनिधानं कलि मे जिन का
नाम सँकीर्तन किया जाता है,चित का हरण करने वाले,
प्रिय कोमल हास्ययुक्त, कुँज में निवास करने वाले, विविध
विलासकर्ता, क्रीडाकारी सर्वसुखो के साररूप तत्व द्वारा
विचारित परब्रह्मानन्दकुमार श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो।
अतिपरप्रवीणं पालितदीनं भक्ताधीनं कर्मकरम् ।
मोहनमतिधीरं फणिबलवीरं हतपरवीरं तरलतरम् ॥
वल्लभव्रजरमणं वारिजवदनं हलधरशमनं शैलधरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥६॥
अति परम प्रवीण, दीनता वाले जीवो के पालनकर्त्ता
मायाधीन,गोवर्धन पूजारूपी यज्ञकर्ता, भक्तों को मोह
कराने वाले,अतिधिर बलवान कलि के निवारण करने
वाले शत्रुवीरो के सँहारकर्ता,अतिचपलं व्रजरमण जिन्हें
प्रिय है,कमल नयन,मेघ को शाँत करने वाले गिरिराज
को धारण करने वाले,सब सुख के साररूप तत्व द्वारा
विचारित पर ब्रह्मा नन्दकुमार श्रीकृष्णचन्द्र की
भक्ति करो।
जलधरद्युतिअङ्गं ललितत्रिभङ्गं बहुकृतरङ्गं रसिकवरम् ।
गोकुलपरिवारं मदनाकारं कुञ्जविहारं गूढतरम् ॥
वल्लभव्रजचन्द्रं सुभगसुछन्दं कृतआनन्दं भ्रान्तिहरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥७॥
मेघ की कांति के समान शरीर धारण करने वाले, ललित
त्रिभंगी, विविध स्वरूप रँग से विदित होने वाले, रसिक
शिरोमणि गोसमूह जिनका परिवार है, कामदेव के समान
आकार वाले कुँजबिहारी गुण मनुष्याकृति प्रिय व्रज चन्द्र
सुन्दर भाग्य एव दिव्य लीलामय परमानँद स्वरूप भ्रांति
हरण करने वाले, सर्वसुख के साररूप तत्व द्वारा विचारित
परब्रह्मानंद कुमार श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो ।
वन्दितयुगचरणं पावनकरणं जगदुद्धरणं विमलधरम् ।
कालियशिरगमनं कृतफणिनमनं घातितयमनं मृदुलतरम् ॥
वल्लभदुःखहरणं निर्मलचरणम् अशरणशरणं मुक्तिकरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥८॥
Meaning:
8.1: (Salutations to Sri Nandakumara) Whose Pair of Feet is Extolled
8.1: (Salutations to Sri Nandakumara) Whose Pair of Feet is Extolled
by the Devotees; that Pair of Feet which make everything Pure and
Uplift the World; that Pair of Feet which has embodied Purity Itself,
8.2: Who moving about over the Head of Serpent Kaliya, bent its Hood
and Danced over them, after destroying its deadly Bind with His Soft
and Tender Body,
8.3: Who is the Beloved of the Devotees and takes away their Sorrows,
8.3: Who is the Beloved of the Devotees and takes away their Sorrows,
and His Pure Holy Feet gives Refuge to those who are without Refuge,
and finally grants them Liberation,
8.4: Worship that Nandakumara, the essence of all Joy, by reflecting on
8.4: Worship that Nandakumara, the essence of all Joy, by reflecting on
His Divine Essence (which is) of the Nature of Supreme Brahman.
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