सोमवार, 14 दिसंबर 2020

सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता.../ अमीर मीनाई / जगजीत सिंह

https://youtu.be/MYJfvblNhs8

Ameer Minai or Amir Meenai was a 19th-century Indian poet. 
He was respected by several contemporary poets including 
Ghalib and Daagh Dehalvi and by Muhammad Iqbal. He wrote 
in Urdu, Persian and Arabic.
BornFebruary 21, 1829, Lucknow, India
DiedOctober 13, 1900, Hyderabad State
SubjectLove, philosophy, mysticism

सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता

(रुख़ = मुख, मुंह, चेहरा, / आफ़ताब = सूरज)

जवाँ होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया परदा
हया यकलख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता

(यकलख़्त = आकस्मिक, अचानक, एकदम से)

शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब, आहिस्ता आहिस्ता

(शब-ए-फ़ुर्क़त = वियोग/ जुदाई की रात)

सवाल-ए-वस्ल पे उनको अदू का खौफ़ है इतना
दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता

(सवाल-ए-वस्ल = मिलन का सवाल  / अदू = विरोधी, शत्रु, रक़ीब)

वो बेदर्दी से सर काटें ‘अमीर’ और मैं कहूँ उनसे
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता


-अमीर मीनाई

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें