https://youtu.be/nTGK9Pgpnt8
Sher Muhammad Khan better known by his pen name Ibn-e-Insha,
(15 June 1927 – 11 January 1978) was a Indo-Pakistani Urdu poet,
humorist, travelogue writer and newspaper columnist. Along with his
poetry, he was regarded as one of the best humorists of Urdu. His poetry
has a distinctive diction laced with language reminiscent of Amir Khusro
in its use of words and construction that is usually heard in the more earthy
dialects of the Hindi-Urdu complex of languages, and his forms and poetic
style is an influence on generations of young poets.
(15 June 1927 – 11 January 1978) was a Indo-Pakistani Urdu poet,
humorist, travelogue writer and newspaper columnist. Along with his
poetry, he was regarded as one of the best humorists of Urdu. His poetry
has a distinctive diction laced with language reminiscent of Amir Khusro
in its use of words and construction that is usually heard in the more earthy
dialects of the Hindi-Urdu complex of languages, and his forms and poetic
style is an influence on generations of young poets.
जगजीत सिंह (८ फ़रवरी १९४१ - १० अक्टूबर २०११) का नाम बेहद लोकप्रिय ग़ज़ल गायकों में
शुमार हैं। उनका संगीत अंत्यंत मधुर है और उनकी आवाज़ संगीत के साथ खूबसूरती से घुल-मिल
जाती है। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की
दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम
आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही
नाम ज़ुबां पर आता है। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की
समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका
परिचय कराया। जगजीत सिंह को सन २००३ में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण
से सम्मानित किया गया। फरवरी २०१४ में आपके सम्मान व स्मृति में दो डाक टिकट भी जारी
किए गए।
शुमार हैं। उनका संगीत अंत्यंत मधुर है और उनकी आवाज़ संगीत के साथ खूबसूरती से घुल-मिल
जाती है। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की
दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम
आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही
नाम ज़ुबां पर आता है। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की
समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका
परिचय कराया। जगजीत सिंह को सन २००३ में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण
से सम्मानित किया गया। फरवरी २०१४ में आपके सम्मान व स्मृति में दो डाक टिकट भी जारी
किए गए।
कल चौदहवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा - इब्ने इंशा
कल चौदहवीं की रात थी, शब-भर रहा चर्चा तेरा
कुछ ने कहा ये चाँद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा
कुछ ने कहा ये चाँद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा
हम भी वहीं मौजूद थे, हम से भी सब पूछा किए
हम हँस दिए, हम चुप रहे, मंज़ूर था पर्दा तेरा
इस शहर में किससे मिलें, हमसे तो छूटीं महफ़िलें
हर शख़्स तेरा नाम ले, हर शख़्स दीवाना तेरा
कूचे को तेरे छोड़कर जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तेरे, पर्बत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी, उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तेरा, ऐ हुस्ने-बेपरवा तेरा
दो अश्क जाने किसलिए, पलकों पे आकर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तेरी, इकराम का दरिया तेरा
ऐ बेदरीग़ो-बेअमाँ, हम ने कभी की है फ़ुग़ाँ
हमको तेरी वहशत सही, हमको सही सौदा तेरा
हमको तेरी वहशत सही, हमको सही सौदा तेरा
हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीरे रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा
रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा
हाँ हाँ तेरी सूरत हसीं, लेकिन तू ऐसा भी नहीं
इक शख़्स के अशआर से, शोहरा हुआ क्या क्या तेरा
बेदर्द सुननी हो तो चल, कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल
आशिक़ तेरा, रुस्वा तेरा, शाइर तेरा, इंशा तेरा
आशुफ़्तगी - उद्विग्नता / उफ़्तादगी - आजिज़ी
अल्ताफ़ - कृपाओं / इकराम - सम्मान
फ़ुग़ाँ - आर्तनाद
वहशत - उन्माद / सौदा - पागलपन
शोहरा - प्रतिष्ठा
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