https://youtu.be/vFfQWHtYhRk
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
जो मुश्किल अब है या रब फिर वही मुश्किल न बन जाए
न कर दें मुझ को मजबूर-ए-नवाँ फ़िरदौस में हूरें
मिरा सोज़-ए-दरूँ फिर गर्मी-ए-महफ़िल न बन जाए
कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को
खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए
बनाया इश्क़ ने दरिया-ए-ना-पैदा-कराँ मुझ को
ये मेरी ख़ुद-निगह-दारी मिरा साहिल न बन जाए
कहीं इस आलम-ए-बे-रंग-ओ-बू में भी तलब मेरी
वही अफ़्साना-ए-दुंबाला-ए-महमिल न बन जाए
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए
शब्दार्थ ख़ाक - धूल, मिटटी का पुतला यानी मनुष्य
मजबूर-ए-नवाँ - कहने पर मजबूर /फ़िरदौस - स्वर्ग /हूरें - अप्सराएं / सोज़-ए-दरूँ - आतंरिक वेदना /गर्मी-ए-महफ़िल - महफ़िल की गर्माहट
दरिया-ए-ना-पैदा-कराँ - तट हीन नदी /ख़ुद-निगह-दारी - आत्म निरीक्षण साहिल - तट /आलम-ए-बे-रंग-ओ-बू - रंग-गंध हीन दुनिया /तलब - इच्छा
अफ़्साना-ए-दुंबाला-ए-महमिल - ऊँटों के पालकी वाली कहानी
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी - मनुष्य की मिटटी के उत्कर्ष /
अंजुम - सितारे मह-ए-क़ामिल - पूर्ण चन्द्र
शब्दार्थ ख़ाक - धूल, मिटटी का पुतला यानी मनुष्य
मजबूर-ए-नवाँ - कहने पर मजबूर /फ़िरदौस - स्वर्ग /हूरें - अप्सराएं / सोज़-ए-दरूँ - आतंरिक वेदना /गर्मी-ए-महफ़िल - महफ़िल की गर्माहट
दरिया-ए-ना-पैदा-कराँ - तट हीन नदी /ख़ुद-निगह-दारी - आत्म निरीक्षण साहिल - तट /आलम-ए-बे-रंग-ओ-बू - रंग-गंध हीन दुनिया /तलब - इच्छा
अफ़्साना-ए-दुंबाला-ए-महमिल - ऊँटों के पालकी वाली कहानी
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी - मनुष्य की मिटटी के उत्कर्ष /
अंजुम - सितारे मह-ए-क़ामिल - पूर्ण चन्द्र
दरिया-ए-ना-पैदा-कराँ - तट हीन नदी /ख़ुद-निगह-दारी - आत्म निरीक्षण
अफ़्साना-ए-दुंबाला-ए-महमिल - ऊँटों के पालकी वाली कहानी
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी - मनुष्य की मिटटी के उत्कर्ष /
अंजुम - सितारे