https://youtu.be/Fahq3LYQq88
[ दोहा ]
निश्चय प्रेम प्रतीति ते , विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल , शुभ सिद्ध करै हनुमान ।।
तेहि के कारज सकल , शुभ सिद्ध करै हनुमान ।।
भावार्थ – जो भी मनुष्य हनुमान जी में अपना प्रेम और सम्पूर्ण विश्वास रखता है । हनुमान जी की कृपा और आशीर्वाद से उसके सभी कार्य सिद्ध होते है।
चौपाई
जय हनुमंत संत हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी आप सभी संतों के लिए हितकारी है अर्थात हित करने वाले कृपया मेरी अरज अर्थात प्रार्थना भी स्वीकार करें ।
जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महासुख दीजै ।।
भावार्थ – हे श्रीराम भक्त हनुमान अब बिलम्ब न करें और जल्दी आकर अपने भक्तों को सुखी करिए।
जैसे कूदि सिंधु के पारा । सुरसा बदन पैठि बिस्तारा ।।
भावार्थ – हे पवनपुत्र हनुमान जी जिस प्रकार आपने विशाल समुद्र को पार किया था और सुरसा जैसी राक्षसी के मुख में प्रवेश करके वापस आ गये थे।
आगे जाई लंकनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ।।
भावार्थ – हे प्रभु जब आपको लंका में प्रवेश करने से लंकनी ने रोका तो आपके प्रहार ने लंकनी को सुरलोक में भेज दिया ।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।
भावार्थ – हे प्रभु आपने विभीषण को सुख दिया और आपने सीता माता की कृपा से परमपद प्राप्त किया है।
बाग उजारि सिंधु महं बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।
भावार्थ – हे प्रभु आपने बाग को उजाड़कर समुद्र में डूबो दिया। और रावण के रक्षकों को दण्ड दिया।
अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेट लंक को जारा ।।
भावार्थ – हे प्रभु आपने बहुत ही जल्द अक्षय कुमार को संहार किया तथा अपनी पूंछ से सम्पूर्ण लंका को जला डाला ।
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर में भई ।।
भावार्थ – हे प्रभु आपने लाख के महल की तरह लंका को जला डाला जिससे सभी जगह आपकी जय जयकार होने लगी।
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।।
भावार्थ – हे रामभक्त हनुमान जी तो फिर आप अपने भक्त के कार्य में इतना विलम्ब क्यों कर रहे हैं । कृपया आप मेरे ऊपर भी अपनी कृपा करें और अपने इस भक्त के कष्टों का निवारण भी करिए । प्रभु आप तो अन्तर्यामी है।
जय जय लखन प्राण के दाता । आतुर होई दुःख करहु निपाता ।।
भावार्थ – हे प्रभु आपने जिस प्रकार लक्षमण जी के प्राण बचाए थे। मैं बहुत आतुर मेरे भी दुखों का नाश करो ।
जय गिरिधर जय जय सुख सागर । सुर समूह समरथ भटनागर ।।
भावार्थ – हे गिरधर पर्वत को धारण करने वाले आप सुख के सागर हैं। देवताओं और भगवान विष्णु जितने सामर्थ्यवान हनुमान जी की जय हो।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले । बैरिहिं मारू बज्र की कीलें ।।
भावार्थ -हे हठीले हनुमान जी शत्रुओं पर बज्र की कीलों से प्रहार करो ।
गदा बज्र लै बैरिहि मारो । महाराज निज दास उबारो ।।
भावार्थ – हे श्रीराम भक्त हनुमान वज्र और गदा से शत्रुओं का विनाश करो और अपने दास को इस विपत्ति से उबारो ।
उंकार हुंकार महाबीर धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।।
भावार्थ – हे प्रभु आप ओंकार की हुंकार से कष्टों खत्म कर दें और अपने गदा से प्रहार करने में अब विलम्ब न करिए ।
ॐ हीं हीं हीं हनुमंत कपीशा । ॐ हुंँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा ।।
भावार्थ -हे प्रभु हनुमान जी , हे कपीश्रर – शत्रुओं के सिर धड़ से अलग कर दो।
सत्य होहु हरि सपथ पायके । रामदूत धर मारु धायके ।।
भावार्थ – हे प्रभु भगवान श्री राम स्वयं कहते हैं कि आप ही उनके शत्रुओं का विनाश करते हैं।
जय जय जय हनुमंत अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी आपकी जय हो , मै सदैव आपकी जय जयकार करता हूं फिर भी मैं किस अपराध के कारण दुखी हूं ।
पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ।।
भावार्थ – हे प्रभु ये आपका दास आपके पूजा के जप, तप ,नियम कुछ भी नहीं जानता है।
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं । तुमरे बल हम डरपत नाहीं ।।
भावार्थ – हे प्रभु वन में , उपवन में , पहाड़ों या पर्वतों में, कहीं आपके बल से डर नहीं लगता है।
पाय परौं कर जोरि मनावों । यह अवसर अब केहिं गोहरावों ।।
भावार्थ – हे प्रभु मैं आपके पाँव में पड़ा हूं , हे हनुमान जी मै आपके चरणों में होकर आपको मनाता हूं । इस अवसर पर मै किस तरह आपको पुकारूं ।
जय अंजनि कुमार बलवंता । शंकर सुवन धीर हनुमंता ।।
भावार्थ – हे अंजनी माता के पुत्र और भगवान शंकर के अंश हनुमान जी । आपकी जय हो।
बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी आपका शरीर काल की भांति है।आपने सदैव प्रभु श्री राम की सहायता की है। और उनकी सेवा के लिए आप सदैव तत्पर रहते हैं।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बैताल काल मारी मर ।।
भावार्थ – हे प्रभु आप भूत, प्रेत, पिशाच, निशाचर और अग्नि बैताल आदि सभी को समाप्त कर दीजिए।
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की । राखु नाथ मरजाद नाम की ।।
अर्थात – हे प्रभु आपको अपने प्रभु श्रीराम की शपथ है । इन्हें मारकर प्रभु श्री राम के नाम की मर्यादा रखो प्रभु ।
जनकसुता हरि दास कहावो । ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।
भावार्थ – हे प्रभु आप प्रभु श्री राम के दास कहलाते हैं इसलिए अब इस कार्य को करने में विलम्ब न करिए।
जय जय जय धुनि होत अकाशा । सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ।।
भावार्थ – हे प्रभु आपकी जयकार धुनि आकाश में भी सुनाई देती है। जो भी आपका सुमिरन करता है उसके सभी कष्टों का निवारण होता है।
चरण शरण करि जोरि मनावों । यहि अवसर अब केहि गोहरावों ।।
भावार्थ – हे प्रभु मै आपके चरणों की शरण में हूं और आपसे विनती करता हूं कि मुझे सही रास्ता दिखाएं।
उठ उठ चल तोहि राम दोहाई । पाय परों कर जोरी मनाई ।।
भावार्थ – हे प्रभु आपको हनुमान जी आपको प्रभु श्री राम की दोहाई है। मैं आपके पैरों में पढ़कर आपको मनाता हूं प्रभु चलिए और मेरा संकट ख़तम करिए।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता । ॐ हनु हनु हनु, हनु हनुमंता ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी आप चं चं चं चं करते हुए चले आओ। हे प्रभु हनुमान जी आप चले आइए।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहम पराने खल दल ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी आपके हांकने से ही सभी बड़े बड़े राक्षस सहम जाते हैं।
अपने जन को तुरत उबारो । सुमिरत होय आंनद हमारो ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी अपने भक्तो का कल्याण करो। आपके सुमिरन से सभी भक्तजनों को आंनद प्राप्त होता है।
यहि बजरंग बाण जेहि मारे । ताहि कहो फिर कौन उबारे ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जिसको भी यह बजरंग बाण मारेगा उसे कौन उबारेगा अर्थात उसे कोई नहीं बचा सकता है।
पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करे प्राण की ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जो भी इस बजरंग बाण का पाठ करता है उसकी रक्षा स्वयं आप करते हैं।
यह बजरंग बाण जो जापे । तेहि ते भूत प्रेत सब कापें ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जो भी कोई इस बजरंग बाण का जाप करता है उससे भूत प्रेत सब कापतें है। और कोई भी बुरी शक्ति उसके निकट नहीं आती।
धूप देय अरु जपे हमेशा । ताके तन नहिं रहे कलेशा ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जो भी मनुष्य धूप दीप देकर इस बजरंग बाण का पाठ करता है उसे किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है।
।। दोहा ।।
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै ,सदा धरै उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल शुभ , सिद्ध करै हनुमान ।।
भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जो भी प्रेम भाव से आपका भजन करता है और ध्यान करता है । उसके सभी कार्यों को आप सिद्ध करते हैं।
( बजरंग बाण समाप्त )
पुनश्च :
यह बजरंग बाण प्राचीन पाण्डुलिपियों के आधार पर पाठ संशोधनपूर्वक प्रस्तुत
किया जा रहा है । साधकों में प्रसिद्ध गोकुलभवन अयोध्या के श्रीराममंगलदास जी
महाराज के यहाँ से प्रकाशित पुस्तक तथा बीकानेर लाइब्रेरीकी पाण्डुलिपियों का
सहयोग इसके स्वरूप प्रस्तुति में मूल कारण है।
बाज़ार में उपलब्ध बजरंगबाण में २१चौपाइयांछूटी हुई हैं । जिनमें दैन्यभाव की
झलक के साथ इसके अनुष्ठान का दिग्दर्शन होता है।
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते,
विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ,
सिद्ध करैं हनुमान ।।
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी ।
सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज विलम्ब न कीजै ।
आतुर दौरि महा सुख दीजै।।२।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा ।
सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।।
आगे जाय लंकिनी रोका ।
मारेहु लात गई सुर लोका।।४।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा ।
सीता निरखि परम पद लीन्हा
।।बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा ।
अति आतुर यम कातर तोरा।।६।।
अक्षय कुमार को मारिसंहारा ।
लूम लपेटि लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई ।
जै जै धुनि सुर पुर में भई ।।८।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी ।
कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी ।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता ।
आतुरहोई दुख करहु निपाता ।।१०।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर ।
सुर समूह समरथ भट नागर ।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले ।
बैिरहिं मारू बज्र के कीलै ।।१२।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारो ।
महाराज निज दास उबारो ।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो ।
बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।१४।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा ।
ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा ।।
सत्य होहु हरि शपथ पायके ।
राम दुत धरू मारू धायके ।।१६।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा ।
दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।
पूजा जप तप नेम अचारा ।
नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ।।१८।।
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं
। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं ।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं ।
अपने काज लागि गुण गावौं ।।२०।।
।जय अंजनि कुमार बलवन्ता
। शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।।
बदन कराल काल कुल घालक ।
राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।२२।
।भूत प्रेत पिशाच निशाचर।
अग्नि बैताल काल मारी मर ।।
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की ।
राखु नाथ मर्जाद नाम की ।।२४।
जनकसुतापति-दास कहावौ ।
ताकी शपथ विलम्ब न लावौ ।
जय जय जय धुनि होत अकाशा ।
सुमिरत होत दुसहु दुःख नाशा ।।२६।।
चरन पकरि कर जोरि मनावौं |
एहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।
उठु-उठु चलु तोहि राम दोहाई
पाँय परौं कर जोरि मनाई ।।२८।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता
ॐ हनु हनुहनु हनु हनु हनुमंता।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल ।
ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ।।३०।।
अपने जन को तुरत उबारौ ।
सुमिरत होतअनन्द हमारौ ।
ताते विनती करौं पुकारी ।
हरहु सकल प्रभु विपति हमारी ।।३२।
ऐसो प्रबल प्रभाव प्रभु तोरा ।
कस न हरहु दुःख संकट मोरा ।।
हे बजरंग, बाण सम धावो ।
मेटि सकल दुःख दरस दिखावो ।।३४।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ ।
अवसर चूकि अन्त पछितैहौ ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा ।
धावहु हे कपि पवन कुमारा ।।३६।।
जयति जयति जय जय हनुमाना ।
जयति जयति गुणज्ञान निधाना ।।
जयति जयति जय जय कपिराई ।
जयति जयतिजय जय सुखदाई ।।३८।।
जयति जयति जय राम पियारे ।
जयति जयति जय सिया दुलारे ।।
जयति जयति मुद मंगलदाता ।।
जयति जयति त्रिभुवन विख्याता ।।४०।।
यहि प्रकार गावत गुण शेषा ।
पावत पार नहीं लवलेषा ।।
राम रूप सर्वत्र समाना ।
देखत रहत सदा हर्षाना ।।४२।।
विधि शारदा सहित दिनराती ।
गावत कपि के गुण गण पांती ।।
तुम सम नही जगत् बलवाना ।
करि विचार देखेउं विधि नाना ।।४४।।
यह जिय जानि शरण तव आई ।
ताते विनय करौं चित लाई ।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे ।
मेटहु सकलदुःख भ्रम सारे ।।४६।।
यहि प्रकार विनती कपि केरी ।
जो जन करै लहै सुख ढेरी ।।
याके पढ़त वीर हनुमाना ।
धावत बाण तुल्य बलवाना ।।४८।।
मेटत आय दुःख क्षण मांहीं ।
दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं ।।
पाठ करै बजरंग बाण की ।
हनुमत रक्षाकरै प्राण की ।।५०।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै ।
परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे ।।
भैरवादि सुर करै मिताई ।
आयसु मानि करैं सेवकाई ।।५२।।
प्रण करि पाठ करैं मन लाई ।
अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई ।।
आवृति ग्यारह प्रतिदिन जापै ।
ताकी छाँह काल नहिं चांपै ।।५४।।
दै गूगल की धूप हमेशा।
करै पाठ तन मिटै कलेशा ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै ।
ताहि कहौ फिर कौन उबारै ।।५६।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै ।
देखत ताहि सुरासुर काँपै ।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई ।
रहै सदा कपिराज सहाई ।।५८।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै।
सदा धरैं उर ध्यान ।।
तेहि के कारज तुरत ही,
सिद्ध करैं हनुमान ।।
इति श्रीगोस्वामितुलसीदासविरचितः बजरंगबाणः
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