https://youtu.be/ZY6Ls1_DRtA
शनिवार, 31 दिसंबर 2022
मृगनयनी को यार नवल रसिया... / पण्डित जसराज
मंगलवार, 27 दिसंबर 2022
पद्मनाभ पाहि.../ महाराजा स्वाति तिरुनाल कृति / गायन : अंजली मुरलीधरन
https://youtu.be/hgpspQFR5SA
पद्मनाभ पाहि द्विपपसार
पद्मनाभ पाहि द्विपपसार
पद्मनाभ पाहि द्विपपसार
पद्मनाभ पाहि द्विपपसार
पद्मनाभ पाहि द्विपपसार
गुणवसन शौरे
पद्मनाभ पाहि आ..आ..
सद्मकलित मुनि मानस पङ्कज
सद्मकलित मुनि मानस पङ्कज
सकल भुवन परिपालन लोलुप
सकल भुवन परिपालन लोलुप
सकल भुवन परिपालन लोलुप
पद्मनाभ पाहि आ..
परिलसित करुण सान्द्र
भूरि कोपहत खल धनुजेन्द्र
पावनचरित श्रीरामचन्द्र
पावनचरित श्रीरामचन्द्र
पद्मनाभ पाहि द्विपपासार
पद्मनाभ पाहि
स ग म ध नि स स नि ध म ग स पद्मनाभ
म म म म नि ध म ग ग ग ग स नि ध प
पद्मनाभ पाहि
स स नि ध ग नि ध म म नि ध म ग ग ग ग
abode of excellence, kindly protect.
One who dwells in the lotus hearts of sages.
Delights in protecting the entire universe.
Your lovely face conquers the moon and your eyes brim with
compassion.
You annihilated with great anger, the enemies of Indra.
Oh, Sri Ramachandra! having sacred glory.
You abide in Syanandura. You remove the worldly desires of
those who prostrate you. Your form is lovelier than Cupid and
your hands are thick and round like the snake.
You are effulgent with a beautiful forehead; destroyer of sins,
protector of the host of celestials. You are like the moon for lilies
of devotees who bow at your feet.
सोमवार, 26 दिसंबर 2022
भरे जहाँ में कोई मेरा यार था ही नहीं.../ गीतकार : क़तील शिफ़ाई / गायक : मेहदी हसन
https://youtu.be/6-fmE04JSro
भरे जहाँ में कोई मेरा यार था ही नहीं
किसी नज़र को मेरा इंतज़ार था ही नहीं
ना ढूंढ़िए मेरी आँखों में रतजगों की थकन
ये दिल किसी के लिए बेक़रार था ही नहीं
सुना रहा हूं मुहब्बत की दास्तां उसको
मेरी वफ़ा पे जिसे ऐतबार था ही नहीं
क़तील कैसे हवाओं से मांगते ख़ुशबू
हमारी शाम में ज़िक्रे-बहार था ही नहीं
रविवार, 25 दिसंबर 2022
वो नही मिला तो मलाल क्या जो गुज़र गया सो गुज़र गया... / शायर : बशीर बद्र / गायन : जगजीत सिंह
https://youtu.be/Fw9PkPZqU3I
वो नही मिला तो मलाल क्या, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
उसे याद करके ना दिल दुखा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
ना गिला किया ना ख़फ़ा हुए, युँ ही रास्ते में जुदा हुए
ना तू बेवफ़ा ना मैं बेवफ़ा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
तुझे एतबार-ओ-यकीं नहीं, नहीं दुनिया इतनी बुरी नहीं
ना मलाल कर, मेरे साथ आ, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
वो वफ़ाएँ थीं, के जफ़ाएँ थीं, ये ना सोच किस की ख़ताएँ थीं
वो तेरा हैं, उसको गले लगा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
वो ग़ज़ल की कोई किताब था , वो गुलों में एक गुलाब था
ज़रा देर का कोई ख़्वाब था, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
मुझे पतझड़ों की कहानियाँ, न सुना सुना के उदास कर
तू खिज़ाँ का फूल है, मुस्कुरा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
वो उदास धूप समेट कर कहीं वादियों में उतर चुका
उसे अब न दे मिरे दिल सदा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
ये सफ़र भी किताना तवील है , यहाँ वक़्त कितना क़लील है
कहाँ लौट कर कोई आएगा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
कोई फ़र्क शाह-ओ-गदा नहीं, कि यहाँ किसी को बक़ा नहीं
ये उजाड़ महलों की सुन सदा , जो गुज़र गया सो गुज़र गया
मलाल = दुःख, रंज
गिला = उलाहना, शिकायत
जफ़ा = सख्ती, जुल्म, अत्याचार
खिज़ाँ = पतझड़
सदा = आवाज़
तवील = लम्बा, विस्तृत
क़लील = अल्प, थोड़ा
शाह-ओ-गदा = राजा और भिखारी
बक़ा = नित्यता, अस्तित्व, सलामती
शनिवार, 24 दिसंबर 2022
इन्शां जी उठो अब कूच करो.../ शायर : इब्ने इंशा / गायन : उस्ताद अमानत अली ख़ान
https://youtu.be/ItnFNSfzfgY
शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं.../ शायर : अल्लामा इक़बाल / गायन : उस्ताद ग़ुलाम अब्बास ख़ान
https://youtu.be/_xgtezuWl-c
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
कना'अत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुगाँ और भी हैं
तू शाहीं है पर्वाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आस्माँ और भी हैं
इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं
गए दिन की तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं
शब्दार्थ
तही = तनहा/खाली
गुरुवार, 22 दिसंबर 2022
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते.../ शायर : अमजद इस्लाम अमजद / गायन : गुलाम अली
https://youtu.be/A3aTNYAKkjM
दुनिया फरेब देती है
बड़े ख़ुलूस से हम
ऐतबार करते हैं
जब तक बिक़े न थे तो कोई पूछता न था तूने ख़रीद कर मुझे अनमोल कर दिया -मोहसिन नक़वी
शायर : अमजद इस्लाम अमजद
गायन : गुलाम अली
मंगलवार, 20 दिसंबर 2022
बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा.../ अहमद फ़राज़ (१९३१-२००८) / टीना सानी
https://youtu.be/kgPiNH_dA2g
अहमद फ़राज़ (१४ जनवरी १९३१- २५ अगस्त २००८), असली नाम सैयद अहमद शाह,बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा
अब ज़हन में नहीं है पर नाम था भला सा
अबरू खिंचे खिंचे से आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा
अल्फ़ाज़ थे के जुग्नू आवाज़ के सफ़र में
बन जाये जंगलों में जिस तरह रास्ता सा
ख़्वाबों में ख़्वाब उस के यादों में याद उस की
नींदों में घुल गया हो जैसे के रतजगा सा
पहले भी लोग आये कितने ही ज़िन्दगी में
वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा
अगली मुहब्बतों ने वो नामुरादियाँ दीं
ताज़ा रफ़ाक़तों से दिल था डरा डरा सा
कुछ ये के मुद्दतों से हम भी नहीं थे रोये
कुछ ज़हर में बुझा था अहबाब का दिलासा
फिर यूँ हुआ के सावन आँखों में आ बसे थे
फिर यूँ हुआ के जैसे दिल भी था आबला सा
अब सच कहें तो यारो हम को ख़बर नहीं थी
बन जायेगा क़यामत इक वाक़िआ ज़रा सा
तेवर थे बेरुख़ी के अंदाज़ दोस्ती के
वो अजनबी था लेकिन लगता था आश्ना सा
हम दश्त थे के दरिया हम ज़हर थे के अमृत
नाहक़ था ज़ोंउम हम को जब वो नहीं था प्यासा
हम ने भी उस को देखा कल शाम इत्तेफ़ाक़न
अपना भी हाल है अब लोगो "फ़राज़" का सा
सोमवार, 19 दिसंबर 2022
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे.../ क़लाम : शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ (१७९०-१८५४ ) / गायन : उस्ताद ग़ुलाम अब्बास ख़ान
https://youtu.be/F2_HA7-Zqrw
जौक अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के उस्ताद थे।
मिर्जा गालिब से इनकी प्रतिद्वंदिता जगप्रसिद्ध है।
इनका निधन 1854 में हुआ।
USTAD GHULAM ABBAS KHAN
(RAMPUR-SAHASWAN GHARANA)
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे
तुम ने ठहराई अगर ग़ैर के घर जाने की
तो इरादे यहाँ कुछ और ठहर जाएँगे
ख़ाली ऐ चारागरो होंगे बहुत मरहम-दाँ
पर मिरे ज़ख़्म नहीं ऐसे कि भर जाएँगे
पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक क्यूँ कर हम
पहले जब तक न दो आलम से गुज़र जाएँगे
शोला-ए-आह को बिजली की तरह चमकाऊँ
पर मुझे डर है कि वो देख के डर जाएँगे
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे
आग दोज़ख़ की भी हो जाएगी पानी पानी
जब ये आसी अरक़-ए-शर्म से तर जाएँगे
नहीं पाएगा निशाँ कोई हमारा हरगिज़
हम जहाँ से रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
सामने चश्म-ए-गुहर-बार के कह दो दरिया
चढ़ के गर आए तो नज़रों से उतर जाएँगे
लाए जो मस्त हैं तुर्बत पे गुलाबी आँखें
और अगर कुछ नहीं दो फूल तो धर जाएँगे
रुख़-ए-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहर-ओ-माह नज़रों से यारों की उतर जाएँगे
हम भी देखेंगे कोई अहल-ए-नज़र है कि नहीं
याँ से जब हम रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे