https://youtu.be/UO03QZD6eds
शिव संकल्प सूक्त यजुर्वेद का ३४ वां अध्याय और
अष्टाध्यायी रुद्री का प्रथम अध्याय है ।
"शिव संकल्प" अर्थात कल्याणकारी विचार।
पद्यात्मक अनुवाद, प्रसिद्ध भजनोपदेशक आशु
कवि पं. सत्यपाल पथिक जी द्वारा किया गया है।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।
कभी अँधेरा पास न आये चारों ओर उजाला हो।।
जो मन जाग्रत कार्यकाल में, दूर-दूर तक जाता है,
सो जाने पर भी वैसे ही, इधर-उधर लहराता है।
दिव्य ज्योतियों की ज्योति बन, राह दिखने वाला हो।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।।
सदा मनीषी कर्मशील ज्ञानी कर्मों को करते हुए,
यज्ञों और संग्रामों में भी अद्भुत सहस भरते हुए।
यज्ञों और संग्रामों में भी अद्भुत सहस भरते हुए।
मेरा मन पूजित जन-जन में, सबका देखा-भाला हो।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।।
भूत, भविष्यत्, वर्तमान को किया हुआ जिसने धारण।
तीनों लोकों का परिचय मिलता है, जिसके ही कारण।
याजक जिससे यज्ञ करें, उस मन का तेज निराला हो।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।।
ऋग, यजु, साम, अथर्व वेद जिसमें इस तौर धरे होते हैं।
जैसे रथ के पहिये की नाभि से युक्त अरे होते हैं।
ज्ञान हो जिसमें ओत-प्रोत, मन सुमन सुगन्धित माला हो।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।।
जैसे कोई कुशल सरथि ,घोड़ों को दौड़ाता है।
वैसे ही मन भी, जन-जन को मंज़िल तक पहुंचाता है।
पथिक वही मन ह्रदय-निवासी, अजर-अमर गति वाला हो।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।
हे परमेश्वर ! ये मेरा मन, शिव संकल्पों वाला हो।।
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