सोमवार, 25 अगस्त 2025

गगन के उस पार क्या है.../ कवि स्वर्गीय श्याम नारायण पाण्डेय

 https://youtu.be/zhrN6cnCF4s  


गगन के उस पार क्या है – महान कवि 
श्यामनारायण पाण्डेय की कृति, ‘जौहर’ 
की मंगलाचरण कविता, जो ईश्वर, ब्रह्म 
और सृष्टि के रहस्य की खोज को दर्शाती है।

यह रचना गहरे दार्शनिक भाव, काव्यात्मक 
सौंदर्य और आध्यात्मिक चिन्तन से परिपूर्ण है।

मंगलाचरण

गगन के उस पार क्या,
पाताल के इस पार क्या है?
क्या क्षितिज के पार? जग
जिस पर थमा आधार क्या है?


दीप तारों के जलाकर
कौन नित करता दिवाली?
चाँद - सूरज घूम किसकी
आरती करते निराली?


चाहता है सिन्धु किस पर
जल चढ़ाकर मुक्त होना?
चाहता है मेघ किसके
चरण को अविराम धोना?


तिमिर - पलकें खोलकर
प्राची दिशा से झाँकती है;
माँग में सिन्दूर दे
ऊषा किसे नित ताकती है?


गगन में सन्ध्या समय
किसके सुयश का गान होता?
पक्षियों के राग में किस
मधुर का मधु - दान होता?


पवन पंखा झल रहा है,
गीत कोयल गा रही है।
कौन है? किसमें निरन्तर
जग - विभूति समा रही है?


तूलिका से कौन रँग देता
तितलियों के परों को?
कौन फूलों के वसन को,
कौन रवि - शशि के करों को?


कौन निर्माता? कहाँ है?
नाम क्या है? धाम क्या है?
आदि क्या निर्माण का है?
अन्त का परिणाम क्या है?


खोजता वन - वन तिमिर का
ब्रह्म पर पर्दा लगाकर।
ढूँढ़ता है अन्ध मानव
ज्योति अपने में छिपाकर॥


बावला उन्मत्त जग से
पूछता अपना ठिकाना।
घूम अगणित बार आया,
आज तक जग को न जाना॥


सोचता जिससे वही है,
बोलता जिससे वही है।
देखने को बन्द आँखें
खोलता जिससे वही है॥


आँख में है ज्योति बनकर,
साँस में है वायु बनकर।
देखता जग - निधन पल - पल,
प्राण में है आयु बनकर॥


शब्द में है अर्थ बनकर,
अर्थ में है शब्द बनकर।
जा रहे युग - कल्प उनमें,
जा रहा है अब्द बनकर॥


यदि मिला साकार तो वह
अवध का अभिराम होगा।
हृदय उसका धाम होगा,
नाम उसका राम होगा॥


सृष्टि रचकर ज्योति दी है,
शशि वही, सविता वही है।
काव्य - रचना कर रहा है,
कवि वही, कविता वही है॥

गुरुवार, 21 अगस्त 2025

रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन बाजत है पैजनियां.../ रचना : सूरदास / गायन : गोपाल महाराज

https://youtu.be/1UthjuToG_s   

रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन
बाजत है पैजनियां।।

मात यशोदा चलन सिखावे,
अंगुली पकड़ दोउ कनियां।
रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन
बाजत है पैजनियां।।

पीत झंगुलिया तन पर सोहे,
सिर टोपी लटकनियाँ।
रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन
बाजत है पैजनियां।।

तीन लोक जाके उदर  विराजे,
ताहि नचावे ग्वालनियाँ।
रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन
बाजत है पैजनियां।।

सुर दास प्रभु तन को निहारे,
सकल विश्वव् को धनियां।
रुन-झुन रुन-झुन झनन-झनन-झन
बाजत है पैजनियां।।

मंगलवार, 19 अगस्त 2025

हाथ बारि बैसल छथि समधि.../ मैथिली डहकन गीत /गीत रचना : दीपिका झा / गायन : मनोरंजन झा एवं प्रीति राज

https://youtu.be/ImjK_Aptrw0   

*सौजन कालक गीत*

हाथ बारि बैसल छथि समधि
किए छनि मुॅंह मलीन यौ
माइक दूध छनि मोन पड़ल
आकि पड़लनि मोन समधिन यौ

बहिनी हिनकर अनमन नटुआ
दिनभरि रहनि निपत्ता यौ
एक बहिनपर कै टा पाहुन
दिल्ली, बम्बई कलकत्ता यौ
केहनो उढ़रल हिनक बहिन
मुदा हमरा भैयाकेॅं पसीन यौ
माइक...

भाइ नचै छनि पमरिया संगे
पहीरि क' नूआ-साया यौ
मुठ्ठी भरि नहि मासु देहपर
घुठ्ठी भरि के काया यौ
बेटा बेचलकनि बाबू हिनकर
इहो त' सैह केलखिन यौ
माइक...

पान-सुपारी कल्ला धेने
घूमै छनि मेला-ठेला यौ
खसैत बयसमे चढ़ैत जुआनी
सभदिन करैन झमेला यौ
नाओ बजाबनि हिनकर घरनी
बोलियो लेलकनि छीन यौ
माइक...

शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो.../ सन्त कबीर / गायन : कल्पना पटवारी

https://youtu.be/bOTGnLGXp0Q   

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।।


चंदन काठ के बनल खटोला
ता पर दुलहिन सूतल हो।


उठो सखी री माँग संवारो
दुलहा मो से रूठल हो।


आये जम राजा पलंग चढ़ि बैठा
नैनन अंसुवा टूटल हो


चार जाने मिल खाट उठाइन
चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो


कहत कबीर सुनो भाई साधो
जग से नाता छूटल हो

सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से.../ रचना : बाबू रघुबीर नारायण / गायन : चन्दन तिवारी एवं अन्य

https://youtu.be/DK5skOOnzo4   

सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
मोरे प्राण बसे हिम-खोह रे बटोहिया


एक द्वार घेरे रामा हिम-कोतवलवा से
तीन द्वार सिंधु घहरावे रे बटोहिया


जाऊ-जाऊ भैया रे बटोही हिंद देखी आउ
जहवां कुहुकी कोइली गावे रे बटोहिया


पवन सुगंध मंद अगर चंदनवां से
कामिनी बिरह-राग गावे रे बटोहिया


बिपिन अगम घन सघन बगन बीच
चंपक कुसुम रंग देबे रे बटोहिया


द्रुम बट पीपल कदंब नींब आम वृछ
केतकी गुलाब फूल फूले रे बटोहिया


तोता तुती बोले रामा बोले भेंगरजवा से
पपिहा के पी-पी जिया साले रे बटोहिया


सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
मोरे प्रान बसे गंगा धार रे बटोहिया


गंगा रे जमुनवा के झिलमिल पनियां से
सरजू झमकि लहरावे रे बटोहिया


ब्रह्मपुत्र पंचनद घहरत निसि दिन
सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे बटोहिया


उपर अनेक नदी उमड़ि घुमड़ि नाचे
जुगन के जदुआ जगावे रे बटोहिया


आगरा प्रयाग कासी दिल्ली कलकतवा से
मोरे प्रान बसे सरजू तीर रे बटोहिया


जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखी आउ
जहां ऋसि चारो बेद गावे रे बटोहिया


सीता के बीमल जस राम जस कॄष्ण जस
मोरे बाप-दादा के कहानी रे बटोहिया


ब्यास बालमीक ऋसि गौतम कपिलदेव
सूतल अमर के जगावे रे बटोहिया


रामानुज-रामानंद न्यारी-प्यारी रूपकला
ब्रह्म सुख बन के भंवर रे बटोहिया


नानक कबीर गौर संकर श्रीरामकॄष्ण
अलख के गतिया बतावे रे बटोहिया


बिद्यापति कालीदास सूर जयदेव कवि
तुलसी के सरल कहानी रे बटोहिया


जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखि आउ
जहां सुख झूले धान खेत रे बटोहिया


बुद्धदेव पृथु बिक्रsमार्जुनs सिवाजीss के
फिरि-फिरि हिय सुध आवे रे बटोहिया


अपर प्रदेस देस सुभग सुघर बेस
मोरे हिंद जग के निचोड़ रे बटोहिया


सुंदर सुभूमि भैया भारत के भूमि जेही
जन 'रघुबीर' सिर नावे रे बटोहिया।

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष.../ नज़्म / चाँद मुबारक / अरुण मिश्र

https://youtu.be/f3vOwfc_4rE   

तिरसठ बरस पहले,
पन्द्रह अगस्त की शब,
थी रात आधी बाक़ी,
आधी ग़ुज़र चुकी थी।
या शाम से सहर की-
मुश्क़िल तवील दूरी,
तय हो चुकी थी आधी।
ख़त्म हो रहा सफ़र था-
राहों में तीरग़ी के-
औ’, रोशनी की जानिब।।


पन्द्रह अगस्त की शब,
दिल्ली के आसमाँ में,
उस ख़ुशनुमां फ़िज़ाँ में,
इक अजीब चाँद चमका,
रंगीन चाँद चमका।।


थे तीन रंग उसमें-
वो चाँद था तिरंगा।
वे तरह-तरह के रंग थे,
रंग क्या थे वे तरंग थे,
हम हिन्दियों के मन में -
उमगे हुये उमंग थे।
कु़र्बानियों का रंग भी,
अम्नो-अमन का रंग भी,
था मुहब्बतों का रंग भी,
ख़ुशहालियों का रंग भी,
औ’, बुढ़िया के चर्खे़ के-
उस पहिये का निशां भी-
बूढ़े से लेके बच्चे तक-
जिसको जानते हैं।।


पन्द्रह अगस्त की शब,
जब रायसीना के इन-
नन्हीं पहाड़ियों पर-
यह चाँद उगा देखा-
ऊँचे हिमालया ने,
कुछ और हुआ ऊँचा।
गंगों-जमन की छाती-
कुछ और हुई चौड़ी।
औ’, हिन्द महासागर-
में ज्वार उमड़ आया।
बंगाल की खाड़ी से-
सागर तलक अरब के-
ख़ुशियों की लहर फैली,
हर गाँव-शहर फैली।।


पन्द्रह अगस्त की शब,
जब राष्ट्रपति भवन में-
यह चाँद चढ़ा ऊपर,
चढ़ता ही गया ऊपर,
सूरज उतार लाया,
सूरज कि , जिसकी शोहरत-
थी, डूबता नहीं है,
वह डूब गया आधा-
इस चाँद की चमक से।।


पन्द्रह अगस्त की शब,
इस चाँद को निहारा,
जब लाल क़िले ने तो-
ख़ुशियों से झूम उट्ठीं-
बेज़ान दीवारें भी।
पहलू में जामा मस्जिद-
की ऊँची मीनारें भी-
देने लगीं दुआयें।
आने लगी सदायें-
हर ज़र्रे से ग़ोशे से-
ये चाँद मुबारक हो।
इस देश की क़िस्मत का-
ये चाँद मुबारक हो।
इस हिन्द की ताक़त का-
ये चाँद मुबारक हो।
हिन्दोस्ताँ की अज़मत का-
चाँद मुबारक हो।।


रोजे़ की मुश्क़िलों के-
थी बाद, ईद आयी।
क़ुर्बानियाँ शहीदों की-
थीं ये रंग लायीं।
अब फ़र्ज़ है, हमारा-
इसकी करें हिफ़ाज़त,
ता’, ये रहे सलामत-
औ’, कह सकें हमेशा-
हर साल-गिरह पर हम-
ये, एक दूसरे से-
कि, चाँद मुबारक हो-
ये तीन रंग वाला,
हिन्दोस्ताँ की अज़मत का-
चाँद मुबारक हो।
ये चाँद सलामत हो,
ये चाँद मुबारक हो।।

(एक पुरानी पूर्व प्रकाशित नज़्म)

गुरुवार, 14 अगस्त 2025

वन्दे मातरम् .../ रचना : बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/Mt_McULqya4   

वन्दे मातरम्
मैं वंदना करता हूँ माँ की।
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
जल से भरपूर, फलों से लदी, चंदन की शीतल हवा से ठंडी।
शस्य श्यामलां मातरं।
हरी-भरी फसलों वाली मातृभूमि।

शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम्

चाँदनी से नहाई, पुलकित रातें।
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
फूलों से लदे पेड़ों की शोभा से सजी।
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्।
मधुर मुस्कान वाली, मधुर वाणी वाली।
सुखदां वरदां मातरम्।।
सुख देने वाली, वरदान देने वाली माँ।
वन्दे मातरम्
मैं वंदना करता हूँ माँ की।

सप्त कोटि कण्ठ कलकल निनाद कराले
सात करोड़ कंठों से गूंजती।
निसप्त कोटि भुजैर्धृउत खरकरवाले
सत्तर करोड़ बाहुओं से बल पाती।
के बोले मा तुमी अबले
कौन कहता है कि तुम निर्बल हो, माँ?
बहुबल धारिणीं नमामि तारिणीम्
असीम बल की धारिणी, उद्धार करने वाली को प्रणाम।
रिपुदलवारिणीं मातरम्
शत्रु दल को नष्ट करने वाली माँ।
वन्दे मातरम्
मैं वंदना करता हूँ माँ की।

तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि हृदि तुमि मर्म
तुम ही ज्ञान हो, तुम ही धर्म हो, 
तुम ही हृदय हो, तुम ही जीवन का मर्म हो।
त्वं हि प्राणाः शरीरे
तुम ही प्राण हो शरीर के।
बाहुते तुमि मा शक्ति,
बाहु में तुम हो शक्ति।
हृदये तुमि मा भक्ति,
हृदय में तुम हो भक्ति।
तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे मन्दिरे
तेरी ही प्रतिमा हम मंदिर-मंदिर में गढ़ते हैं।
वन्दे मातरम्
मैं वंदना करता हूँ माँ की।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
तुम ही हो दुर्गा, दसों अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाली।
कमला कमलदल विहारिणी
तुम ही हो लक्ष्मी, कमल के दल में विहार करने वाली।
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
तुम ही हो सरस्वती, विद्या देने वाली, मैं तुम्हें प्रणाम
करता हूँ।

नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
निर्मल, अद्वितीय कमल जैसी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।
सुजलां सुफलां मातरम्
जल से भरपूर, फलों से लदी माँ।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
श्यामल, सरल, मधुर मुस्कान से सजी।
धरणीं भरणीं मातरम्
धरती का भार सँभालने वाली माँ।
वन्दे मातरम्
मैं वंदना करता हूँ माँ की

रविवार, 3 अगस्त 2025

पार्वतीवल्लभ अष्टकम.../ स्वर : दीपश्री एवं दिव्यश्री

https://youtu.be/BMq1Azeshzg   

नमो भूतनाथं नमो देवदेवं 
नमः कालकालं नमो दिव्यतेजः। (दिव्यतेजम्) 
नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १॥ 


सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं 
सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् । 
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २॥ 


श्मशाने शयानं महास्थानवासं (श्मशानं भयानं) 
शरीरं गजानं सदा चर्मवेष्टम् । 
पिशाचादिनाथं पशूनां प्रतिष्ठं (पिशाचं निशोचं पशूनां)
 भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३॥ 


फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं (फणीनागकण्ठं, भुजङ्गाङ्गभूषं) 
गले रुण्डमालं महावीर शूरम् । 
कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४॥ 


शिरश्शुद्धगङ्गा शिवावामभागं 
बृहद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिनेत्रम् । (वियद्दीर्घकेशं, बृहद्दिव्यकेशं सहोमं) 
फणीनागकर्णं सदा भालचन्द्रं (बालचन्द्रं) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५॥ 


करे शूलधारं महाकष्टनाशं 
सुरेशं परेशं महेशं जनेशम् । (वरेशं महेशं) 
धनेशस्तुतेशं ध्वजेशं गिरीशं (धने चारु ईशं, धनेशस्य मित्रं) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६॥ 


उदानं सुदासं सुकैलासवासं (उदासं) 
धरा निर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् । (धरानिर्झरे) 
अजं हेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७॥ 


मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं 
द्विजानं पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् । (द्विजा सम्पठन्तं, द्विजैः स्तूयमानं, वेदशात्रैः) 
अहो दीनवत्सं कृपालुं शिवं तं (शिवं हि) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ८॥ 


सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं 
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् । 
मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं (महातीर्थवासम्) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ९॥ 


इति पार्वतीवल्लभनीलकण्ठाष्टकं सम्पूर्णम् ।

जय सुगन्धिनी त्रिपुर सुन्दरी.../ स्वर : देवराज मुथुस्वामी

https://youtu.be/xZ0SDdckpG0  


जय सुगन्धिनी
त्रिपुर सुन्दरी 
जय महेश्वरी
जय जनप्रिये

जय सुनादिनी
जगत पराम्बिके 
महिषमर्दिनी 
देवि माश्रये 

शरणम् ईश्वरी देवी
शरणम् ईश्वरी
शरणम् ईश्वरी देवी
शरणम् ईश्वरी

आदि पराशक्ति
अम्ब बालिके
हरि मनोहरी
हर भूषणी

अयि सुभाषिणी 
आदि नायकी 
जय महालक्ष्मी
देवि माश्रये
(शरणम् ईश्वरी देवी..)

शशिकलाधरी 
शारदाम्बिके
सर्वरूपिणी
हँसवाहिनी 

ब्रह्मवर्धिनी 
पुस्तकधारिणी 
जय सरस्वती
देवि माश्रये
(शरणम् ईश्वरी देवी...)

जय जनप्रियम् 
ज्योति निर्मलम्
जय शिवप्रियम् 
सुन्दराननम्

जति सुलोचनी
सिंहवाहिनी 
जय महाशक्ति
देवि माश्रये
(शरणम् ईश्वरी देवी...)

शनिवार, 2 अगस्त 2025

शिवोऽहम् शिवोऽहम्.../ आदि शंकराचार्य कृत/ स्वर : शुभांगी जोशी

https://youtu.be/K3eASJiYVVo   

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं 
पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। 
पूर्णस्य पूर्णमादाय 
पूर्णमेवावशिष्यते॥


 मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम्
 न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥


मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: 
न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ  न चोपस्थपायू 
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥


मैं न प्राण हूं,  न ही पंच वायु हूं
मैं न सात धातु हूं,
और न ही पांच कोश हूं
मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ 
मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥3॥


न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह
न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या
मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् 
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता 
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥


मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं
मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ
न मैं भोजन(भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्म:
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥5॥


न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव
मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ
 विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध:
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥


मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं
मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं,
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

 
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवागँसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायूः ।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्ति नो वृहस्पतिर्दधातु ॥


ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

मंगलवार, 29 जुलाई 2025

हरे रामा रिमझिम बरसे पनिया झूले राधा रनिया.../ गायन : मैथिली ठाकुर

https://youtu.be/czYP11w9Ruw  


की हरे रामा रिमझिम बरसे पनिया
झूले राधा रानिया रे हारी

घिर आये घुमड़ घनकारे,
परे रिमझिम बून्द फुहारे।
हरे रामा चमक रही दामिनिया
की झूले...

गर सोहे मोतियन माला,
अंग अंग में भूषण निराला।
अरे रामा कमर पड़ी करधनिया
की झूले...

उ झूले सुमन हिंडोला,
बिन दाम लेत मनमोला।
हरे रामा मंद मंद मुस्कनिया
की झूले...

शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी.../ रचना : महाकवि विद्यापति / गायन : अरुणिता झा

https://youtu.be/a_R4GaTGR7M  

कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी।
एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।।
छोरू कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी।
अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उघारी।।
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी।
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।।
भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी।
हरिक संग कछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी।।

नागार्जुन का अनुवाद : कुंज भवन से निकली ही थी कि गिरधारी ने रोक लिया। माधव, बटमारी मत करो, हम एक ही नगर के रहने वाले हैं। कान्‍हा, आंचल छोड़ दो। मेरी साड़ी अभी नयी नयी है, फट जाएगी। छोड़ दो। दुनिया में बदनामी फैलेगी। मुझे नंगी मत करो। साथ की सहेलियां आगे बढ़ गयी हैं। मैं अकेली हूं। एक तो रात ही अंधेरी है, उस पर बिजली भी कौंधने लगी - हाय, अब मैं क्‍या करूं? विद्यापति ने कहा, तुम तो बड़ी गुणवती हो। हरि से भला क्‍या डरना। तुम गंवार हो। गंवार न होती तो हरि से भला क्‍यों डरती...

सोमवार, 21 जुलाई 2025

नटराज स्तोत्रं (पतंजलि कृतम्) / गायन : सूर्य गायत्री

https://youtu.be/aopCCxY2UBA   


अथ चरणशृंगरहित श्री नटराज स्तोत्रं

सदंचित-मुदंचित निकुंचित पदं झलझलं-चलित मंजु कटकम् ।
पतंजलि दृगंजन-मनंजन-मचंचलपदं जनन भंजन करम् ।
कदंबरुचिमंबरवसं परममंबुद कदंब कविडंबक गलम्
चिदंबुधि मणिं बुध हृदंबुज रविं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 1 ॥

हरं त्रिपुर भंजन-मनंतकृतकंकण-मखंडदय-मंतरहितं
विरिंचिसुरसंहतिपुरंधर विचिंतितपदं तरुणचंद्रमकुटम् ।
परं पद विखंडितयमं भसित मंडिततनुं मदनवंचन परं
चिरंतनममुं प्रणवसंचितनिधिं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 2 ॥

अवंतमखिलं जगदभंग गुणतुंगममतं धृतविधुं सुरसरित्-
तरंग निकुरुंब धृति लंपट जटं शमनदंभसुहरं भवहरम् ।
शिवं दशदिगंतर विजृंभितकरं करलसन्मृगशिशुं पशुपतिं
हरं शशिधनंजयपतंगनयनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 3 ॥

अनंतनवरत्नविलसत्कटककिंकिणिझलं झलझलं झलरवं
मुकुंदविधि हस्तगतमद्दल लयध्वनिधिमिद्धिमित नर्तन पदम् ।
शकुंतरथ बर्हिरथ नंदिमुख भृंगिरिटिसंघनिकटं भयहरम्
सनंद सनक प्रमुख वंदित पदं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 4 ॥

अनंतमहसं त्रिदशवंद्य चरणं मुनि हृदंतर वसंतममलम्
कबंध वियदिंद्ववनि गंधवह वह्निमख बंधुरविमंजु वपुषम् ।
अनंतविभवं त्रिजगदंतर मणिं त्रिनयनं त्रिपुर खंडन परम्
सनंद मुनि वंदित पदं सकरुणं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 5 ॥

अचिंत्यमलिवृंद रुचि बंधुरगलं कुरित कुंद निकुरुंब धवलम्
मुकुंद सुर वृंद बल हंतृ कृत वंदन लसंतमहिकुंडल धरम् ।
अकंपमनुकंपित रतिं सुजन मंगलनिधिं गजहरं पशुपतिम्
धनंजय नुतं प्रणत रंजनपरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 6 ॥

परं सुरवरं पुरहरं पशुपतिं जनित दंतिमुख षण्मुखममुं
मृडं कनक पिंगल जटं सनक पंकज रविं सुमनसं हिमरुचिम् ।
असंघमनसं जलधि जन्मगरलं कवलयंत मतुलं गुणनिधिम्
सनंद वरदं शमितमिंदु वदनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥7॥

अजं क्षितिरथं भुजगपुंगवगुणं कनक शृंगि धनुषं करलसत्
कुरंग पृथु टंक परशुं रुचिर कुंकुम रुचिं डमरुकं च दधतम् ।
मुकुंद विशिखं नमदवंध्य फलदं निगम वृंद तुरगं निरुपमं
स चंडिकममुं झटिति संहृतपुरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 8 ॥

अनंगपरिपंथिनमजं क्षिति धुरंधरमलं करुणयंतमखिलं
ज्वलंतमनलं दधतमंतकरिपुं सततमिंद्र सुरवंदितपदम् ।
उदंचदरविंदकुल बंधुशत बिंबरुचि संहति सुगंधि वपुषं
पतंजलि नुतं प्रणव पंजर शुकं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 9 ॥

इति स्तवममुं भुजगपुंगव कृतं प्रतिदिनं पठति यः कृतमुखः
सदः प्रभुपद द्वितयदर्शनपदं सुललितं चरण शृंग रहितम् ।
सरः प्रभव संभव हरित्पति हरिप्रमुख दिव्यनुत शंकरपदं
स गच्छति परं न तु जनुर्जलनिधिं परमदुःखजनकं दुरितदम् ॥ 10 ॥

इति श्री पतंजलिमुनि प्रणीतं चरणशृंगरहित नटराज स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

बुधवार, 16 जुलाई 2025

धोबिया, मेरा मैल छुड़ा दे.../ गायन : संदीप ढाँढरिया

https://youtu.be/nHYSIFdFccE  


धोबिया,  मेरा  मैल  छुड़ा  दे,
जनम-जनम की मैली  चादर,
उजली     कर      पहना    दे,
धोबिया,  मेरा  मैल   छुड़ा दे,
धोबिया,  मेरा  मैल   छुड़ा दे।

ऐसा     धोबी    पाट    लगना,
धूल   जाये   मेरा   ताना-बाना,
ध्यान की साबुन, प्रेम का पानी,
अपने  करुणा कर से  लगाना,
ऐसी    निर्मल   करना   इसको,
जो     इसे    राम     मिला   दे।

सारे    दाग    मिटाना     इसकी,
परत-परत    इसकी    सुलझाना,
तार-तार    को    शीतल   करना,
लौट   कर  फिर   पड़े   न आना,
धीरज   की   इसे   धुप  लगाकर,
ज्यो     की     त्यों      लौटा    दे।

रविवार, 13 जुलाई 2025

हरदम बोला शिव बम-बम-बम.../ रचना : भिखारी ठाकुर / गायन : चन्दन तिवारी

https://youtu.be/VtEfKFTeSjY?si=55sVsddTrvEacokd

प्रसंग
शिव-विवाह में शिव की बारात में 
द्वार-पूजा के पूर्व का दृश्य है, जब 
पार्वती के द्वार पर नगर के पुरवासी 
दूल्हे को देखने के लिए भारी संख्या 
में आ रहे हैं।


हरदम बोलऽ शिव, बम-बम बम-बम॥टेक॥

कर त्रिशुल बँसहा पर शंकर। 
डमरु बाजत बाटे, डम-डम डम-डम॥ हरदम...

मुख में पान न भांग चबावत। 
दसन बिराजत बा चम-चम चम-चम॥ हरदम...

पुरबासी निरखन बर लागे। 
नारी-पुरुष सब खम-खम खम-खम॥ हरदम...

नाई ‘भिखारी’ कहब कब तक ले। 
जब तक रही तन दम-दम दम-दम॥ हरदम...

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

सखिया सावन बहुत सुहावन.../ कजरी / रचना : भिखारी ठाकुर / गायन : चन्दन तिवारी

https://youtu.be/ogVrsO0i-AU  


सखिया सावन बहुत सुहावन, 
ना मनभावन अइलन मोर।

एक त पावस खास अमावस, 
काली घाटा चहुँओर॥ सखिया॥

पानी बरसत जिअरा तरसत, 
दादुर मचावन सोर॥ सखिया॥

ठनका ठनकत झिंगुर झनकत, 
चमकत बिजली ताबरतोर॥ सखिया॥

कहत ‘भिखारी’ बिहारी पियारी से, 
होई गइलन चित्त रे चोर॥ सखिया॥

गुरुवार, 10 जुलाई 2025

निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊंगा.../ रचना : सन्त कबीर / मुख्य स्वर : आस्था मान्डले

https://youtu.be/_G5lsK8hEiA  


निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊंगा
मूल-कमल दृढ़-आसन बांधूं जी
उल्‍टी पवन चढ़ाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।। 


मन-ममता को थिर कर लाऊं जी 
पांचों तत्व मिलाऊंगा 
निर्भय निर्गुण ।। 


इंगला-पिंगला-सुखमन नाड़ी
त्रिवेणी पे हां नहाऊंगा
निर्भय-निर्गुण ।।  


पांच-पचीसों पकड़ मंगाऊं-जी 
एक ही डोर लगाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।।


शून्‍य-शिखर पर अनहद बाजे जी
राग छत्‍तीस सुनाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।।

कहत कबीरा सुनो भई साधो जी
जीत निशान घुराऊंगा ।
निर्भय-निर्गुण ।।

शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

फ़र्ज़ करो.../ शायर : इब्न-ए-इंशा / गायन : छाया गांगुली

https://youtu.be/sN77sCYjXNI  


फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों

फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो

फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूँढे हम ने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सच-मुच के मय-ख़ाने हों

फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूटा झूटी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो

फ़र्ज़ करो ये जोग-बिजोग का हम ने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो

शुक्रवार, 27 जून 2025

जगन्नाथ प्रातः स्मरण स्तोत्रम् / रचना : आचार्य हरे कृष्ण सत्पथी / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/3tXgBqdk7oY   


नीलाम्बुद-श्यामल-कान्ति-कान्तं, नीलाम्बुधेर्नीलगिरौ बसन्तम् ।
लीलामयं नील-सरोज नेत्रं, देवं जगन्नाथमहं स्मरामि ।।१।।


संसार-धातारमनन्त-रूपं, वेदान्त-वेद्यं हृत-पाप-तापम् ।
प्रातश्च सायं च तमेकनाथं, बन्दे जगन्नाथमनाथनाथम् ।।२।।


दीनार्त्ति-नाशं करुणा-विलासं, सत्य-प्रकाशं हृदयैक-बासम् ।
श्रीशं परेशं जगदीशमीशं, बन्दे जगन्नाथमनाथ-नाथम् ।।३।।


हिरण्यपूर्वं कशिपुं निहन्तं, सत्ये धृतं येन नृसिंह-रूपम्-
तमेवमाद्यं पुरुषाग्रगण्यं, श्रीमज्जगन्नाथमहं प्रपद्ये ।।४।।

त्रेतायुगे रावणमेव हन्तुं, रामस्वरूपं धृतवन्तमेकम् ।
धर्मावतारं भुवनैकवन्दयं, देवं जगन्नाथमहं स्मरामि ।।५।।

यो द्वापरे दैत्यविनाशनाय, दधौ सुरम्यं यदुनाथ-वेशम् ।
तं राधिका-नाथमनाथ-नाथं, देवं जगन्नाथमहं भजामि ।। ६ ।।

हन्तुं नराणामिह पाप-तापं, कलौ धृतं येन हरेः स्वरूपम् ।
प्रातश्च सायं च तमेकनाथं, देवं जगन्नाथमहं स्मरामि ।।७।।

हे देव-देव ! प्रभु विश्वनाथ ! श्रीमज्जगन्नाथ! जगद् वरेण्य ! ।
मोहान्धकारैव विनाश-सूर्य्यं, प्रातस्त्वदीयं पद-पद्ममीड़े ।।८।

सोमवार, 23 जून 2025

विल्वमंगल ठाकुर कृत गोविन्द दामोदर स्तोत्रम् / गायन : जाह्नवी हैरिसन

https://youtu.be/PvK0xZvJay4  

विचित्र-वर्णाभरणाभिरामेऽभिधेहि वक्त्राम्बुज-राजहंसि । 
सदा मदीये रसनेऽग्र-रङ्गे गोविन्द दामोदर माधवेति ।।


O my tongue, since my mouth has become like a lotus by dint of the presencethere of these eloquent, ornamental, delightful syllables, you are like theswan that plays there. As your foremost pleasure, always articulate thenames, “Govinda,” “Dāmodara,” and “Mādhava.”


सुखावसाने तु इदमेव सारं दुःखावसाने तु इदमेव गेयम् । 
देहावसाने तु इदमेव जाप्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ।।


This indeed is the essence (found) upon ceasing the affairs of mundanehappiness. And this too is to be sung after the cessation of all sufferings.This alone is to be chanted at the time of death of one’s materialbody–”Govinda, Dāmodara, Mādhava!”

शुक्रवार, 20 जून 2025

कोई तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझे.../ शायर : शाज़ तमकनत / गायन : वन्दना श्रीनिवासन

https://youtu.be/TXvMTnsZLZ4   

कोई तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझे
मैं बहुत दूर हूँ नज़दीक बुलाता है मुझे


मैं ने महसूस किया शहर के हंगामे में
कोई सहरा में है, सहरा में बुलाता है मुझे


तू कहाँ है कि तिरी ज़ुल्फ़ का साया साया
हर घनी छाँव में ले जा के बिठाता है मुझे


ऐ मिरे हाल-ए-परेशाँ के निगह-दार ये क्या
किस क़दर दूर से आईना दिखाता है मुझे


ऐ मकीन-ए-दिल-ओ-जाँ मैं तिरा सन्नाटा हूँ
मैं इमारत हूँ तिरी किस लिए ढाता है मुझे


रहम कर मैं तिरी मिज़्गाँ पे हूँ आँसू की तरह
किस क़यामत की बुलंदी से गिराता है मुझे


'शाज़' अब कौन सी तहरीर को तक़दीर कहूँ
कोई लिखता है मुझे कोई मिटाता है मुझे

शनिवार, 14 जून 2025

जो लोग तेरी मुहब्बत में चूर रहते हैं.../ गायन : जगजीत सिंह

https://youtu.be/1UuLJjA_lnQ   

जो लोग तेरी मुहब्बत में चूर रहते हैं
वो दो जहां के अँधेरों से दूर रहते हैं


ख़ता न कर के हम हैं गुनाहगार मगर 
कुसूर कर के भी वो बेकुसूर रहते हैं


ग़म-ए-ज़माना को कैसे मैं दूं जगह दिल में
के इस मकां में तो हर दम हुज़ूर रहते हैं


तेरी घनेरी सियाह काकुलों के पिछवाड़े
गुलों के रंग सितारों के नूर रहते हैं

रविवार, 8 जून 2025

लो फिर बसंत आई.../ शायर : हफ़ीज़ जालंधरी / गायन : मलिका पुखराज एवं ताहिरा सईद

https://youtu.be/wOAhkm5DIaI  

लो फिर बसंत आई

फूलों पे रंग लाई
चलो बे-दरंग

लब-ए-आब-ए-गंग
बजे जल-तरंग

मन पर उमंग छाई
फूलों पे रंग लाई

लो फिर बसंत आई
आफ़त गई ख़िज़ाँ की

क़िस्मत फिरी जहाँ की
चले मय-गुसार

सू-ए-लाला-ज़ार
म-ए-पर्दा-दार

शीशे के दर से झाँकी
क़िस्मत फिरी जहाँ की

आफ़त गई ख़िज़ाँ की
खेतों का हर चरिंदा

बाग़ों का हर परिंदा
कोई गर्म-ख़ेज़

कोई नग़्मा-रेज़
सुबुक और तेज़

फिर हो गया है ज़िंदा
बाग़ों का हर परिंदा

खेतों का हर चरिंदा
धरती के बेल-बूटे

अंदाज़-ए-नौ से फूटे
हुआ बख़्त सब्ज़

मिला रख़्त सब्ज़
हैं दरख़्त सब्ज़

बन बन के सब्ज़ निकले
अनदाज़-ए-नौ से फूटे

धरती के बेल-बूटे
फूली हुई है सरसों

भूली हुई है सरसों
नहीं कुछ भी याद

यूँही बा-मुराद
यूँही शाद शाद

गोया रहेगी बरसों
भूली हुई है सरसों

फूली हुई है सरसों
लड़कों की जंग देखो

डोर और पतंग देखो
कोई मार खाए

कोई खिलखिलाए
कोई मुँह चिढ़ाए

तिफ़्ली के रंग देखो
डोर और पतंग देखो

लड़कों की जंग देखो
है इश्क़ भी जुनूँ भी

मस्ती भी जोश-ए-ख़ूँ भी
कहीं दिल में दर्द

कहीं आह-ए-सर्द
कहीं रंग-ए-ज़र्द

है यूँ भी और यूँ भी
मस्ती भी जोश-ए-ख़ूँ भी

है इश्क़ भी जुनूँ भी
इक नाज़नीं ने पहने

फूलों के ज़र्द गहने
है मगर उदास

नहीं पी के पास
ग़म-ओ-रंज-ओ-यास

दिल को पड़े हैं सहने
इक नाज़नीं ने पहने

फूलों के ज़र्द गहने

रविवार, 1 जून 2025

अब उनका क्या भरोसा वो आयें या न आयें.../ शायर : जिगर मुरादाबादी / गायन : मीनू पुरुषोत्तम

https://youtu.be/cF5zOQjUdkU  

अब उनका क्या भरोसा वो आयें या न आयें
आ ऐ ग़म-ए-मोहब्बत तुझ को गले लगायें

उस से भी शोख़तर हैं उस शोख़ की अदाएँ 
कर जायें काम अपना लेकिन नज़र न आयें

आलूदा आब ही में रहने दे इसको नासेह
दामन अगर झटक  दूँ  जलवे कहाँ समायें

इक ज़ाम-ए-आख़िरी तो पीना है और साक़ी 
अब दस्त-ए-शौक़ काँपे या पाँव लड़खड़ायें

गुरुवार, 29 मई 2025

चण्डिकाष्टकम्.../ श्री उमापतिद्विवेदि-विरचितं / स्वर : पण्डित कमल दीक्षित

https://youtu.be/Up_ovBifNkA   

चण्डिकाष्टकम् 

सहस्रचन्द्रनित्दकातिकान्त-चन्द्रिकाचयै-
दिशोऽभिपूरयद् विदूरयद् दुराग्रहं कलेः ।
कृतामलाऽवलाकलेवरं वरं भजामहे
महेशमानसाश्रयन्वहो महो महोदयम् ॥ १॥

विशाल-शैलकन्दरान्तराल-वासशालिनीं
त्रिलोकपालिनीं कपालिनी मनोरमामिमाम् ।
उमामुपासितां सुरैरूपास्महे महेश्वरीं
परां गणेश्वरप्रसू नगेश्वरस्य नन्दिनीम् ॥ २॥

अये महेशि! ते महेन्द्रमुख्यनिर्जराः समे
समानयन्ति मूर्द्धरागत परागमंघ्रिजम् ।
महाविरागिशंकराऽनुरागिणीं नुरागिणी
स्मरामि चेतसाऽतसीमुमामवाससं नुताम् ॥ ३॥

भजेऽमरांगनाकरोच्छलत्सुचाम रोच्चलन्
निचोल-लोलकुन्तलां स्वलोक-शोक-नाशिनीम् ।
अदभ्र-सम्भृतातिसम्भ्रम-प्रभूत-विभ्रम-
प्रवृत-ताण्डव-प्रकाण्ड-पण्डितीकृतेश्वराम् ॥ ४॥

अपीह पामरं विधाय चामरं तथाऽमरं
नुपामरं परेशिदृग्-विभाविता-वितत्रिके ।
प्रवर्तते प्रतोष-रोष-खेलन तव स्वदोष-
मोषहेतवे समृद्धिमेलनं पदन्नुमः ॥ ५॥

भभूव्-भभव्-भभव्-भभाभितो-विभासि भास्वर-
प्रभाभर-प्रभासिताग-गह्वराधिभासिनीम् ।
मिलत्तर-ज्वलत्तरोद्वलत्तर-क्षपाकर
प्रमूत-भाभर-प्रभासि-भालपट्टिकां भजे ॥ ६॥

कपोतकम्बु-काम्यकण्ठ-कण्ठयकंकणांगदा-
दिकान्त-काश्चिकाश्चितां कपालिकामिनीमहम् ।
वरांघ्रिनूपुरध्वनि-प्रवृत्तिसम्भवद् विशेष-
काव्यकल्पकौशलां कपालकुण्डलां भजे ॥ ७॥

भवाभय-प्रभावितद्भवोत्तरप्रभावि भव्य
भूमिभूतिभावन प्रभूतिभावुकं भवे ।
भवानि नेति ते भवानि! पादपंकजं भजे
भवन्ति तत्र शत्रुवो न यत्र तद्विभावनम् ॥ ८॥

दुर्गाग्रतोऽतिगरिमप्रभवां भवान्या
भव्यामिमां स्तुतिमुमापतिना प्रणीताम् ।
यः श्रावयेत् सपुरूहूतपुराधिपत्य
भाग्यं लभेत रिपवश्च तृणानि तस्य ॥ ९॥

रामाष्टांक शशांकेऽब्देऽष्टम्यां शुक्लाश्विने गुरौ ।
शाक्तश्रीजगदानन्दशर्मण्युपहृता स्तुतिः ॥ १०॥

॥ इति कविपत्युपनामक-श्री उमापतिद्विवेदि-विरचितं चण्डिकाष्टकं
सम्पूर्णम् ॥

शुक्रवार, 23 मई 2025

तजौ रे मन, हरि विमुखन को संग.../ श्री सूरदास जी / सूर सागर / गायन : पुरुषोत्तम दास जलोटा

https://youtu.be/s2K0sDGqe8U  


तजौ रे मन...
  हरि विमुखन को संग।
जिनके संग कुमति उपजत है, 
    परत भजन में भंग॥ [१]

कहा होत पय पान कराए विष, 
        नहिं तजत भुजंग।
कागहि कहा कपूर चुगाये,
      स्वान न्हवाऐ गंग॥ [२]

खर को कहा अरगजा लेपन,
           मरकट भूपन अंग।
गज को कहा सरित अन्हवाऐ, 
      बहुरि धरै वह ढंग॥ [३]

पाहन पतित बान नहिं बेधत,
           रीतो करौ निषंग।
'सूरदास' कारी काँमरि पे 
     चढ़त न दूजौ रंग॥ [४]

भावार्थ :

हे मेरे मन ! जो जीव हरि भक्ति से विमुख हैं, उन प्राणियों का संग न कर। उनकी संगति के माध्यम से तेरी बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी क्योंकि वे तेरी भक्ति में रुकावट पैदा करते हैं, उनके संग से क्या लाभ? [१]

आप चाहे कितना ही दूध साँप को पिला दो, वो ज़हर बनाना बंद नहीं करेगा एवं आप चाहे कितना ही कपूर कौवे को खिला दो वह सफ़ेद नहीं होगा, कुत्ता (स्वान) कितना ही गंगा में नहा ले वह गन्दगी में रहना नहीं छोड़ता। [२]

आप एक गधे को कितना ही चन्दन का लेप लगा लो वह मिट्टी में बैठना नहीं छोड़ता, मरकट (बन्दर) को कितने ही महंगे आभूषण मिल जाए वह उनको तोड़ देगा। एक हाथी द्वारा नदी में स्नान करने के बाद भी वह रेत खुद पर छिड़कता है। [३]

भले ही आप अपने पूरे तरकश के तीर किसी चट्टान पर चला दें, चट्टान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। श्री सूरदास जी कहते हैं कि "एक काले कंबल दूसरे रंग में रंगा नहीं जा सकता (अर्थात् जिस जीव ने ठान ही लिया है कि उसे कुसंग ही करना है तो उसे कोई नहीं बदल सकता इसलिए ऐसे विषयी लोगों का संग त्यागना ही उचित है।

बुधवार, 14 मई 2025

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते.../ शायर : हैदर अली आतिश / गायन : उस्ताद अमानत अली

https://youtu.be/AJeltGldEFU   

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते
हम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते


पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ
ज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते


हमेशा मैं ने गरेबाँ को चाक चाक किया
तमाम उम्र रफ़ूगर रहे रफ़ू करते


मिरी तरह से मह-ओ-मेहर भी हैं आवारा
किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते


न पूछ आलम-ए-बरगश्ता-तालई 'आतिश'
बरसती आग जो बाराँ की आरज़ू करते

रविवार, 4 मई 2025

हमन हैं इश्क़ मस्ताना हमन को होशियारी क्या.../ सन्त कबीर / गायन : मधुप मुद्गल

https://youtu.be/EXHMj42N7BQ  

हमन हैं इश्क़ मस्ताना हमन को होशियारी क्या
रहें आज़ाद या जग से हमन दुनिया से यारी क्या


जो बिछड़े हैं पियारे से भटकते दर-ब-दर फिरते
हमारा यार है हम में हमन को इंतिज़ारी क्या


न पल बिछ्ड़ें पिया हम से न हम बिछड़े पियारे से
उन्हीं से नेह लागी है हमन को बे-क़रारी क्या


'कबीरा' इश्क़ का माता दुई को दूर कर दिल से
जो चलना राह नाज़ुक है हमन सर बोझ भारी क्या

आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, दुःख ककरो नहिं देल.../ महाकवि विद्यापति / गायन : सृष्टि एवं अनुष्का

https://youtu.be/bS4l4jhuIkU  


आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, 
दुःख ककरो नहिं देल

दुःख ककरो नहिं देल महादेव, 
दुःख ककरो नहिं देल

एही जोगिया के भाँग भुलैलक, 
धतुर खोआई धन लेल। 

आगे माई, कार्तिक गणपति दुई जन बालक, 
जन भरी के नहिं जान 
तिनक अभरन किछओ न टिकइन, 
रतियक सन नहिं कान 

आगे माई, सोना रूपा अनका सूत, 
अभरन अपने रूद्रक माल
अभरन अपना मँगलो किछ नै जुरलनी, 
अनका लै जंजाल 

आगे माई, छन में हेरथी कोटिधन बकसथी, 
वाहि देवा नहिं थोर 
भनहिं विद्यापति सुनू हे मनाइन 
इहो थिका दिगम्बर मोर

शनिवार, 3 मई 2025

राम गुन बेलड़ी रे.../ भजन / रचना : सन्त कबीर / गायन : मधुप मुद्गल

https://youtu.be/9sC2NisiCV8  


राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।


vine(creeper) made of qualities of Ram 
is known to Avdhoo(saint) Goraknath.  

नाति सरूप न छाया जाके,
बिरध करैं बिन पाँणी॥


It neither has form nor shadow, 
it grows without water(Maya). 

राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।



बेलड़िया द्वे अणीं 
पहूँती गगन पहूँती सैली।


The vine has two ends(Ida and pingala ),
 it has reached by itself to the sky.

सहज बेलि जल फूलण लागी,
डाली कूपल मेल्ही॥

When this vine by its own nature
(unforced,effortless smadhi) blossomed, 
then new braches and shoots come out.

राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।


मन कुंजर जाइ बाड़ा बिलब्या, 
सतगुर बाही बेली।


When elephant nature mind rests
 in this garden of this vine, Satguru helps this vine grow further.

पंच सखी मिसि पवन पयप्या, 
बाड़ी पाणी मेल्ही॥

Now five senses help life force 
further to remove water(Maya).


राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।



काटत बेली कूपले मेल्हीं,
सींचताड़ी कुमिलाँणों।

This vine grows further when one cuts oneself further from worldliness, if one enjoys worldly cravings
the this vine become lifeless.

कहै कबीर ते बिरला जोगी, 
सहज निरंतर जाँणीं।।


Sayes Kabir he is a rare yogi, 
who can understand this effortless 
eternal yoga.

बुधवार, 30 अप्रैल 2025

तू मन अनमना न कर अपना.../ गीतकार भारत भूषण अपने स्वर में..

https://youtu.be/Ar7qK7Fn_F0  

तू मन अनमना न कर अपना, इसमें कुछ दोष नहीं तेरा
धरती के काग़ज़ पर मेरी तस्वीर अधूरी रहनी थी 

रेती पर लिखा नाम जैसा, मुझको दो घड़ी उभरना था 
मलियानिल के बहकाने से, बस एक प्रभात निखारना था 
गूंगे के मनो-भाव जैसे वाणी स्वीकार न कर पाए 
वैसे ही मेरा ह्रदय-कुसुम असमर्पित सूख बिखरना था 

कोई प्यासा मरता जैसे जल के अभाव में विष पी ले 
मेरे जीवन में भी कोई ऐसी मजबूरी रहनी थी

इच्छाओं से उगते बिरवे, सब के सब सफल नहीं होते 
हर कहीं लहर के जूड़े में अरुणारे कमल नहीं होते 
माटी का अंतर नहीं मगर अंतर तो रेखाओं का है 
हर एक दीप के जलने को शीशे के महल नहीं होते 

दर्पण में परछाईं जैसे दीखे तो पर अनछुई रहे 
सारे सुख सौरभ की मुझसे, वैसी ही दूरी रहनी थे
 
शायद मैंने गत जनमों में, अधबने नीड़ तोड़े होंगे 
चातक का स्वर सुनने वाले बादल वापस मोड़े होंगे
ऐसा अपराध हुआ होगा, फिर जिसकी क्षमा नहीं मिलती  
तितली के पर नोचे होंगे, हिरणों के दृग फोड़े होंगे 

अनगिनती क़र्ज़ चुकाने थे, इसलिए ज़िंदगी भर मेरे 
तन को बेचैन भटकना था, मन में कस्तूरी रहनी थी

सोमवार, 28 अप्रैल 2025

हम नहिं आज रहब यहि आँगन जो बुढ़ होएत जमाई, गे माई.../ महाकवि विद्यापति / गायन : रजनी पल्लवी

https://youtu.be/nqxQ3-Uz1Ss  


हम नहिं आज रहब यहि आँगन जो बुढ़ होएत जमाई, गे माई।

एक त बइरि भेला बीध बिधाता दोसरे धिया कर बाप॥
तीसरे बइरि भेला नारद बाभन जै बूढ़ आनल जमाई, गे माई॥

पहिलुक बाजन डोमरु तोरब दोसरे तोरब रुँडमाला।
बरद हाँकि बरियात वेलाइब धिआ लेजाइब पराइ, गे माई॥

धोती लोटा पतरा पोथी एहो सभ लेबन्हि छिनाई।
जो किछु बजता नारद बाभन दाढ़ी दे धिसिआएब, गे माई॥

भन विद्यापति सुनु हे मनाइन दृढ़ कर अपन गेआन।
सुभ सुभ कए सिरी गौरी बियाहू गौरी हर एक समान, गे माई॥

*व्याख्या*

हे सखी! यदि इस वृद्ध शिव को मेरा जामाता बनाया गया तो फिर मैं इस घर में नहीं रहूँगी। मेरी इस कन्या के तीन शत्रु हो गए। एक तो ब्राह्मण ही शत्रु हुआ जिसने मेरी कन्या का इस बूढ़े से विवाह का संयोग-विधान किया। दूसरे इसके पिता हिमालय ने ऐसे वृद्ध एवं सुरुचिहीन वर का चयन कर शत्रुता का व्यवहार किया है। तीसरा शत्रु ब्राह्मण नारद है जो मेरी कन्या की विधि मिलाकर इस वृद्ध दामाद को मेरे द्वार पर ले आया। मैना कहती है कि मैं शिव के डमरु और रुंडमाला को तोड़ डालूँगी। मैं इसके बैल को खदेड़ दूँगी और बरात को भगा दूँगी और फिर अपनी पुत्री को भगाकर कहीं दूर ले जाऊँगी। हे सखी! मैं इस ब्राह्मण नारद का धोती, लोटा, पोथी-पत्रा सब छिनवा लूँगी और यदि इसने अनाकानी की तो मैं स्वयं उसकी दाढ़ी पकड़ कर घसीटूँगी। मैना के इन बचनों को सुनकर विद्यापति के शब्दों में ही उसकी सखी कहती है कि मैना! सुनो, तू जो शिव के वरत्व के संबंध में अनर्गल प्रलाप कर रही है वह अज्ञान के कारण ही है। तू शिव एवं पार्वती के विवाह का मंगल विधि के साथ विवाह कर, क्योंकि ये दोनों एक समान अर्थात् एक दूसरे के सर्वथा उपयुक्त हैं।

शनिवार, 26 अप्रैल 2025

पाप.../ कविता / कवि : भारत भूषण

https://youtu.be/skitjHRld0A?si=F9LlDiqWL9gm1zfI


न जन्म लेता अगर कहीं मैं
धरा बनी ये मसान होती
न मन्दिरों में मृदंग बजते
न मस्जिदों में अजान होती

लिए सुमिरनी डरे हुए से
बुला रहे हैं मुझे पुजेरी
जला रहे हैं पवित्र दीये
न राह मेरी रहे अन्धेरी
हजार सजदे करें नमाजी
न किंतु मेरा जलाल घटता
पनाह मेरी यही शिवाला
महान गिरजा सराय मेरी
मुझे मिटा के न धर्म रहता
न आरती में कपूर जलता
न पर्व पर ये नहान होता
न ये बुतों की दुकान होती

न जन्म लेता अगर कहीं मैं...

मुझे सुलाते रहे मसीहा
मुझे मिटाने रसूल आये
कभी सुनी मोहनी मुरलिया
कभी अयोध्या बजे बधाये
मुझे दुआ दो बुला रहा हूं
हजार गौतम, हजार गान्धी
बना दिये देवता अनेकों
मगर मुझे तुम ना पूज पाये
मुझे रुला के न सृष्टि हँसती
न सूर, तुलसी, कबीर आते
न क्रास का ये निशान होता
न ये आयते कुरान होती

न जन्म लेता अगर कहीं मैं....

बुरा बता दे मुझे मौलवी
या दे पुरोहित हजार गाली
सभी चितेरे शकल बना दें
बहुत भयानक, कुरूप, काली
मगर यही जब मिलें अकेले
सवाल पूछो, यही कहेंगे कि;
पाप ही जिन्दगी हमारी
वही ईद है वही दिवाली
न सींचता मैं अगर जडों को
तो न जहां मे यूं पुण्य खिलता
न रूप का यूं बखान होता
न प्यास इतनी जवान होती

न जन्म लेता अगर कहीं मैं
धरा बनी ये मशान होती
न मन्दिरों में मृदंग बजते
न मस्जिदों में अजान होती

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश.../ शायर : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / गायन : इक़बाल बानो

https://youtu.be/d0f-HS93lbs  


न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया
जो बचे हैं संग समेट लो तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया

मिरे चारा-गर को नवेद हो सफ़-ए-दुश्मनाँ को ख़बर करो
जो वो क़र्ज़ रखते थे जान पर वो हिसाब आज चुका दिया

जो रुके तो कोह-ए-गिराँ थे हम जो चले तो जाँ से गुज़र गए
रह-ए-यार हम ने क़दम क़दम तुझे यादगार बना दिया