https://youtu.be/8TOaAF2yVTc
शुक्रवार, 7 मार्च 2025
ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए.../ शायर : इक़बाल अज़ीम / गायन : सलमान अल्वी
ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए
हम को मंज़िल-शनासी पे भी नाज़ है और हम आश्ना-ए-हवादिस भी हैं
अपने माथे पे बल डाल कर हमें शीश-महलों के अंदर से झिड़की न दो
तुम ने आराइश-ए-गुलसिताँ के लिए हम से कुछ ख़ून माँगा था मुद्दत हुई
हम को हर मोड़ पर दोस्त मिलते रहे हम कभी राह-ए-मंज़िल में तन्हा न थे
मेरी मानो तो इक बात तुम से कहूँ ये नया दौर है इस का क्या ठीक है
हद से बढ़ कर मोहब्बत मुनासिब नहीं इस में अंदेशा-ए-बद-गुमानी भी है
जुर्म-ए-बे-बाक-गोई की पादाश में ज़हर 'इक़बाल' को तल्ख़ियों का मिला
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें