गुरुवार, 5 मार्च 2020

हे री! सखी...

हे री! सखी...




कवित्त (होली)
-अरुण  मिश्र

हे री! सखी, इन ऑखिन सम्मुख, 
होरी  तो,   सोरह  साल   जर्-यो है। 
पै री! सखी, यहि बार की होरी,न 
पूछौ  कुछौ, जस  हाल   कर्-यो है।
चैन उड़्यो दिन कौ,निसि नींद न, 
ऑखिन  डोरो  जु  लाल  पर्-यो है।
पूछैं  सबै,  तौ  बहानो  करौं, उड़ि 
ऑखिन  आय  गुलाल   पर्-यो है।।
                    *
(पूर्वप्रकाशित)

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